जयपुर. विधानसभा चुनाव में साल भर का वक्त बचा है. प्रदेश गहलोत सरकार ने 4 साल के शासन में कर्मचारियों को OPS सहित बड़ी सौगातें दी, लेकिन बावजूद उसके 8 लाख कर्मचारी जो की अलग-अलग संगठनों में होने के बावजूद सरकार के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं. ईटीवी भारत ने जब कर्मचारी संगठनों से आंदोलन को लेकर बात कि तो उन्होंने कहा कि सरकार ने 4 तक अपने ही कर्मचारियों से वार्ता नहीं की, संवादहीनता के बीच मजबूरन संगठनों को आंदोलन करना पड़ रहा (Reason of state government employees agitation) है.
चुनाव से पहले कर्मचारी नाखुश क्यों?: विधानसभा चुनाव में साल भर बचा है. प्रदेश में कमोबेश सभी कर्मचारी संगठन आंदोलन की राह पर हैं. 8 लाख कर्मचारी सरकार से नाखुश हैं. सरकार ने OPS सहित कई मांगों को पूरा किया. सीएम गहलोत कई बार इस बात को लेकार भी कहते रहे कि वो कर्मचारियों का पूरा ख्याल रख रहे हैं. बावजूद इसके प्रदेश के कमोबेश सभी कर्मचारी संगठनों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन का बिगुल बजा कर सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी.
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कर्मचारी संगठनों की नाराजगी है कि सरकार ने इन चार सालों उनसे संवाद ही नहीं किया. 4 बजट पेश कर कर्मचारियों के लिए 15 से ज्यादा सौगात देने की बात सरकार करती है, लेकिन क्या सरकार ने कभी किसी भी महासंघ के साथ वार्ता की, कर्मचारी क्या चाहता है? जो सरकार दे रही है, वो सही है या नहीं? कर्मचारी नेताओं ने कहा कि सीएम गहलोत कहते हैं कमर्चारियों को बिना मांगे OPS सहित कई सौगात दीं. OPS की क्या स्थिति है, सबके सामने है. जब तक सरकार कर्मचारियों से संवाद नहीं करेगी, तब तक कर्मचारियों की मांगों को पूरा नहीं किया जा सकता और अब कर्मचारी 2023 के चुनाव में सरकार को सबक सिखाने को लेकर तैयार है.
OPS देने से क्या PFRDA का क्या?: अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी महासंघ एकीकृत (कवियागुट) के प्रदेश महामंत्री तेज सिंह राठौड़ ने कहा कि राज्य सरकार ने चुनाव पूर्व जारी किये गये जन घोषणा-पत्र के एक भी बिंदू की पालना नहीं कर अपने ही वायदों से मुकर रही है. OPS को लेकर बार-बार सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है, लेकिन ये तो स्पष्ठ करे कि PFRDA का क्या होगा. जिन कर्मचारियों ने PFRDA के ऊपर लोन लिया उनसे रिकवरी क्यों? संविदा कर्मचारियों को स्थायी करने के वायदे का क्या हुआ? ये वो सवाल हैं जिनके जवाब कर्मचारी सरकार से मांग रहे हैं.
राठौड़ ने कहा कि राज्य सरकार नौकरशाहों के चुंगल में फंस गई है. नौकरशाह सरकार की छवि खराब कराने में लगे हुए हैं. राज्य के मुख्यमंत्री धृतराष्ट्र की भूमिका में हैं. सरकार के 4 साल सरकार हो गए, लेकिन एक बार भी संवाद नहीं किया गया है. महासंघ से सम्बद्ध विभिन्न संवर्गों की ओर से किये गये आंदोलनों में सरकार और संगठनों के मध्य हुए लिखित समझौतों/सहमतियों को लागू नहीं किया जा रहा है, जिससे राज्य कर्मचारियों में सरकार के प्रति भयंकर असंतोष और आक्रोश व्याप्त है.
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घोषणा पत्र की कोई मांग पूरी नहीं: अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी महासंघ एकीकृत (राठौड़ गुट) के प्रदेश अध्यक्ष गजेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि राजस्थान सरकार पिछले 4 साल से सत्ता में राजस्थान के कर्मचारी से अभी तक कोई संवाद नहीं किया. सरकार ने जो घोषणा कर्मचारी कल्याण कई बिंदु को लेकर घोषणा की थी, लेकिन उनमें से किसी बिंदु पर सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया. घोषणा पत्र में वेतन विसंगति दूर करना, संविदा के कर्मचारियों को नियमित करने सहित कई बिंदु थे. लेकिन इसके बावजूद सरकार ने अभी तक कोई भी घोषणा पूरी नहीं की. संविदा कर्मचारियों के लिए 2022 नियम बनाए वह कर्मचारियों के लिए छलावा है.
राजस्थान कर्मचारी पिछले कई दिनों से सरकार द्विपक्षीय वार्ता की मांग कर रहा है लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं. मजबूरन अब आंदोलन करना पड़ रहा है. राठौड़ ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से कर्मचारियों की समस्याओं के निराकरण के लिए कमेटियों का गठन किया गया है जो हास्यास्पद है. विगत सरकार की गठित डीसी सामंत कमेटी की रिपोर्ट उजागर किये बगैर ही खेमराज कमेटी का गठन किया गया जो रिपोर्ट आज तक लम्बित है. राजस्थान के कर्मचारी नाराज हैं और अब आक्रोशित हैं और अब समय आ गया है कि यह आखिरी बजट है. इस बजट में सरकार पर दबाव बनाने के लिए आंदोलन करे.
सभी मांगें वित्तीय नहीं: अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी महासंघ एकीकृत (महेंद्र सिंह गुट) के प्रदेश महामंत्री विपिन कुमार शर्मा ने कहा कि इस सरकार में दुर्भाग्य रहा कि कर्मचारियों से अपनी सरकार ने कोई संवाद नहीं किया. ऐसा नहीं है कि कर्मचारी संगठनों के मांग पत्र में सभी मांगे वित्तीय मांगे हो. कई मांगे ऐसी भी हैं जो वित्तीय मांगे हैं. जैसे पदनाम संशोधन यह वो मांग है जो चर्चा करके पूरी की जा सकती है. इसमें सरकार को कोई वित्तीय भार भी नहीं आएगा. शर्मा ने कहा कि इस बार कर्मचारियों को निराशा इसलिए रही कि 4 साल में सरकार ने भले ही कर्मचारियों को लेकर कई घोषणाओं के दावे किए हैं, लेकिन कर्मचारी संगठनों से कोई बैठकर चर्चा नहीं की. मजबूरन अब कर्मचारियों को आंदोलन करना पड़ रहा है. जनवरी में प्रदेश के कर्मचारी महासंघों का विरोध सरकार को झेलना पड़ेगा.
ये है प्रमुख महासंघ की मांगेः
- कर्मचारियों की वेतन विसंगति दूर कर वर्ष 2013 की अनुसूची 5 के अनुसार सातवें वेतन आयोग में वेतन निर्धारण किया जावे और न्यूनतम वेतन 26000 किया जावे.
- 9, 18 एवं 27 वर्ष की सेवा पर एसीपी के स्थान पर 7, 14, 21 और 28 वर्ष की सेवा पर पदोन्नति पद का वेतनमान स्वीकृत किया जावे.
- विभिन्न कर्मचारी संगठनों की ओर से किए गए समझौतों और सहमतियों को लागू किया जावे.
- सहायक कर्मचारियों को एमटीएस घोषित किया जाए.
- नियमित पदों पर संविदाकार्मिकों के भर्ती के लिए जारी संविदा नियम 2022 को प्रत्याहारित कर रिक्त पदों पर नियुक्त संविदा कार्मिकों व अस्थाई कार्मिकों को नियमित किया जाए.
- परादर्शी स्थानांतरण नीति जारी की जाए.
- प्रदेश में लागू की गई पुरानी पेंशन योजना के पश्चात कर्मचारियों के एनपीएस की राशि जी पीएफ खाते में स्थानांतरित की जाए तथा कर्मचारियों की ओर से लिए गए ऋण की वसूली के जारी आदेशों को प्रत्याहारित किया जाए.
- प्रदेश के मंत्रालयिक कर्मचारियों को शासन सचिवालय के समान वेतन भत्ते स्वीकृत किए जाए.
- कर्मचारी संगठनों के धरना प्रदर्शन पर रोक के लिए सरकार की ओर से लिए अलोकतांत्रिक निर्णय कर जारी किए गए 'नो वर्क नो पे' के आदेश 5 अक्टूबर, 2018 को प्रत्याहरित किया जाए.
- तृतीय श्रेणी शिक्षकों के स्थानांतरण किए जाए.
- शिक्षा सेवा नियमों 2021 से गत 2 वर्षों से पदोन्नतियां रुकी हुई हैं, इनमें आवश्यक संशोधन किए जाएं.
- कर्मचारी कल्याण बोर्ड का गठन किया जाए.
- खेमराज कमेटी की रिपोर्ट जल्द लागू करो.
- 30 अक्टूबर, 2017 के आदेश को विलोपित करते हुए 1 जुलाई, 2013 के आदेश को लागू करो.
- मंत्रालय कर्मचारियों को सचिवालय के समान वेतन और भत्ते दिया.
- विभिन्न संगठनों के कैडर रिव्यू एवं पदनाम परिवर्तन किया जाए.