जयपुर. भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है. जिसके निर्माण में राजस्थान का योगदान भी अतुलनीय है. भारत के संविधान की मूल प्रति में 22 चित्र भारत के वैभवशाली इतिहास, परम्परा और संस्कृति को दर्शाते हैं.
जिनका निर्माण विख्यात चित्रकार नंदलाल बोस ने किया था और इसमें राजस्थान के नामी कलाकार कृपाल सिंह शेखावत ने भी योगदान दिया था. कृपाल सिंह ने झुंझुन जिले के श्रीमाधोपुर के एक छोटे से गांव से निकल कर भारत के एक प्रसिद्ध हस्तशिल्प कलाकार के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई. साथ ही जयपुर की ब्लू पॉटरी को पुर्नजीवित करने के उनके कारनामें ने उन्हें अपार प्रसिद्धि भी दिलाई.
कृपाल सिंह जयपुर स्थित सवाई मानसिंह कला मंदिर के निदेशक के तौर पर भी कार्यरत रहे. जहां वह अपने छात्रों को चित्रकला और ब्लू पॉटरी की शिक्षा देते रहे. कला में उनके इस योगदान के कारण 1974 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया. वर्ष 2002 में उन्हें भारत सरकार की ओर से शिल्प गुरू की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था.
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कृपाल सिंह की बेटी मीनाक्षी राठौड़ बताती है कि जब वो अपने पिता कृपाल सिंह के स्टूडियों में होती तो कृपाल सिंह उन्हें हस्तशिल्प कला की बारीकियों के साथ ही स्वतंत्र भारत के किस्से भी सुनाते. उन्होंने बताया की किस तरह से संविधान निर्मात्री समिति के अध्यक्ष बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने उनके गुरु नंदलाल बोस को संविधान कलाकृतियां तैयार करने का जिम्मा दिया. जिसे गुरु नंदलाल बोस ने कृपाल सिंह को दिया.
भारतीय संविधान के पेज पर जो हस्त शिल्प बॉडर पेंटिंग है उसकी डिजाइन कृपाल सिंह के हाथों हुई है. संविधान निर्माण में राजस्थान के योगदान के तौर पर प्रख्यात कलाकार कृपाल सिंह शेखावत ने जहां नंदलाल बोस के साथ चित्रकारी में योगदान दिया. वहीं वी. टी. कृष्णमाचारी, हीरालाल शास्त्री, खेतड़ी के सरदार सिंह, जसवंत सिंह, राज बहादुर, माणिक्य लाल वर्मा, गोकुल लाल असावा, रामचंद्र उपाध्याय, बलवंत सिंहा मेहता, दलेल सिंह और जयनारायण व्यास भी शामिल रहे.
कृपाल सिंह ने कला की शिक्षा शांति निकेतन जैसे प्रसद्धि कला संस्थान से ली और जापान के टोक्यो विश्वविद्यालय से ओरिएंटल आर्ट में डिप्लोमा भी प्राप्त किया. शांति निकेतन की कला शिक्षा ने जहां उन्हें भारतीय कला परम्परा की बारीकियों से अवगत कराया. तो वहीं, दूसरी ओर जापान में उन्होंने जापानी चित्रकला में बरते जाने वाले प्राकृतिक रंगों, स्याहियों और कागज से जुड़ी तकनीकी जानकारियों को जाना और समझा.
कृपाल सिंह की तीन बेटियों में से दो बेटियों ने हस्तशिल्प कला को आगे बढ़ाने का काम किया. कृपाल सिंह की छोटी बेटी मुकुंद राठौड़ बताती है कि पिता से मिले संस्कारों का ही परिणाम है की आज भी वो जयपुर की ब्लू पॉटरी को देश-विदेश तक पहुंचा पा रही हैं.
संविधान की उस मूल प्रति के बाद लीथोग्राफी से प्रिंट की गई हुबहू प्रतिकृति वर्तमान में देश के चुनिन्दा लोगों के पास है. जिनमें से एक प्रतिकृति कृपाल सिंह के परिवार के पास भी है, जिसे उन्होंने यादों के रुप में सजो कर रखा है.