जयपुर. पूरी दुनिया में 22 मार्च को जल दिवस मनाया जाता है. इस मौके पर लोगों में इस बात को लेकर भी जागरूकता फैलाई जाती है कि पानी को ज्यादा से ज्यादा बचाया जा सके. साल 1727 में जब सवाई जयसिंह ने जयपुर को बसाया, तो यहां के लोगों के पेयजल का प्रबंधन भी उनकी ओर से किया गया. कालांतर में अलग-अलग राजाओं के दौर में जल योजनाओं को लेकर जयपुर में ऐसा काम हुआ कि पूरे राजस्थान में शहर को मिसाल के रूप में देखा जाने लगा. नाहरगढ़ के आथुनी कुंड से लेकर रामचंद्रपुरा बांध होते हुए जयपुर का पानी मोरेल नदी से होते हुए चंबल नदी तक पहुंचा करता था. लेकिन आज जयपुर ही पानी के लिए तरस रहा है और यहां 160 किलोमीटर के लगभग दूरी पर मौजूद बीसलपुर बांध से पानी आता है. ऐसे मौके पर ईटीवी भारत ने इतिहासकार और चिंतक जितेंद्र सिंह शेखावत से बातचीत की और जयपुर शहर की मौजूदा जल चुनौतियों को जाना.
बांधों के क्षेत्र में बस गए लोग : इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत कहते हैं कि जयपुर में भूगर्भ के अलावा सतही पानी भी प्रचूर मात्रा में उपलब्ध रहता था. इस पानी के वजह से टोंक से लेकर भरतपुर तक और झुंझुनू तक सिंचाई से लेकर पेयजल के लिए राजाओं ने विशेष योजनाओं पर काम किया था. जितेंद्र सिंह शेखावत बताते हैं कि आजादी से पहले जयपुर में करीब 700 कुओं के जरिए रोजमर्रा की जरूरत के लिए पानी उपलब्ध करवाया जाता था. इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत के दौर में और काम आगे बढ़ा.
शेखावत बताते हैं कि नाहरगढ़ की तलहटी पर बने कुंड से ओवरफ्लो पानी किशन बाग होते हुए अंबाबाड़ी के बांध तक पहुंचता था. इसके बाद यहां पर ओवर फ्लो होने वाला पानी रावल जी के बंधे तक जाता था, जो वर्तमान में हसनपुरा में स्थित है. बताया जाता है कि रावल जी के बंधे पर बतखें पानी में तैरा करती थी और लोग नाव की सवारी किया करते थे. इसके बाद यह पानी हाथी बाबूजी के बांध तक आता, जहां से यह पानी ख्वासजी के बंधे तक पहुंच जाता था. यहां से यह पानी गूलर बांध को भरता था. जहां से दो नहरें निकला करती थी, एक नहर चंदलाई बांध जाया करती थी और दूसरी रामचंद्रपुरा बांध को भरती थी. इसके बाद यह पानी ढूंढ नदी में चला जाता था.
जितेंद्र सिंह शेखावत के मुताबिक इस पूरे सिस्टम के कारण जयपुर का पानी जयपुर में ही रहता और भूगर्भ को रिचार्ज करता था. परंतु वर्तमान में इन बांधों के पेट में बसी कॉलोनियों के कारण और शहरीकरण की वजह से वॉटर रिचार्ज नहीं हो पा रहा है. जबकि लोग जरूरतों के लिए लगातार पानी का दोहन कर रहे हैं.
इतिहासकार शेखावत के मुताबिक जयपुर को बसाने के दौरान बारह मोरदिया बनाई गई थी. इन मोरियो के जरिए नाहरगढ़ की पहाड़ियों का पानी तालकटोरा तक पहुंचता था. यहां से पानी जय सागर होते हुए मानसागर का रुख किया करता था. एक दौर था जब बरसात के दिनों में जल महल का पानी जोरावर सिंह गेट तक आ जाया करता था. यहां तक कि राजा राम सिंह के राज में भी घरों तक नल के जरिए पानी पहुंचाया जाता था, लेकिन आज उस व्यवस्था का कोई मुकाबला नहीं है. इसी तरह से महाराजा मानसिंह के दौर में रामगढ़ बांध से 40 किलोमीटर दूर तक पंप करके पानी लाने की व्यवस्था थी. पर आज दुनिया देख रही है कि 8 साल से कैसे बांध का आंचल सूखा पड़ा है. उन्होंने बताया कि छप्पनिया अकाल के बाद अंग्रेजों के साथ मिलकर राजा माधव सिंह ने जयपुर के चारों तरफ बांधों का जाल बना दिया था जिसकी वजह से जयपुर में सालों तक पानी की कमी नहीं रही. पर मौजूदा समय में इन बातों पर भी लोगों ने कब्जा कर लिया है.
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ताल कटोरी का संघर्ष है मिसाल : जयपुर के परकोटे में स्थित तालकटोरा सरोवर का भी शेखावत और उनके साथी जिक्र करते हैं. जितेंद्र सिंह शेखावत के मुताबिक समय के साथ तालकटोरा में भी पानी की एंट्री बंद हो गई थी. इसके बाद उन्हें स्थानीय लोगों के साथ-साथ सरकारों से भी संघर्ष करना पड़ा. जिसकी परिणीति यह रही कि 5 बरस तक सूखने के बाद एक बार फिर तालकटोरा पूरी तरह से पुनर्जीवित हो चुका है और इस जलकुंड में 8 फीट की गहराई तक पानी मौजूद है. जयपुर की पहचान को लेकर चिंतित रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के समूह में इस मुहिम में बढ़-चढ़कर शिरकत की थी और नाहरगढ़ से आने वाले पानी के नालों को बदल गया था. जिसके कारण ताल कटोरी में बरसात के पानी की आवक होने लगी.
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वर्तमान में यह स्थिति है जयपुर के भूगर्भ जल की : जयपुर शहर में बढ़ती आबादी और शहरीकरण के असर की वजह से करीब 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी भूगर्भ के जल पर निर्भर है. साल दर साल होने वले जल दोहन के कारण स्थिति यह हो चुकी है कि जमीन के अंदर मौजूद पानी सूखने के कगार पर पहुंच चुका है. जयपुर शहर के और आसपास के कई इलाके ड्राई जोन में तब्दील हो चुके हैं. करीब चालीस सालों में राज्य में पानी के अतिदोहन के चलते डार्क जोन ब्लॉकों का आंकड़ा कई गुना बढ़ गया है. हालात यह हैं कि जयपुर में 500 फीट की गहराई तक पानी नहीं बचा है, किसी दौर में नाहरगढ़ की पहाड़ियों के आसपास छोटी कुई से हाथ से पानी निकाला जा सकता था, वहां भी पानी रसातल में जाता दिख रहा है. 203 ब्लॉक अब डार्क जोन में बदल चुके हैं. बीते तीन दशक में ही राजधानी के जलस्तर में 200 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है. जल को लेकर काम करने वाले लक्ष्मण सिंह लापोडिया कहते हैं कि जिस तेजी के साथ भूगर्भ से पानी का दोहन किया जा रहा है, अगर उस रफ्तार के मुताबिक धरती में जल रिचार्ज के सिस्टम पर विचार नहीं किया गया, तो आने वाले सालों में स्थितियां और अधिक भयावह हो सकती हैं. इकोसिस्टम के लिए यह हालात मुनासिब नहीं होंगे. लिहाजा सरकार के साथ-साथ आमजन की भी जिम्मेदारी है कि इस दिशा में गंभीरता से विचार किया जाए.