जयपुर. दुनिया भर में जून के महीने में दूसरे शनिवार को वर्ल्ड डॉल डे के रूप में मनाया जाता है. इसके पीछे विचार है कि हर दिल अजीज खिलौनों वाली गुड़िया बचपन में सभी के मनोरंजन का जरिया होती है. ऐसे में उन यादों को समर्पित करते हुए एक दिन विशेष में इन लम्हों को सहेज कर रखा जाए. दुनिया के कई हिस्सों में मान्यता है कि इस दिन लोग अपने प्रियजन को तोहफे के रूप में गुड़िया भेंट करते हैं. इस तरह से वर्ल्ड डॉल डे दुनिया भर में प्यार और खुशियां बांटने का पैगाम देता है. इस खास दिन पर न किसी का पेटेंट है और न ही कोई हक जताता है. साल 1986 से इसे सेलिब्रेट किया जा रहा है.
जयपुर का डॉल म्यूजियम भी है खास - वर्ल्ड डॉल डे पर जो पैगाम दुनिया को देने का मकसद रखा जाता है, वह संदेश जयपुर के सेठ आनंदी लाल पोद्दार मूक बधिर विशेष योग्यजन विद्यालय में भी जाहिर होता है. स्कूल में विशेष शिक्षक के रूप में काम कर रहे अनिल कुमार वर्मा ने बताया कि साल 1974 में यह डॉल म्यूजियम बनाया गया था. इस संग्रहालय की खासियत है कि यहां भारत के हर राज्य के रहन-सहन और लिबास को समझाने के लिए एक खास गुड़िया रखी गई है. इसी तरह से दुनिया के अलग-अलग देशों की गुड़िया भी यहां उन देशों की संस्कृति के बारे में जानकारी देती है.
इसे भी पढ़ें - Jaipur Doll Museum: अजूबों से भरा है जयपुर डॉल म्यूजियम, एक ही जगह पर दिखती है दुनिया भर की संस्कृति
अनिल वर्मा ने बताया कि डॉल म्यूजियम को घूमने के लिए आने वाले दर्शक एक छत के नीचे यहां नुमाइश के लिए रखी गई गुड़ियों के जरिए देसी और विदेशी संस्कृति के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं. वर्मा के मुताबिक सेठ कांतिलाल की बेटी को अलग-अलग डॉल्स के कलेक्शन का शौक था और उन्हीं से प्रेरणा लेकर इस डॉल म्यूजियम की नींव रखी गई थी. अलग-अलग कल्चर को दिखाती हुई आज करीब 500 गुड़िया इस डॉल म्यूजियम की शोभा बढ़ा रही है.
यहां मिलती है राजस्थानी संस्कृति की झलक - डॉल म्यूजियम घूमने के लिए आने वाले लोग राजस्थान की संस्कृति से भी वाकिफ हो सकते हैं. इस म्यूजियम में राज्य के अलग-अलग संभागों की लोक संस्कृति को इन डॉल्स के जरिए दिखाया गया है, ताकि खास तौर पर वे बच्चे अपने प्रदेश से रूबरू हो सकें, जिन्हें आमतौर पर राज्य के अलग-अलग हिस्सों में घूमने का मौका नहीं मिला. जयपुर का यह डॉल म्यूजियम रोजाना सुबह 9:00 बजे से 3:00 बजे तक खोला जाता है जबकि मंगलवार के दिन यह अवकाश होता है छोटे बच्चों को यहां निशुल्क प्रवेश मिलता है वही विद्यार्थियों को आज ही दरों पर एंट्री दी जाती है जबकि वयस्कों के लिए ₹10 और विदेशी सैलानियों के लिए ₹50 की टिकट दर निर्धारित की गई है.
यह सब है म्यूजियम में खास - डॉल म्यूजिक में यू तो दुनिया के करीब 40 देशों की संस्कृति को इन गुड़िया घर में रखी कलाकृतियों के जरिए निहारा जा सकता है. पर इन सबके बीच 2 इंच की गुड़िया आकर्षण का केंद्र रहती है. इसके अलावा बेल्जियम की डांसर, जापान की म्यूजिशियन, ब्राजील की स्कूल गर्ल्स को डॉल हाउस में देखा जा सकता है. वही इजिप्ट, ग्रीक, मेक्सिको, आयरलैंड, डेनमार्क बुल्गारिया, स्पेन और जर्मनी की संस्कृति को भी यह अनुभव किया जा सकता है. यह अमेरिका, अफगानिस्तान, स्वीडन, स्विट्जरलैंड और ब्रिटेन के साथ साथ गल्फ कंट्री से भी कलेक्शन मौजूद है. जहां तक देसी संस्कृति की बात है, तो महाराष्ट्रीयन शैली के कपड़े पहने मछुआरे और राजस्थानी लिबास में सपेरा जातियों की विशेषता बताई गई है. इसी तरह से छत्तीसगढ़ के बस्तर की आदिवासी जनजातियों, नागालैंड और आसाम जैसे सुदूर प्रदेशों में रहने वाली जनजातियों, तमिलनाडु, बंगाल और बिहार की संस्कृति को भी गुड़ियों के जरिए दिखाया गया है.