जयपुर. आज हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी ट्री एंबुलेंस (Tree Ambulance) के बारे में जो सालों से पेड़ों को बचाने का काम (tree saving work) करती आ रही है. अब तक हजारों पेड़ों को सांसे देकर जिंदा कर चुकी है. इस ट्री एंबुलेंस में हर वह उपकरण मौजूद है जो एक पेड़ का जीवन बचाने के काम में आता है.
विद्याधर नगर निवासी सुशील अग्रवाल ने 7 साल पहले अपने एक साथी के साथ ट्री एंबुलेंस की शुरुआत की थी. पेड़ों को बचाने के लिए दो साथियों के साथ शुरू हुआ उनका सफर आज कारवां में तब्दील हो चुका है. 100 से ज्यादा लोग उनके कुनबे में शामिल है. सुशील अग्रवाल टीम 10 के साथ मिलकर सात सालों से पेड़ों को बचाने का काम कर रहे हैं.
हर दिन यह ट्री एंबुलेंस विद्याधर नगर इलाके में रोड पर निकलती है और पेड़ों को बचाने में महत्वपूर्ण रोल अदा कर रही है. सुशील अग्रवाल और टीम 10 का ही कमाल है कि विद्याधर नगर में 40 किलोमीटर की ग्रीन बेल्ट मौजूद है जिसकी खूबसूरती देखते ही बनती है.
सुशील अग्रवाल कहते हैं- 7 सालों में एक बार भी उन्होंने छुट्टी नहीं ली है. हर दिन अपने साथियों के साथ बाहर निकलते हैं और एंबुलेंस की सहायता से पेड़ों की देखभाल करते हैं. अग्रवाल ने बताया कि 5 जुलाई 2014 को इस एंबुलेंस की शुरुआत की गई थी.
अग्रवाल आगे कहते हैं- पेड़ से संबंधित कोई भी बीमारी हो उसका इलाज ट्री एम्बुलेंस से किया जाता है. जैसे- किसी पेड़ में दीमक लग गई हो (termites in the tree) किसी पेड़ की छटाई करनी हो, पानी डालना हो, खाद डालनी हो, टेड़े पेड़ को रस्सी से बांधकर सीधा करना, किसी पेड़ में कचरा पड़ा हो तो उसे साफ करना, पुराने ट्री गार्ड (old tree guard) को सही कर ऐसे पेड़ के लगाना जिसे उसकी आवश्यकता हो. यह सभी काम ट्री एम्बुलेंस से किया जा रहा है.
पेड़ से जुड़े हुए सारे काम जो उसे जीवित रखने के लिए जरूरी होते हैं वह सब ट्री एंबुलेंस के जरिए किये जाते हैं. सभी उपकरण भी ट्री एंबुलेंस में मौजूद रहते हैं. आईसीयू के पेड़ को भी इसी ट्री एंबुलेंस की सहायता से सही किया जाता है. ऐसे पेड़ों को थोड़े से पानी और देखभाल की आवश्यकता होती है.
इस एंबुलेंस के ऊपर एक बॉक्स भी बना हुआ है जिसमें पेड़ की देखभाल के दौरान मिलने वाले कबाड़ जैसे प्लास्टिक और कांच की बॉटल, डिब्बा, लोहे का सामान आदि को भर लिया जाता है. उसे फ्री में कबाड़ी को दिया जाता है. इससे पेड़ों के आस-पास सफाई रहती है और उन्हें पनपने का पूरा वातावरण मिलता है.
कैसे हुई ट्री एम्बुलेंस की शुरूआत ?
इस सवाल के जवाब में सुशील अग्रवाल कहते हैं- जब हम सुबह-सुबह घूमने जाते थे तो पेड़ दयनीय हालत में दिखते थे. कोई पेड़ पानी के बिना सूख रहा होता था तो कोई टेढ़ा हो जाता था. किसी में खाद की जरूरत थी और किसी को देखभाल की. इन सब दृश्य को देखकर ऐसा लगा कि ऐसा कोई साधन होना चाहिए जो इन पेड़ों को फिर से जीवित कर दें. इसलिए ट्री एंबुलेंस का आइडिया दिमाग में आया और तभी से इसकी शुरुआत कर दी गई.
सुशील अग्रवाल और उनकी टीम की मेहनत का ही नतीजा है कि विद्याधर नगर इलाके में करीब तीन लाख से ज्यादा पेड़ आज जीवित स्थिति में हैं. तीन लाख में से एक लाख पेड़ ट्री एंबुलेंस ग्रुप और टीम 10 ने मिलकर लगाए हैं.
इन पेड़ों की देखभाल ट्री एंबुलेंस से प्रतिदिन की जाती है और यह सब बिना किसी सरकारी सहायता से किया जाता है.
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि जब रोड बनती है तो पेड़ को चारों तरफ से कंक्रीट या डामर से पैक कर दिया जाता है. हम लोग विद्याधर नगर इलाके में स्थित ऐसे पेड़ों को खोदकर उन्हें कंक्रीट या डामर से मुक्त करते हैं और उसका ध्यान रखते हैं ताकि वह अच्छी तरह से पनप सकें.
ट्री एंबुलेंस ग्रुप की ओर से बूंद बूंद सिंचाई पद्धति का भी अच्छी तरह से उपयोग किया जा रहा है. 19 एमएम के पाइप से बूंद बूंद सिंचाई पद्धति से पानी पहुंचाने का काम कर रहे हैं ताकि पेड़ हरा भरा रह सके. इससे पानी भी कम खर्च होता है और चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है. अधिकतर फल और सब्जियों की खेती करने वाले किसान इसी तरह का पाइप का उपयोग कर बूंद बूंद सिंचाई पद्धति से खेती बाड़ी कर रहे हैं.
इस ट्री एंबुलेंस के अंदर होता है इतना सामान-
इस एंबुलेंस में लगभग वो सभी चीजें होती है जिससे पेड़ों को जीवनदान दिया जा सके. इसमें छोटी और बड़ी कैंची, अर्थ ओगर (पेड़ उगाने के लिए खड्डा खोदने का उपकरण). दंताली, पंजा, खाद, दीमक की दवाई होती है. इसके अलावा हथौड़ा, रस्सी स्प्रे मशीन, पानी के डिब्बे, फावड़ा, आरी, वायर, कटर और खुरपी मौजूद होती है.
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ऐसी परिस्थिति में टीम पर आर्थिक भार भी नहीं आता और पेड़ों को बचाने में मदद भी मिलती है. सुनील अग्रवाल कहते हैं- अपनी टीम की मदद से ही सालों से यह काम कर रहे हैं और अभी तक उन्हें किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं हुई. उन्होंने कहा ऐसे ही आगे भी यह काम जारी रहेगा.