जयपुर. मावठा यानि महावट...जहां बड़े-बड़े वटवृक्ष हुआ करते थे, लेकिन अब वहां ना वटवृक्ष बचे और ना मावठा में पानी बचा. हम बात कर रहे हैं जयपुर के आमेर महल के तल पर स्थित मावठा की. यह कृत्रिम झील है जिसे महल की सुरक्षा और सुंदरता को बढ़ाने के लिए बनाया गया था.
आमेर दुर्ग की पहाड़ी के सामने एक झील है, जिसे महावट बोला जाता था. बाद में अब इसे मावठा के नाम से जाना जाने लगा. महल में इसे माओटा सरोवर के नाम से जाना जाता है. जिसके एक छोर से एक किले में जाने का मार्ग है. महल की तलहटी पर बनी इस झील के पानी जब रात को महल का प्रतिबंध गिरता तो एक सुंदर महल की छवि देखते बनती है.
मानसून के मौसम में मावठा झील पानी से लबालब भर जाता है. आमेर महले की सामने यह झील दुर्ग की शोभा में चार चांद लगाती है, लेकिन मावठा के ऊपरी हिस्से पर हुए निर्माण ने यहां आने वाले पानी की आवक को रोक दिया है. हालात अब यह है कि यह पूरी तरीके से पानी के अभाव में खाली हो गया. जिस मावठा के पानी के भराव में यहां के हाथी अठखेलियां किया करते थे, आज वह एक एक बूंद को तरस रहा है.
पिछली सरकार ने बीसलपुर योजना से पानी लाया गया और को पूरा लबालब भर दिया था, लेकिन वक्त गुजरा योजना ठंडे बस्ते में गई और एक बार फिर मावठा बिल्कुल सूख गया है. आमेर विदेशी पर्यटकों का गढ़ माना जाता है. देसी विदेशी पर्यटक यहां की खूबसूरती को देखने आते हैं, लेकिन आज इसकी दुर्दशा ऐसी हो गई है. इसको देखकर निराश होते हैं. हालात यह है कि मावठा में पानी सूख जाने से आमेर के आस पास के क्षेत्र में जल स्तर में गिरावट आई है. अब लोग पानी को पानी को तरसने लगे हैं.
क्या है मावठा?
बताया जाता है कि पूर्व में इस झील के तट पर बड़े-बड़े वटवृक्ष हुआ करते थे. जिसके चलते इसका नाम महावट रखा गया. कालांतर में इसे मावठा कहा जाने लगा. यह 15वीं शताब्दी में बनाया गया था. इस में अरावली पहाड़ियों से बहकर आए हुए वर्षा जल संग्रहण होता था. आमेर महल और निकटवर्ती जनसाधारण के लिए यह पानी का मुख्य जल स्त्रोत था.
मावठा के निर्माण का समय
इतिहास कार राघवेंद्र सिंह मनोहर बताते है कि जयपुर के आमेर दुर्ग की तलहटी पर बने मावठा इसका निर्माण कच्छावा राजा जयसिंह के समय किया गया था. इस पास उद्यान भी जिजक नाम दुलाराम भाग है, जो महल की सुरक्षा एवं सुंदरता बढ़ाने के लिए किया गया था. वर्षा ऋतु में मावठा में पानी भर जाने पर यहां की सुंदरता देखने लायक हो जाती थी. मावठा हिल के बीच एक छोटा सा टापू बना है, जिस पर एक उद्यान भी है. इसे केसर क्यारी कहा जाता है, क्योंकि कभी इसमें सुगंधित कैसे बोई जाती थी, जिससे महल के निकट का वातावरण महत्व रहता था. महल में हाथियों को इस अवसर पर यहां जल क्रीड़ा कराई जाती थी.
योजना ने तोड़ा दम
पिछली सरकार ने भी कई योजना बनाई इन योजनाओं का भारी-भरकम बजट के बावजूद मावठा भर नहीं पाया. हालात ये है कि आमिर के ऊपरी हिस्से की पहाड़ियों पर हुए अतिक्रमण के कारण बारिश का पानी भी इस मामले में नहीं पहुंच पा रहा है. जबकि कई बार इसको लेकर सरकार की तरफ से अभियान चलाने के दावे भी किए गए, लेकिन यह सिर्फ दावे कागजों में ही चले धरातल पर इसका कोई परिणाम निकल के सामने नहीं आया. अब हालात यह है कि जिस मावठे को देखने के लिए देसी और विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते थे. अब इसकी सूखे के हालात को देखकर वह भी निराश होते हैं.
जल स्तर में आई गिरावट
मावठा में जब पानी भरा हुआ रहता था तो उस वक्त यहां के जल स्तर में बढ़ोत्तरी रहती, लेकिन जैसे जैसे मावठा में पानी सूखता चला गया यहां के आसपास के क्षेत्र में जलस्तर में भी गिरावट आ गई. हालात यही की 200 से 300 फीट गहराई पर भी पानी नहीं है. यहां के लोगों को अब टैंकरों पर आश्रित लेना पड़ता है, लेकिन वह टैंकर भी कई बार सरकारी उदासीनता के चलते हैं और कालाबाजारी के बीच क्षेत्र के लोगों को समय पर नहीं मिल पाते हैं. इसको लेकर क्षेत्र के लोग कई बार विरोध प्रदर्शन भी कर चुके हैं.