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जब शनिदेव ने भोलनाथ से कहा- कल सवा प्रहर के लिए मेरी वक्र दृष्टि रहेगी आप पर

नव ग्रहों में 7वें ग्रह माने जाने वाले शनिदेव से लोग सबसे ज्‍यादा डरते जरूर हैं. लेकिन वह किसी का बुरा नहीं करते हैं. वह लोगों के कर्मों के हिसाब से उनके साथ न्‍याय करते हैं. शायद इसलिए उन्‍हें न्‍यायाधीश के रूप में भी पहचाना जाता है.

जयपुर खबर, शनि देव स्पेशल न्यूज, pooja vidhi jaipur news, shani dev saturday special
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Published : Sep 14, 2019, 7:51 AM IST

Updated : Sep 14, 2019, 8:31 AM IST

जयपुर. शास्‍त्रों के मुताबिक शनिदेव सूर्य देव और देवी छाया के पुत्र हैं. इनका जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या को हुआ था. शुद्ध मन से प्रत्‍येक शनिवार को व्रत रखने से शनि अत्‍यंत प्रसन्‍न होते हैं. ऐसा करने वालों पर उनकी कुपित दृष्‍टि नहीं पड़ती है.

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नव ग्रहों में सातवें ग्रह है शनि

पौराणिक कथा के अनुसार एक समय शनि देव भगवान शंकर के धाम हिमालय पहुंचे. उन्होंने अपने गुरुदेव भगवान शंकर को प्रणाम कर उनसे आग्रह किया. हे प्रभु! मैं कल आपकी राशि में आने वाला हूं. अर्थात मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ने वाली है. शनिदेव की बातें सुनकर भगवान शंकर अचंभित रह गए. उन्होंने कहा कि हे शनिदेव आप कितने समय तक अपनी वक्र दृष्टि मुझ पर रखेंगे.

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शनि पहुंचे भगवान शंकर से मिलने

पढ़ें- समग्र शिक्षा हासिल करने के लिए गांधीवादी रास्ता एक बेहतर विकल्प

शनिदेव बोले, 'हे भोलेनाथ' कल सवा प्रहर के लिए आप पर मेरी वक्र दृष्टि रहेगी. शनिदेव की बात सुनकर भगवन शंकर चिंतित हो गए और शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए उपाय सोचने लगे. शनि की दृष्टि से बचने अगले दिन भगवन शंकर धरतीलोक आ गए. भगवान शंकर ने शनिदेव और उनकी वक्र दृष्टि से बचने के लिए एक हाथी का रूप धारण कर लिया. भगवान शंकर को हाथी के रूप में सवा प्रहर तक का समय व्यतीत करना पड़ा. साथ ही शाम होने पर भगवान शंकर ने सोचा कि अब दिन का समय बीत चुका है. शनिदेव की दृष्टि का भी उन पर कोई असर नहीं होगा. इसके बाद भगवान शंकर फिरसे कैलाश पर्वत वापस आ गए.

पढे़ं- कंडेल सत्याग्रह में शामिल होने छत्तीसगढ़ आए थे गांधी, अधिकारियों ने डर से आदेश वापस ले लिया था

भगवान शंकर प्रसन्न मुद्रा में जैसे ही कैलाश पर्वत पर पहुंचे. उन्होंने शनिदेव को उनका इंतजार करते पाया. भगवान शंकर को देख कर शनिदेव ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया. भगवान शंकर मुस्कराकर शनिदेव से बोले, आपकी दृष्टि का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ. यह सुनकर शनि देव ने मुस्कराकर कहा. मेरी दृष्टि से न तो देव बच सकते हैं और न ही दानव. यहां तक कि आप भी मेरी दृष्टि से बच नहीं पाए.

इस प्रकार करे शनिदेव की अराधना

शनिवार को सुबह उठकर नहा-धोकर शुद्ध हों जाएं. इसके बाद लकड़ी के पाटे पर एक काला कपड़ा बिछाकर उस पर शनिदेव की प्रतिमा रखें. इसके बाद उनके पाटे के सामने के दोनों कोनों में घी का दीपक जलाएं. फिर शनिदेव को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र से स्नान कराएं. उन पर काले या फिर नीले रंग के फूल चढाएं. इसके बाद उनके गुलाल, सिंदूर, कुमकुम और काजल लगाए. पूजा में तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य समर्पित करें. इस दौरान शनि मंत्र का कम से कम एक माला जप करें.

जयपुर. शास्‍त्रों के मुताबिक शनिदेव सूर्य देव और देवी छाया के पुत्र हैं. इनका जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या को हुआ था. शुद्ध मन से प्रत्‍येक शनिवार को व्रत रखने से शनि अत्‍यंत प्रसन्‍न होते हैं. ऐसा करने वालों पर उनकी कुपित दृष्‍टि नहीं पड़ती है.

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नव ग्रहों में सातवें ग्रह है शनि

पौराणिक कथा के अनुसार एक समय शनि देव भगवान शंकर के धाम हिमालय पहुंचे. उन्होंने अपने गुरुदेव भगवान शंकर को प्रणाम कर उनसे आग्रह किया. हे प्रभु! मैं कल आपकी राशि में आने वाला हूं. अर्थात मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ने वाली है. शनिदेव की बातें सुनकर भगवान शंकर अचंभित रह गए. उन्होंने कहा कि हे शनिदेव आप कितने समय तक अपनी वक्र दृष्टि मुझ पर रखेंगे.

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शनि पहुंचे भगवान शंकर से मिलने

पढ़ें- समग्र शिक्षा हासिल करने के लिए गांधीवादी रास्ता एक बेहतर विकल्प

शनिदेव बोले, 'हे भोलेनाथ' कल सवा प्रहर के लिए आप पर मेरी वक्र दृष्टि रहेगी. शनिदेव की बात सुनकर भगवन शंकर चिंतित हो गए और शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए उपाय सोचने लगे. शनि की दृष्टि से बचने अगले दिन भगवन शंकर धरतीलोक आ गए. भगवान शंकर ने शनिदेव और उनकी वक्र दृष्टि से बचने के लिए एक हाथी का रूप धारण कर लिया. भगवान शंकर को हाथी के रूप में सवा प्रहर तक का समय व्यतीत करना पड़ा. साथ ही शाम होने पर भगवान शंकर ने सोचा कि अब दिन का समय बीत चुका है. शनिदेव की दृष्टि का भी उन पर कोई असर नहीं होगा. इसके बाद भगवान शंकर फिरसे कैलाश पर्वत वापस आ गए.

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भगवान शंकर प्रसन्न मुद्रा में जैसे ही कैलाश पर्वत पर पहुंचे. उन्होंने शनिदेव को उनका इंतजार करते पाया. भगवान शंकर को देख कर शनिदेव ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया. भगवान शंकर मुस्कराकर शनिदेव से बोले, आपकी दृष्टि का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ. यह सुनकर शनि देव ने मुस्कराकर कहा. मेरी दृष्टि से न तो देव बच सकते हैं और न ही दानव. यहां तक कि आप भी मेरी दृष्टि से बच नहीं पाए.

इस प्रकार करे शनिदेव की अराधना

शनिवार को सुबह उठकर नहा-धोकर शुद्ध हों जाएं. इसके बाद लकड़ी के पाटे पर एक काला कपड़ा बिछाकर उस पर शनिदेव की प्रतिमा रखें. इसके बाद उनके पाटे के सामने के दोनों कोनों में घी का दीपक जलाएं. फिर शनिदेव को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र से स्नान कराएं. उन पर काले या फिर नीले रंग के फूल चढाएं. इसके बाद उनके गुलाल, सिंदूर, कुमकुम और काजल लगाए. पूजा में तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य समर्पित करें. इस दौरान शनि मंत्र का कम से कम एक माला जप करें.

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Arvind


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Last Updated : Sep 14, 2019, 8:31 AM IST
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