जयपुर. आज अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस है. इस दिन मानव के अधिकारों को लेकर चर्चा होती है. इस वर्ष World Human Rights Day 2022 की थीम 'गरिमा, स्वतंत्रता और सभी के लिए न्याय' (Dignity, Freedom, and Justice for All) रखी गई है. देश में मानव अधिकार के लिए सबसे पहले महात्मा फुले ने आवाज उठाई थी. इनके बाद डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने मानवों को उनके सामान्य अधिकार दिलाने के लिए हर तरह से लड़ाई लड़ी, जो हमें हमारे संविधान के रूप में मिली. इस दिन को मनाने के पीछे खास मकसद यह है कि लोगों का ध्यान मानवाधिकारों की तरफ आकर्षित हो.
भारत में मानव अधिकार कानून: भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 1993 को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया था और 28 सितंबर 1993 से यह कानून अमल में आया था. आयोग के अंतर्गत नागरिक और राजनीतिक के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते हैं.
मानवाधिकार दिवस की पृष्ठभूमि: 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को अपनाए जाने वाले दिन से ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानवाधिकार दिवस को मनाया जा रहा है. पहली बार 48 देशों ने यूएन की जनरल असेंबली के साथ इस दिन को मनाया था. साल 1950 में महासभा द्वारा प्रस्ताव 423 (v) पारित करने के बाद सभी देशों एवं संस्थाओं को इसे अपनाये जाने के लिए आग्रह किया गया. यूएनजीए ने दिसंबर 1993 में इसे हर साल मनाए जाने की घोषणा की थी.
राजस्थान में मानवाधिकार आयोग किस तरह से काम कर रहा है, क्या प्रदेश में आम नागरिक को उसके अधिकार मिल रहे हैं, इसको लेकर ईटीवी भारत ने आयोग के अध्यक्ष जस्टिस गोपाल कृष्ण व्यास से खास बातचीत की. मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष गोपाल कृष्ण व्यास ने कहा कि राजस्थान में आयोग के समक्ष पुलिस एट्रोसिटी केस ज्यादा आते हैं. किसी पीड़ित के साथ में कुछ जुर्म होता है तो वह चाहता है कि उसकी सुरक्षा हो इसलिए वो पुलिस के पास जाता है. पुलिस जब कार्रवाई नहीं करती है तो वह मानव अधिकार आयोग के पास अपनी गुहार लगाता है. इसके बाद आयोग संबंधित पुलिस अधिकारी को कार्रवाई करने के लिए निर्देशित करता है. आयोग मामले की निष्पक्ष जांच के निर्देश देता है.
बेरोजगारी पर और अधिक काम करने की जरूरत- मानव अधिकार आयोग में हाईकोर्ट का जज इसीलिए बनाया जाता है कि वह स्वतंत्र रूप से काम करें. उन्होंने कहा कि जिसके सीने में दर्द होगा वह अपने काम को जिम्मेदारी के साथ करेगा, लेकिन जिसके सीने में दर्द ही नहीं है वह अधिकारी कभी भी गंभीरता के साथ काम नहीं करेगा. फिर चाहे उसमें मानव अधिकार आयोग दखल दे या सुप्रीम कोर्ट. व्यास ने कहा कि विधि समीक्षा की एक बड़ी जरूरत है. 1947 में जब भारत आजाद हुआ था उस वक्त भारत की आबादी 35 करोड़ थी. आज हम 135 करोड़ को पास कर रहे हैं. इस पर सभी को सोचना होगा और उस पर काम करना होगा.
आयोग में ज्यादा पुलिस से प्रताड़ित मामले- 2 साल के कार्यकाल को लेकर जस्टिस व्यास ने कहा कि ज्यादातर मामले पुलिस कार्रवाई नहीं होने के आए हैं. इसमें छोटी बच्ची के साथ दुष्कर्म के मामले भी हैं. व्यास ने कहा कि कैदियों का जो अधिकार है वह उसे मिल रहा है या नहीं, इसको लेकर मैंने कई जेलों का भी दौरा किया है. उनको उनका अधिकार मिल रहा है या नहीं, इसके लिए उनके साथ समय बिताया. खामियों पर कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं.
भूख और पेट जुर्म करवाता है- भूख और पेट यह दो चीज ऐसी है जो जुर्म करवाता है. जुर्म इसलिए होता है कि बेरोजगारी है, लेकिन बेरोजगारी का यह कारण नहीं है कि सरकार काम नहीं कर रही है. रोजगार के कम होते संसाधन युवाओं को जुर्म के रास्ते पर ले जा रहे हैं. व्यास ने कहा कि इसका दूसरा कारण यह भी है कि लोग शहरों की ओर भागने लगे हैं. गांव की तरफ कोई नहीं रहता है. शहर में आबादी का दबाव के बीच रोजगार की कमी है. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में बेरोजगारी पर ध्यान नहीं दिया गया तो गैंगवार भी होंगे.
आयोग की अपील- जस्टिस व्यास ने प्रशासनिक अधिकारियों से अपील की कि वो अपने काम को बोझ नहीं समझे. अधिकारी के जो काम हैं, वे उसको तत्काल प्रभाव से निस्तारित करें जिससे पेंडेंसी कम होगी. स्कूलों में सुरक्षा नहीं है, बालिकाओं की सुरक्षा नहीं है, इसको लेकर जो जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं और सरकार को उठाने चाहिए. उन्होंने कहा कि जिनका नैतिक पतन नहीं हुआ है उनके खिलाफ कार्रवाई करें. इसके साथ ही पीड़ित को मुआवजा का जो प्रावधान है वह उसे मिलना चाहिए, जो नहीं मिल रहा है. कानून बने हुए हैं, इसकी पालना होनी चाहिए.