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महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की करें उपासना, सिद्धि की होगी प्राप्ति

शारदीय नवरात्रि के आखिरी दिन महानवमी मनाई जाती है. इस दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप की उपासना की जाती है और नवरात्रि व्रत का पारण भी किया जाता है. हवन करने का भी इस दिन काफी महत्व माना जाता है. नवरात्रि के आखिरी दिन यानी नवमी को लोग नौ कन्याओं को भोजन कराकर अपना व्रत खोलते हैं.

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Published : Oct 7, 2019, 7:59 AM IST

जयपुर. मां दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं. ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं. नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है. इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है.

मान्यता है कि महिषासुर नाम का एक राक्षस था. जिसने चारों तरफ हाहाकार मचा रखा था. उसके भय से सभी देवता परेशान थे. उसके वध के लिए देवी आदिशक्ति ने दुर्गा का रूप धारण किया और 8 दिनों तक महिषासुर राक्षस से युद्ध करने के बाद 9वें दिन उसको मार गिराया था. जिस दिन मां ने इस अत्याचारी राक्षस का वध किया, उस दिन को महानवमी के नाम से जाना जाने लगा.

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महिषासुर का वध किया मां ने नौवें दिन

पढे़ं- जयपुर: शारदीय नवरात्रों में जमुवाय माता मंदिर में उमड़ी भक्तों की भीड़

महानवमी के दिन महास्नान कर पूजा करने का रिवाज है. ये पूजा अष्टमी की शाम ढलने के बाद की जाती है. दुर्गा बलिदान की पूजा नवमी के दिन सुबह की जाती है. नवमी के दिन हवन करना जरूरी माना जाता है, क्योंकि, इस दिन नवरात्रि का समापन हो जाता है और मां की विदाई कर दी जाती है. नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा के बाद नौ कन्‍याओं को भोजन कराना चाहिए. कहा जाता है कि छोटी कन्‍याओं में मां का वास होता है, इसलिए नवमी के दिन उनकी पूजा की जाती है और भोजन कराया जाता है.

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महानवमी को करें मां सिद्धिदात्री की पूजा

पढे़ं- नवरात्र का 8वां दिनः आमेर के शिला माता मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब

मां सिद्धिदात्री पूजन विधि

माता के नौवें रूप सिद्धिदात्री की भी पूजा मां के अन्‍य रूपों की तरह ही की जाती है, लेकिन इनकी पूजा में नवाह्न प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ किस्म के फूल और नौ प्रकार के फल अर्पित करने चाहिए. पूजा में सबसे पहले कलश और उसमें मौजूद देवी देवताओं की पूजा करें. इसके बाद माता के मंत्र का जाप करें.

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

जयपुर. मां दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं. ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं. नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है. इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है.

मान्यता है कि महिषासुर नाम का एक राक्षस था. जिसने चारों तरफ हाहाकार मचा रखा था. उसके भय से सभी देवता परेशान थे. उसके वध के लिए देवी आदिशक्ति ने दुर्गा का रूप धारण किया और 8 दिनों तक महिषासुर राक्षस से युद्ध करने के बाद 9वें दिन उसको मार गिराया था. जिस दिन मां ने इस अत्याचारी राक्षस का वध किया, उस दिन को महानवमी के नाम से जाना जाने लगा.

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महिषासुर का वध किया मां ने नौवें दिन

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महानवमी के दिन महास्नान कर पूजा करने का रिवाज है. ये पूजा अष्टमी की शाम ढलने के बाद की जाती है. दुर्गा बलिदान की पूजा नवमी के दिन सुबह की जाती है. नवमी के दिन हवन करना जरूरी माना जाता है, क्योंकि, इस दिन नवरात्रि का समापन हो जाता है और मां की विदाई कर दी जाती है. नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा के बाद नौ कन्‍याओं को भोजन कराना चाहिए. कहा जाता है कि छोटी कन्‍याओं में मां का वास होता है, इसलिए नवमी के दिन उनकी पूजा की जाती है और भोजन कराया जाता है.

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महानवमी को करें मां सिद्धिदात्री की पूजा

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मां सिद्धिदात्री पूजन विधि

माता के नौवें रूप सिद्धिदात्री की भी पूजा मां के अन्‍य रूपों की तरह ही की जाती है, लेकिन इनकी पूजा में नवाह्न प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ किस्म के फूल और नौ प्रकार के फल अर्पित करने चाहिए. पूजा में सबसे पहले कलश और उसमें मौजूद देवी देवताओं की पूजा करें. इसके बाद माता के मंत्र का जाप करें.

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

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Arvind


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