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आजादी के बाद से अब तक पूर्व राज परिवारों की लोकतांत्रिक सरकार में रही है सक्रियता, जानें इस बार के समीकरण

Rajasthan Assembly Election 2023, आजादी के बाद से अब तक पूर्व राज परिवारों की लोकतांत्रिक सरकार में सक्रियता बनी रही है. 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव से लेकर वर्तमान विधानसभा चुनाव 2023 तक में कई पूर्व राज परिवारों के सदस्य चुनावी मैदान में लगातार अपना भाग्य आजमाते आ रहे हैं. ऐसे में इस बार के चुनाव में भी कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.

Rajasthan Assembly Election 2023
Rajasthan Assembly Election 2023
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 25, 2023, 6:04 AM IST

इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत

जयपुर. आजादी के बाद से अब तक राजस्थान के पूर्व राज परिवारों की लोकतांत्रिक सरकार में सक्रियता रही है. फिर चाहे साल 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव की बात हो या फिर वर्तमान विधानसभा चुनाव 2023 की. 1952 में सीएम पद के उम्मीदवार जयनारायण व्यास को विधानसभा चुनाव में हराने वाले भी पूर्व राजघराने से आने वाले हनवंत सिंह ही थे. उस दौर में 160 विधानसभा सीट में से पूर्व राज परिवार से आने वाले 50 से ज्यादा प्रत्याशी चुनाव जीत थे और इस बार भी वसुंधरा राजे से लेकर दीया कुमारी और कई दूसरे पूर्व राजघराने के प्रत्याशियों की साख भी दांव पर लगी है.

पूर्व महाराजा हनवंत सिंह ने की थी राजस्थान की अगुवाई : राजस्थान के पूर्व राज परिवार सत्ता में रहने के लिए चुनावी मैदान में उतरते रहे हैं. पूर्व राज परिवारों के सदस्यों का जुड़ाव राम राज्य परिषद को समर्थन देने से लेकर भाजपा और कांग्रेस का हाथ थामने तक रहा है. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया- ''जब राजस्थान का एकीकरण हुआ था, उस वक्त राजपूत समाज राजी नहीं था. राजपूत समाज को लगता था कि उनका वर्तमान में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. इसलिए 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव को उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया. स्वामी करपात्री की राम राज्य परिषद से राजपूत सामंत चुनाव में भाग लेने के लिए उतरे. राजस्थान की अगुवाई जोधपुर के पूर्व महाराजा हनवंत सिंह ने की थी. वो सामंत शाही के एक प्रचारक के रूप में उभर कर आए. उस दौर में उन्होंने कांग्रेस के बड़े नेता जयनारायण व्यास को चुनाव हराया था. हालांकि, रिजल्ट आने से पहले ही एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी, लेकिन जब रिजल्ट आया तब 50 से ज्यादा सामंत जीत कर आए थे. वहीं, बाद में 22 सामंत टूट कर कांग्रेस में चले गए थे.''

Rajasthan Assembly Election 2023
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023

इसे भी पढ़ें - चित्तौड़गढ़: 5 विधानसभा सीटों पर 13 लाख से ज्यादा कर सकेंगे मताधिकार का प्रयोग, सुरक्षा के कड़े इंतजाम

सामंतों को कांग्रेस से जोड़ने में जयनारायण व्यास का रहा अहम योगदान : इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया- ''हालांकि, माणिक्य लाल वर्मा ने सामंतों को राजनीति में देख आपत्ति जताई थी, जबकि जयनारायण व्यास ने सामंतों को पार्टी से जोड़ने का काम किया था. उन्हें मिलाकर ही कांग्रेस का मंत्रिमंडल बनाया गया था, जिस पर आगे नाराजगी जताई गई. इसके चलते उन्हें अपना मुख्यमंत्री पद भी छोड़ना पड़ा और फिर मोहनलाल सुखाड़िया करीब 17 सालों तक प्रदेश के सीएम रहे. उस दौर में पूर्व महारावल लक्ष्मण सिंह भी अपोजिशन के लीडर रहे. उसके बाद भवानी सिंह लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से मैदान में उतरे थे.''

1962 में रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीती गायत्री देवी : भगत ने बताया- ''भारतीय राजनीति में एक स्वतंत्र पार्टी भी सामने आई थी, जिसने राजपूत सामंतों और पूर्व शासकों को टटोला था. उस वक्त उनका सबसे ज्यादा साथ जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी ने दिया था. साल 1962 में गायत्री देवी रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीत कर आई. उसके बाद 1967 और 1972 के चुनाव में भी वो लगातार जीत दर्ज की. उस दौर में उनका ये रुतबा था कि जयपुर में तो कांग्रेस हाशिए पर चली गई थी. वहीं, पूर्व जयपुर राज परिवार के ही पृथ्वी सिंह ने मालपुरा से चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के नेता दामोदर लाल व्यास को हराया था. इसी तरह पूर्व महारानी गायत्री देवी के पुत्र जय सिंह ने दौसा से चुनाव जीता था.''

Rajasthan Assembly Election 2023
दांव पर लगी पूर्व राज परिवारों की प्रतिष्ठा

इसे भी पढ़ें - भरतपुर संभाग में गत चुनाव में भाजपा को मिली थी शिकस्त, 19 में से 1 सीट जीती...इस बार 19 में से 9 हॉट सीट

इस बार दांव पर लगी इनकी प्रतिष्ठा : धौलपुर पूर्व राज परिवार की बहू वसुंधरा राजे दो बार प्रदेश की सीएम बनी और पांच बार झालावाड़ से सांसद रह चुकी हैं. इस बार भी वो झालरापाटन से चुनावी मैदान में हैं. वहीं, जयपुर राजघराने की पूर्व राजमाता गायत्री देवी की विरासत को उनकी पोती दीया कुमारी आगे बढ़ा रही हैं. वो विद्याधर नगर से चुनावी मैदान में हैं. इनके अलावा पूर्व भरतपुर राजघराने के विश्वेंद्र सिंह वर्तमान में कांग्रेस सरकार में मंत्री हैं और इस बार फिर डीग-कुम्हेर से चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं, पूर्व बीकानेर राज परिवार से जुड़ी सिद्धि कुमारी बीकानेर पूर्व, पूर्व उदयपुर राज परिवार के विश्वराज सिंह नाथद्वारा से, पूर्व कोटा राज परिवार की कल्पना देवी लाडपुरा से चुनावी मैदान में अपना भाग्य आजमा रही हैं.

भाजपा के करीबी और कांग्रेस से दूरी : पूर्व राजपरिवारों के भाजपा के करीबी और कांग्रेस से दूरी पर इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने कहा- ''शासक वर्ग कांग्रेस की नीतियों की वजह से उनके खिलाफ था और जैसे-जैसे समय बीतता गया टकराव बढ़ता गया. आजद भारत में शासक वर्ग के विशेष अधिकार बंद करना भी इसके पीछे एक बड़ा कारण था, जिसकी वजह से शासक कांग्रेस से नाराज थे. उनका तर्क था कि आजादी के वक्त उनसे कुछ और वादे किए गए थे और आजादी के बाद कुछ और ही किया गया. हालांकि, आम लोगों की आज भी पूर्व राज परिवार को लेकर मान्यता और भावनाएं जुड़ी हुई हैं और ये भावना पूर्व राज परिवारों को लेकर पूरी तरह पॉजिटिव हैं. इस बार जो पूर्व राज परिवार से जुड़े प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं, उनका भविष्य क्या रहेगा, ये 25 नवंबर को होने वाले मतदान पर तय करेगा.

इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत

जयपुर. आजादी के बाद से अब तक राजस्थान के पूर्व राज परिवारों की लोकतांत्रिक सरकार में सक्रियता रही है. फिर चाहे साल 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव की बात हो या फिर वर्तमान विधानसभा चुनाव 2023 की. 1952 में सीएम पद के उम्मीदवार जयनारायण व्यास को विधानसभा चुनाव में हराने वाले भी पूर्व राजघराने से आने वाले हनवंत सिंह ही थे. उस दौर में 160 विधानसभा सीट में से पूर्व राज परिवार से आने वाले 50 से ज्यादा प्रत्याशी चुनाव जीत थे और इस बार भी वसुंधरा राजे से लेकर दीया कुमारी और कई दूसरे पूर्व राजघराने के प्रत्याशियों की साख भी दांव पर लगी है.

पूर्व महाराजा हनवंत सिंह ने की थी राजस्थान की अगुवाई : राजस्थान के पूर्व राज परिवार सत्ता में रहने के लिए चुनावी मैदान में उतरते रहे हैं. पूर्व राज परिवारों के सदस्यों का जुड़ाव राम राज्य परिषद को समर्थन देने से लेकर भाजपा और कांग्रेस का हाथ थामने तक रहा है. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया- ''जब राजस्थान का एकीकरण हुआ था, उस वक्त राजपूत समाज राजी नहीं था. राजपूत समाज को लगता था कि उनका वर्तमान में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. इसलिए 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव को उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया. स्वामी करपात्री की राम राज्य परिषद से राजपूत सामंत चुनाव में भाग लेने के लिए उतरे. राजस्थान की अगुवाई जोधपुर के पूर्व महाराजा हनवंत सिंह ने की थी. वो सामंत शाही के एक प्रचारक के रूप में उभर कर आए. उस दौर में उन्होंने कांग्रेस के बड़े नेता जयनारायण व्यास को चुनाव हराया था. हालांकि, रिजल्ट आने से पहले ही एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी, लेकिन जब रिजल्ट आया तब 50 से ज्यादा सामंत जीत कर आए थे. वहीं, बाद में 22 सामंत टूट कर कांग्रेस में चले गए थे.''

Rajasthan Assembly Election 2023
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023

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सामंतों को कांग्रेस से जोड़ने में जयनारायण व्यास का रहा अहम योगदान : इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया- ''हालांकि, माणिक्य लाल वर्मा ने सामंतों को राजनीति में देख आपत्ति जताई थी, जबकि जयनारायण व्यास ने सामंतों को पार्टी से जोड़ने का काम किया था. उन्हें मिलाकर ही कांग्रेस का मंत्रिमंडल बनाया गया था, जिस पर आगे नाराजगी जताई गई. इसके चलते उन्हें अपना मुख्यमंत्री पद भी छोड़ना पड़ा और फिर मोहनलाल सुखाड़िया करीब 17 सालों तक प्रदेश के सीएम रहे. उस दौर में पूर्व महारावल लक्ष्मण सिंह भी अपोजिशन के लीडर रहे. उसके बाद भवानी सिंह लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से मैदान में उतरे थे.''

1962 में रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीती गायत्री देवी : भगत ने बताया- ''भारतीय राजनीति में एक स्वतंत्र पार्टी भी सामने आई थी, जिसने राजपूत सामंतों और पूर्व शासकों को टटोला था. उस वक्त उनका सबसे ज्यादा साथ जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी ने दिया था. साल 1962 में गायत्री देवी रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीत कर आई. उसके बाद 1967 और 1972 के चुनाव में भी वो लगातार जीत दर्ज की. उस दौर में उनका ये रुतबा था कि जयपुर में तो कांग्रेस हाशिए पर चली गई थी. वहीं, पूर्व जयपुर राज परिवार के ही पृथ्वी सिंह ने मालपुरा से चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के नेता दामोदर लाल व्यास को हराया था. इसी तरह पूर्व महारानी गायत्री देवी के पुत्र जय सिंह ने दौसा से चुनाव जीता था.''

Rajasthan Assembly Election 2023
दांव पर लगी पूर्व राज परिवारों की प्रतिष्ठा

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इस बार दांव पर लगी इनकी प्रतिष्ठा : धौलपुर पूर्व राज परिवार की बहू वसुंधरा राजे दो बार प्रदेश की सीएम बनी और पांच बार झालावाड़ से सांसद रह चुकी हैं. इस बार भी वो झालरापाटन से चुनावी मैदान में हैं. वहीं, जयपुर राजघराने की पूर्व राजमाता गायत्री देवी की विरासत को उनकी पोती दीया कुमारी आगे बढ़ा रही हैं. वो विद्याधर नगर से चुनावी मैदान में हैं. इनके अलावा पूर्व भरतपुर राजघराने के विश्वेंद्र सिंह वर्तमान में कांग्रेस सरकार में मंत्री हैं और इस बार फिर डीग-कुम्हेर से चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं, पूर्व बीकानेर राज परिवार से जुड़ी सिद्धि कुमारी बीकानेर पूर्व, पूर्व उदयपुर राज परिवार के विश्वराज सिंह नाथद्वारा से, पूर्व कोटा राज परिवार की कल्पना देवी लाडपुरा से चुनावी मैदान में अपना भाग्य आजमा रही हैं.

भाजपा के करीबी और कांग्रेस से दूरी : पूर्व राजपरिवारों के भाजपा के करीबी और कांग्रेस से दूरी पर इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने कहा- ''शासक वर्ग कांग्रेस की नीतियों की वजह से उनके खिलाफ था और जैसे-जैसे समय बीतता गया टकराव बढ़ता गया. आजद भारत में शासक वर्ग के विशेष अधिकार बंद करना भी इसके पीछे एक बड़ा कारण था, जिसकी वजह से शासक कांग्रेस से नाराज थे. उनका तर्क था कि आजादी के वक्त उनसे कुछ और वादे किए गए थे और आजादी के बाद कुछ और ही किया गया. हालांकि, आम लोगों की आज भी पूर्व राज परिवार को लेकर मान्यता और भावनाएं जुड़ी हुई हैं और ये भावना पूर्व राज परिवारों को लेकर पूरी तरह पॉजिटिव हैं. इस बार जो पूर्व राज परिवार से जुड़े प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं, उनका भविष्य क्या रहेगा, ये 25 नवंबर को होने वाले मतदान पर तय करेगा.

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