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भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में कई नेता, इस बार राजे नहीं संघ की राय रहेगी अहम

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Published : Jun 30, 2019, 7:56 PM IST

मदन लाल सैनी के निधन के बाद खाली हुए राजस्थान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के पद पर इस बार कौन बैठेगा. सबकी निगाहें इसी बात पर टिकी है. हालांकि पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी के कई नेता कतार में हैं. कुछ जातिगत आधार पर तो कुछ संघ पृष्ठभूमि के चलते इस दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं.

प्रदेश अध्यक्ष पद के दावेदार कई

जयपुर. मदन लाल सैनी के स्वर्गवास के बाद अब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद के लिए नेताओं में दौड़ शुरू हो चुकी है. इस पद के लिए पार्टी में कई दावेदार है लेकिन अंतिम निर्णय में इस बार वसुंधरा राजे नहीं बल्कि आरएसएस की अहम भूमिका रहेगी.

मदन लाल सैनी के निधन के बाद खाली हुए राजस्थान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के पद पर इस बार कौन बैठेगा. सबकी निगाहें इसी बात पर टिकी है. हालांकि पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी के कई नेता कतार में हैं. कुछ जातिगत आधार पर तो कुछ संघ पृष्ठभूमि के चलते इस दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं. दौड़ में शामिल नेताओं में चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी, विधायक सतीश पूनिया और मदन दिलावर और विधायक दल के उपनेता राजेन्द्र राठौड़ का नाम सबसे प्रमुख माना जा रहा है.

प्रदेश अध्यक्ष पद के दावेदार कई

हालांकि पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के नाम की चर्चा भी यदा-कदा चलती है लेकिन अनुभव के लिहाज से इस पद पर राठौड़ को मौका मिलना बेहद मुश्किल है. बात करें सीपी जोशी की तो ब्राह्मण समाज से आने वाले सीपी जोशी पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की पसंद में शुमार है. संघ पृष्ठभूमि के साथ ही ब्राह्मण समाज से होना सीपी जोशी की प्रमुख ताकत है. वहीं संघ पृष्ठभूमि से आने वाले पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी भी ब्राह्मण समाज से आते हैं और संभवत चतुर्वेदी के नाम पर केंद्र के साथ ही वसुंधरा राजे खेमे की भी मौन स्वीकृति रह सकती है.

यदि ब्राह्मण समाज से इतर जाने का फैसला लिया गया तो फिर पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और विधायक सतीश पूनिया का नाम सबसे आगे माना जा सकता है. पुनिया संघनिष्ठ होने के साथ जाट समाज से आते है वहीं बात की जाय मदन दिलावर की तो वो भी आरएसएस की पसंद माने जाते है. राजपूत समाज से आने वाले पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ भी पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद पर पहुंचने की चाहत रखते हैं उसके लिए लगातार लॉगइन में भी जुटे हैं हालांकि संघ पृष्ठभूमि से ना होना उनकी एकमात्र कमजोरी है.

जाट, राजपूत, वैश्य व दलित को मिल चुका मौका इसलिए ब्राह्मण पर फोकस

लोकसभा चुनाव के बाद बने मोदी मंत्रिमंडल में राजस्थान से जाट राजपूत और दलित समाज जाने वाले सांसदों को मंत्री बनाया गया है वहीं लोकसभा स्पीकर के पद पर वैश्य समाज से आने वाले राजस्थान के ओम बिरला को बैठाया गया है. ऐसे में राजस्थान से ब्राह्मण समाज को मंत्रिमंडल में मौका नहीं मिलने की नाराजगी दूर करने के लिए ब्राह्मण समाज से आने वाले किसी नेता को पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए आगे किया जा सकता है.

इस बार राजे नहीं संघ की राय रखेगी मायने

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर चुनाव के जरिए किसी नेता को बैठाया जाएगा लेकिन पार्टी की परंपरा रही है की प्रदेश अध्यक्ष का नाम सर्वसम्मति से तय कर दिया जाता है. पिछली बार अशोक परनामी के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर जो विवाद हुआ वह सबके सामने रहा और उसमें वसुंधरा राजे की भी खूब चली लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. लोकसभा चुनाव हो चुके हैं और परिणाम भी पार्टी के हित में ही है. लोकसभा चुनाव में राजस्थान की 25 सीटों पर भाजपा व सहयोगियों का कब्जा रहा इसमें प्रदेश नेताओं से ज्यादा रोल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रहा. यही कारण है कि इस बार प्रदेशाध्यक्ष चयन में पार्टी राज्य से ज्यादा महत्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी देगी.

जयपुर. मदन लाल सैनी के स्वर्गवास के बाद अब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद के लिए नेताओं में दौड़ शुरू हो चुकी है. इस पद के लिए पार्टी में कई दावेदार है लेकिन अंतिम निर्णय में इस बार वसुंधरा राजे नहीं बल्कि आरएसएस की अहम भूमिका रहेगी.

मदन लाल सैनी के निधन के बाद खाली हुए राजस्थान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के पद पर इस बार कौन बैठेगा. सबकी निगाहें इसी बात पर टिकी है. हालांकि पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी के कई नेता कतार में हैं. कुछ जातिगत आधार पर तो कुछ संघ पृष्ठभूमि के चलते इस दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं. दौड़ में शामिल नेताओं में चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी, विधायक सतीश पूनिया और मदन दिलावर और विधायक दल के उपनेता राजेन्द्र राठौड़ का नाम सबसे प्रमुख माना जा रहा है.

प्रदेश अध्यक्ष पद के दावेदार कई

हालांकि पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के नाम की चर्चा भी यदा-कदा चलती है लेकिन अनुभव के लिहाज से इस पद पर राठौड़ को मौका मिलना बेहद मुश्किल है. बात करें सीपी जोशी की तो ब्राह्मण समाज से आने वाले सीपी जोशी पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की पसंद में शुमार है. संघ पृष्ठभूमि के साथ ही ब्राह्मण समाज से होना सीपी जोशी की प्रमुख ताकत है. वहीं संघ पृष्ठभूमि से आने वाले पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी भी ब्राह्मण समाज से आते हैं और संभवत चतुर्वेदी के नाम पर केंद्र के साथ ही वसुंधरा राजे खेमे की भी मौन स्वीकृति रह सकती है.

यदि ब्राह्मण समाज से इतर जाने का फैसला लिया गया तो फिर पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और विधायक सतीश पूनिया का नाम सबसे आगे माना जा सकता है. पुनिया संघनिष्ठ होने के साथ जाट समाज से आते है वहीं बात की जाय मदन दिलावर की तो वो भी आरएसएस की पसंद माने जाते है. राजपूत समाज से आने वाले पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ भी पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद पर पहुंचने की चाहत रखते हैं उसके लिए लगातार लॉगइन में भी जुटे हैं हालांकि संघ पृष्ठभूमि से ना होना उनकी एकमात्र कमजोरी है.

जाट, राजपूत, वैश्य व दलित को मिल चुका मौका इसलिए ब्राह्मण पर फोकस

लोकसभा चुनाव के बाद बने मोदी मंत्रिमंडल में राजस्थान से जाट राजपूत और दलित समाज जाने वाले सांसदों को मंत्री बनाया गया है वहीं लोकसभा स्पीकर के पद पर वैश्य समाज से आने वाले राजस्थान के ओम बिरला को बैठाया गया है. ऐसे में राजस्थान से ब्राह्मण समाज को मंत्रिमंडल में मौका नहीं मिलने की नाराजगी दूर करने के लिए ब्राह्मण समाज से आने वाले किसी नेता को पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए आगे किया जा सकता है.

इस बार राजे नहीं संघ की राय रखेगी मायने

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर चुनाव के जरिए किसी नेता को बैठाया जाएगा लेकिन पार्टी की परंपरा रही है की प्रदेश अध्यक्ष का नाम सर्वसम्मति से तय कर दिया जाता है. पिछली बार अशोक परनामी के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर जो विवाद हुआ वह सबके सामने रहा और उसमें वसुंधरा राजे की भी खूब चली लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. लोकसभा चुनाव हो चुके हैं और परिणाम भी पार्टी के हित में ही है. लोकसभा चुनाव में राजस्थान की 25 सीटों पर भाजपा व सहयोगियों का कब्जा रहा इसमें प्रदेश नेताओं से ज्यादा रोल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रहा. यही कारण है कि इस बार प्रदेशाध्यक्ष चयन में पार्टी राज्य से ज्यादा महत्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी देगी.

Intro:भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में कई नेता
इस बार वसुंधरा राजे नहीं आरआरएस की राय रहेगी अहम

जयपुर(इंट्रो)
मदन लाल सैनी के स्वर्गवास के बाद अब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद के लिए नेताओं में दौड़ शुरू हो चुकी है इस पद के लिए पार्टी में कई दावेदार है लेकिन अंतिम निर्णय में इस बार वसुंधरा राजे नहीं बल्कि आर एस एस की अहम भूमिका रहेगी।


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मदन लाल सैनी के निधन के बाद खाली हुए राजस्थान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के पद पर इस बार कौन बैठेगा.. सबकी निगाहें इसी बात पर टिकी है। हालांकि पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी के कई नेता कतार में हैं.. कुछ जातिगत आधार पर तो कुछ संघ पृष्ठभूमि के चलते इस दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं। दौड़ में शामिल नेताओं में चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी, विधायक सतीश पूनिया और मदन दिलावर और विधायक दल के उपनेता राजेन्द्र राठौड़ का नाम सबसे प्रमुख माना जा रहा है। हालांकि पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के नाम की चर्चा भी यदा-कदा चलती है लेकिन अनुभव के लिहाज से इस पद पर राठौड़ को मौका मिलना बेहद मुश्किल है। बात करें सीपी जोशी की तो ब्राह्मण समाज से आने वाले सीपी जोशी पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की पसंद में शुमार है। संघ पृष्ठभूमि के साथ ही ब्राह्मण समाज से होना सीपी जोशी की प्रमुख ताकत है। वही संघ पृष्ठभूमि से आने वाले पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी भी ब्राह्मण समाज से आते हैं और संभवत चतुर्वेदी के नाम पर केंद्र के साथ ही वसुंधरा राजे कैंप की भी मौन स्वीकृति रह सकती। यदि ब्राह्मण समाज से इतर जाने का फैसला लिया गया तो फिर पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और विधायक सतीश पूनिया का नाम सबसे आगे माना जा सकता है। पुनिया संघनिष्ठ होने के साथ जाट समाज से आते है वही बात की जाय मदन दिलावर की तो वो भी आरएसएस की पसंद माने जाते है। नहीं राजपूत समाज से आने वाले पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ भी पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद पर पहुंचने की चाहत रखते हैं उसके लिए लगाता लॉगइन में भी जुटे हैं हालांकि संघ पृष्ठभूमि से ना होना उनकी एकमात्र कमजोरी है।

जाट,राजपूत,वैश्य व दलित को मिल चुका मौका इसलिए ब्राह्मण पर फोकस-

लोकसभा चुनाव के बाद बने मोदी मंत्रिमंडल में राजस्थान से जाट राजपूत और दलित समाज जाने वाले सांसदों को मंत्री बनाया गया है वहीं लोकसभा स्पीकर के पद पर वैश्य समाज से आने वाले राजस्थान के ओम बिरला को बैठाया गया है। ऐसे में राजस्थान से ब्राह्मण समाज को मंत्रिमंडल में मौका नहीं मिलने की नाराजगी दूर करने के लिए ब्राह्मण समाज से आने वाले किसी नेता को पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए आगे किया जा सकता है।

इस बार राजे नहीं संघ की राय रखेगी मायने-
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर चुनाव के जरिए किसी नेता को बैठाया जाएगा लेकिन पार्टी की परंपरा रही है की प्रदेश अध्यक्ष का नाम सर्वसम्मति से तय कर दिया जाता है। पिछली बार अशोक परनामी के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर जो विवाद भी ना वह सबके सामने रहा और उसमें वसुंधरा राजे की भी खूब चली लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। लोकसभा चुनाव हो चुके हैं और परिणाम भी पार्टी के हित में ही है। लोकसभा चुनाव में राजस्थान की 25 सीटों पर भाजपा व सहयोगियों का कब्जा रहा इसमें प्रदेश नेताओं से ज्यादा रोल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रहा।यही कारण है कि इस बार प्रदेशाध्यक्ष चयन में पार्टी राज्य से ज्यादा महत्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी देगी।

(edited vo pkg-ye hai daavedar)


Conclusion:(edited vo pkg-ye hai daavedar)
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