जयपुर. आज इस पृथ्वी को संजोए रखने की दरकार महसूस होने लगी है. जिसमें कई चुनौतियां हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में प्रो. सरीना कालिया ने बताया कि धरती को बचाने के लिए हम काम नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हम सोच नहीं रहे हैं कि किस डायरेक्शन में हमें काम करना चाहिए. सबसे पहले बात चुनौतियों की करें तो इस धरती के लोग खुद अपने लिए समस्या खड़ी कर रहे हैं. हर मंच के ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज, वॉटर क्राइसिस की बात होती है. लेकिन उनके नजरिए में सबसे बड़ी समस्या है जनसंख्या वृद्धि.
जनसंख्या वृद्धि से उसका प्रेशर संसाधनों पर पड़ रहा है : उन्होंने कहा कि नॉन कन्वेंशनल एनर्जी रिसोर्सेज का यूज करने के लिए बात क्यों की गई. जब हम प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन कर लेंगे, तब जाकर अप्राकृतिक संसाधन इस्तेमाल करने की बात आएगी. जनसंख्या वृद्धि हो रही है तो उसका प्रेशर संसाधनों पर पड़ रहा है, और ग्रीड फॉर्म में इसका दोहन होता चला जा रहा है. वैज्ञानिक भी दोनों सेक्टर पर काम कर रहे हैं किस तरह हमें संसाधनों का दोहन करना चाहिए, कितना उनका उपयोग करना चाहिए. लेकिन सवाल ये उठता है कि जब जनसंख्या बढ़ेगी तो संसाधनों का दोहन भी बढ़ेगा. ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरी है कि संसाधन और जनसंख्या बैलेंस होनी चाहिए. लेकिन वर्तमान समय में व्यक्ति का दिमाग लालच की सोच के साथ चलता है. नीड के बजाय ग्रीड के तहत चलता है उस लालच को रोकना होगा.
धरती को बचाने के बहुत से तरीके हैं: एनवायरमेंट साइंस की प्रो. प्रिया ने बताया कि धरती को बचाने के बहुत से तरीके हैं. वर्तमान में प्लास्टिक सबसे ज्यादा नेगेटिव रोल प्ले कर रहा है. ऐसे में जरूरी है कि जिन घरों में सिंगल यूज प्लास्टिक इस्तेमाल हो रहा है, वो उसका उपयोग धीरे-धीरे कम करें और अपने साथ कपड़े के थैले आदि बाजार में ले जाना शुरू करें. जो प्लास्टिक हम इस्तेमाल कर रहे हैं उसे भी रिसाइकिल किया जा सके. तभी इस धरती को बचाया जा सकता है.
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प्रकृति और पर्यावरण से भावनात्मक रूप से जुड़ेंगे: उन्होंने बताया कि पृथ्वी पर लैंड और वाटर दोनों को प्रदूषित होने से बचाना है. महात्मा गांधी ने भी कहा था कि पृथ्वी हमारी नीड तो पूरी कर सकती है, लेकिन हमारी लालसा को पूरी कर नहीं कर सकती. ऐसे में लालसा की तरफ ना बढ़ते हुए जरूरत की तरफ जाना चाहिए. आज भोगवादी संस्कृति में धीरे-धीरे हम संसाधनों का इस्तेमाल बढ़ाते जा रहे हैं. जरूरत है ग्रीन मैन्योर की तरफ आगे बढ़ना की और ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधों को प्रोटेक्ट करने की है. प्रकृति और पर्यावरण से भावनात्मक रूप से जुड़ेंगे, तब ही हम उसे नष्ट होने से बचा सकेंगे. इसके साथ ही क्षेत्र के अनुसार प्लांटेशन करना जरूरी होगा. इससे स्थानीय वनस्पति को भी फायदा मिलेगा, साथ में क्षेत्रीय पशु-पक्षियों के लिए भी फायदेमंद रहेगा.
प्रो. प्रकाश ने एनवायरमेंट साइकिल को समझाते हुए बताया कि जिस तरह से इको चैन सिस्टम है, उसमें ह्यूमन बीइंग और पेड़-पौधों के साथ-साथ पशु पक्षी भी आते हैं और अगर इस चैन में एक भी कड़ी घटती- बढ़ती है तो इंबैलेंस क्रिएट होगा. ऐसे में सभी की अपनी महत्ता है, किसी की भी ना तो ओवर पॉपुलेशन हो और ना लोअर पॉपुलेशन. क्योंकि ये भी एक तरह का एनवायरमेंट पॉल्यूशन है. ऐसे में प्रकृति को समझते हुए मानव काम करेगा, तो धरती को प्रोटेक्ट किया जा सकेगा.