कोटपूतली (जयपुर). कोटपूतली के सुंदरपुरा गांव की रांगड़ों की ढाणी पिछले 60 साल से रास्ते से महरूम है. यहां हालात ये हैं, कि जब खेत खाली नहीं होते तो साल के 8-9 महीने ये लोग घुट कर रह जाते है. ग्रामीणों के बाजार, अस्पताल या स्कूल जाने का एकमात्र जरिया है महज 2 फीट चौड़ी पगडंडी. इस पर भी फसली सीजन में तारबंदी कर दी जाती है. इतना ही नहीं तारबंदी और उसके आगे गड्ढा तक खोद दिया जाता है. लेकिन इन लोगों के पास तारों के बीच से गुजरने के अलावा कोई चारा नहीं रहता है. ऐसे में तारों में कई बार इनके कपड़े फटते हैं तो कई बार ये खुद भी जख्मी हो जाते हैं.
1962 से नहीं मिला रांगड़ों की ढाणी को रास्ता
रांगड़ों की ढाणी के हालात ये हैं, कि चौड़ा और बारहमासी रास्ता ना होने की वजह से ना तो रिश्तेदार यहां आते हैं और ना ही स्कूली बच्चों का पोषाहार ही स्कूल तक पहुंच पाता है. इन परिवारों को 1962 में सरकार ने यहां बसाया था. इस बस्ती के चारों तरफ निजी खातेदारी की जमीन है. पिछले 60 साल में प्रशासन से लेकर विधायक तक ग्रामीण अपनी परेशानी जता चुके हैं, लेकिन हर जगह से सिर्फ निराशा ही हाथ लगी.
पढ़ें- अलवर: करिरीया गांव के 700 से अधिक मतदाताओं ने किया चुनाव का बहिष्कार
खातेदारों की जमीन से रास्ता कौन दे
जिस जमीन से रास्ते की मांग की जा रही है, उन खातेदारों का कहना है, कि मुआवजा मिले तो रास्ता खोला जा सकता है. लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल ये सामने आता है, कि आखिर मुआवजा देगा कौन. वैसे मीडिया के संज्ञान लेने के बाद अब प्रशासन ने भी इस मामले में कुछ तत्परता दिखाई है.
पढ़ें- आफत ही आफत: आने-जाने के लिए एक आम रास्ता, वो भी बंद
पंचायत चुनाव के बहिष्कार का एलान
पिछले 60 साल में एक रास्ते की उम्मीद में यहां की कई पीढ़ियां चल बसी हैं. हर चुनाव में इनसे वादा करके वोट जरूर हासिल कर लिया जाता है, लेकिन मिलता कुछ नहीं है. ऐसे में अब इन परिवारों ने रास्ता ना मिलने पर पंचायत चुनावों के बहिष्कार का एलान कर दिया है.