ETV Bharat / state

SPECIAL : गहलोत सरकार में शिक्षा विभाग का रिपोर्ट कार्ड : विपक्ष ने 10 में से जीरो, शिक्षाविदों ने दिए 4 अंक

author img

By

Published : Aug 3, 2023, 8:08 AM IST

Updated : Aug 3, 2023, 1:25 PM IST

राजस्थान का शिक्षा महकमा चुनावी साल में विवादों के बीच लगातार सुर्खियों में रहा है. महकमे के मंत्री डॉ बीडी कल्ला का नाम उपलब्धियों के साथ-साथ नाकामी के लिए भी उसी शिद्दत के साथ लिया जाएगा. आइए जानते हैं उनकी उपलब्धियां और नाकामियां....

शिक्षा विभाग का 5 साल का रिपोर्ट कार्ड
शिक्षा विभाग का 5 साल का रिपोर्ट कार्ड
शिक्षा विभाग के रिपोर्ट कार्ड पर लोगों की प्रतिक्रियाएं

जयपुर. राजस्थान का शिक्षा महकमा चुनावी साल में विवादों के बीच लगातार सुर्खियों में रहा है. महकमे के मंत्री डॉ बीडी कल्ला ने लगातार अपने तजुर्बे के दम पर विभाग की तस्वीर को संवारने की कोशिश की. इस बीच टाट के पैबंद की तर्ज पर बीते 5 साल के इतिहास में कई घटनाक्रम पन्नों में दर्ज हो गए. जिनके लिए बीडी कल्ला का नाम उपलब्धियों के साथ-साथ नाकामी के लिए भी उसी शिद्दत के साथ लिया जाएगा. एक ओर आधुनिक शिक्षा, बुनियादी ढांचे और वैश्विक परिदृश्य पर गौर करते हुए नई नीतियों को तैयार किया गया, तो दूसरी ओर स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षकों की कमी से लेकर ट्रांसफर पॉलिसी जैसे वादों की कसौटी पर कमजोर परख और नतीजों का तब्दील नहीं हो पाना भी हर बार चुनौती की तरह सामने नजर आया. ऐसे में ईटीवी भारत ने शिक्षा मंत्री के बीते लगभग 5 बरस के कामयाब सफर और नाकामियों की तस्वीर को उकेर कर हालात आप तक पहुंचाने की कोशिश की.

प्रदेश में सरकारी स्कूलों की स्थिति
प्रदेश में सरकारी स्कूलों की स्थिति

प्रदेश में शिक्षा विभाग के बजट को 11 हजार 704 करोड़ से बढ़ाकर 46 हजार 377 करोड़ यानी करीब 32 हजार करोड़ बढ़ाया गया. विभाग ने शिक्षकों और छात्रों के सहयोग से एक के बाद एक कई विश्व कीर्तिमान अपने नाम किए. जिनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी के जरिए 1.35 करोड़ उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन, आजादी के अमृत महोत्सव के तहत 1 करोड़ 12 लाख विद्यार्थियों के साथ पांच देश भक्ति गीत गाए गए, महात्मा गांधी जयंती पर 1 करोड़ 47 लाख छात्रों ने सामूहिक सर्वधर्म प्रार्थना सभा की, नो बैग डे के दिन एक साथ 38 लाख 21 हजार 9 छात्रों ने चैस इन स्कूल एक्टिविटी में भाग लिया गया. इन कीर्तिमानों को विश्व स्तर पर पहचान मिली. इसके अलावा महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल भी शुरू किए. और करीब 5 हजार डिजिटल क्लासरूम भी तैयार किए गए. विभाग की ओर से पहली बार डायल फ्यूचर, व्यावसायिक शिक्षा, निशुल्क यूनिफॉर्म और मिड डे मील में दूध का वितरण भी शुरू किया गया. हालांकि कुछ आंकड़े इन उपलब्धियों पर पलीता लगाने के लिए काफी है.

शिक्षकों की इन मांगों पर नहीं हो पाई सुनवाई
शिक्षकों की इन मांगों पर नहीं हो पाई सुनवाई

छात्राओं के ड्रॉपआउट में राजस्थान दूसरे पायदान पर : प्रदेश की 3% बालिका स्कूल शिक्षा से दूर है. ग्रामीण क्षेत्रों में बालिकाएं प्रवेश तो लेती हैं. लेकिन किशोरावस्था में आते-आते ड्रॉपआउट हो रही हैं. हालांकि इस आंकड़े में कमी जरूर आई है. लेकिन 11 से 14 आयु वर्ग की छात्राओं का आंकड़ा देखें तो उत्तर प्रदेश के बाद 2.9 फ़ीसदी के आंकड़े के साथ राजस्थान का ही नंबर आता है. जबकि 15 से 16 आयु वर्ग की 9.4 फ़ीसदी बालिकाएं स्कूल से दूर हैं.

पढ़ें डायल फ्यूचर से 87 हजार से ज्यादा छात्रों को लाभ का दावा, अब सालभर चलेगी काउंसलिंग

छात्रों को ना टेबलेट मिला ना साइकिल : राज्य सरकार नई-नई योजनाएं चला रही हैं. लेकिन शिक्षा से जुड़ी लैपटॉप और साइकिल योजना के लिए सरकार के पास शायद बजट नहीं है. विद्यार्थियों को पहले लैपटॉप दिया जाता था, उसे टेबलेट किया गया और 3 साल से इस योजना का लाभ छात्रों को नहीं मिल रहा है. यही नहीं चार लाख से ज्यादा छात्राओं को साइकिल नहीं मिल पाई है.

नहीं हो सके थर्ड ग्रेड शिक्षकों के ट्रांसफर : कांग्रेस में चुनाव के दौरान थर्ड ग्रेड शिक्षकों के ट्रांसफर करने और ट्रांसफर पॉलिसी बनाने का वादा किया था. लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ही रहे. पौने 5 साल में थर्ड ग्रेड शिक्षकों के ट्रांसफर नहीं कर पाए. और ट्रांसफर पॉलिसी तो फाइलों से बाहर ही नहीं निकल पाई.

आरटीई का नहीं हुआ भुगतान : निजी स्कूलों में पढ़ाई कराने के लिए छात्रों के एडमिशन तो हुए. लेकिन स्कूलों को फीस का पुनर्भरण का नियम सरकार बिसरा गई. निजी स्कूलों में करीब 6 लाख छात्र आरटीई के तहत अध्यनरत हैं. सरकार ने इसके लिए बजट दिया, लेकिन भुगतान नहीं किया. यही नहीं आरटीई के तहत ही छात्रों को भी 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई नि:शुल्क कराने की घोषणा की. लेकिन छात्रों के बैंक अकाउंट में पुनर्भरण राशि पहुंची नहीं. ऐसे में अभिभावकों को अपनी जेब ढीली करनी पड़ी.

महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल तो खोले लेकिन शिक्षक नहीं लगाएं : राज्य सरकार की ओर से महात्मा गांधी के नाम पर हिंदी मीडियम स्कूलों को आनन-फानन में बंद कर, उनके स्थान पर इंग्लिश मीडियम स्कूल शुरू किए गए. जहां 1 साल तो छात्रों की जमकर रूचि देखने को मिली. लेकिन वर्ष 2023-24 में जो नए स्कूल शुरू किए गए, वहां तय सीटों से भी कम आवेदन प्राप्त हुए हैं. जिसका एक बड़ा कारण स्कूलों में इंग्लिश सब्जेक्ट पढ़ाने वाले शिक्षकों की कमी को बताया जा रहा है. स्कूलों में जिन अध्यापकों को पढ़ाने के लिए लगाया गया, उनमें से अकेले राजधानी से 125 अध्यापकों ने विभाग को दोबारा हिंदी मीडियम स्कूलों में लगाने की मांग की है. इन स्कूलों में 10 हजार शिक्षक लगाए जाने का काम अब संविदा पर किया जा रहा है.

चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही नहीं : प्रदेश के सरकारी स्कूलों में 19 हजार से ज्यादा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के पद रिक्त हैं. प्रदेश में करीब 64 हजार 963 स्कूल हैं. जिनमें 24 हजार 804 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के पद स्वीकृत हैं. उनमें से भी केवल 5 हजार 741 कर्मचारी विद्यालयों में कार्यरत हैं. इसी वजह से स्कूल खोलने से लेकर घंटी बजाने और साफ-सफाई का काम भी शिक्षकों और छात्रों को करना पड़ता है.

यही नहीं सरकारी महकमे का सबसे बड़ा कुनबा शिक्षक भी सरकार से नाखुश ही रहे हैं. वेतन विसंगति, डीपीसी नहीं करना, इंग्लिश मीडियम स्कूलों में शिक्षक नहीं उपलब्ध करा पाना और ट्रांसफर पॉलिसी नहीं ला पाना सबसे बड़ी नाकामी बताई जा रही है. प्रदेश में करीब साढ़े 3 लाख शिक्षक मौजूद हैं. इन्हीं शिक्षकों को पूरे पौने 5 साल तक सरकार से कई अपेक्षाएं रही. शिक्षकों के आरोप हैं कि उनकी मांगों पर पूर्व शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने तो कार्रवाई की नहीं और वर्तमान शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला की चल नहीं पाई. इसी कारण शिक्षक संगठन समय-समय पर सड़कों पर उतरे और उनके लगातार प्रदर्शन के दौर जारी हैं.

शिक्षा विभाग के रिपोर्ट कार्ड पर लोगों की प्रतिक्रियाएं

जयपुर. राजस्थान का शिक्षा महकमा चुनावी साल में विवादों के बीच लगातार सुर्खियों में रहा है. महकमे के मंत्री डॉ बीडी कल्ला ने लगातार अपने तजुर्बे के दम पर विभाग की तस्वीर को संवारने की कोशिश की. इस बीच टाट के पैबंद की तर्ज पर बीते 5 साल के इतिहास में कई घटनाक्रम पन्नों में दर्ज हो गए. जिनके लिए बीडी कल्ला का नाम उपलब्धियों के साथ-साथ नाकामी के लिए भी उसी शिद्दत के साथ लिया जाएगा. एक ओर आधुनिक शिक्षा, बुनियादी ढांचे और वैश्विक परिदृश्य पर गौर करते हुए नई नीतियों को तैयार किया गया, तो दूसरी ओर स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षकों की कमी से लेकर ट्रांसफर पॉलिसी जैसे वादों की कसौटी पर कमजोर परख और नतीजों का तब्दील नहीं हो पाना भी हर बार चुनौती की तरह सामने नजर आया. ऐसे में ईटीवी भारत ने शिक्षा मंत्री के बीते लगभग 5 बरस के कामयाब सफर और नाकामियों की तस्वीर को उकेर कर हालात आप तक पहुंचाने की कोशिश की.

प्रदेश में सरकारी स्कूलों की स्थिति
प्रदेश में सरकारी स्कूलों की स्थिति

प्रदेश में शिक्षा विभाग के बजट को 11 हजार 704 करोड़ से बढ़ाकर 46 हजार 377 करोड़ यानी करीब 32 हजार करोड़ बढ़ाया गया. विभाग ने शिक्षकों और छात्रों के सहयोग से एक के बाद एक कई विश्व कीर्तिमान अपने नाम किए. जिनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी के जरिए 1.35 करोड़ उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन, आजादी के अमृत महोत्सव के तहत 1 करोड़ 12 लाख विद्यार्थियों के साथ पांच देश भक्ति गीत गाए गए, महात्मा गांधी जयंती पर 1 करोड़ 47 लाख छात्रों ने सामूहिक सर्वधर्म प्रार्थना सभा की, नो बैग डे के दिन एक साथ 38 लाख 21 हजार 9 छात्रों ने चैस इन स्कूल एक्टिविटी में भाग लिया गया. इन कीर्तिमानों को विश्व स्तर पर पहचान मिली. इसके अलावा महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल भी शुरू किए. और करीब 5 हजार डिजिटल क्लासरूम भी तैयार किए गए. विभाग की ओर से पहली बार डायल फ्यूचर, व्यावसायिक शिक्षा, निशुल्क यूनिफॉर्म और मिड डे मील में दूध का वितरण भी शुरू किया गया. हालांकि कुछ आंकड़े इन उपलब्धियों पर पलीता लगाने के लिए काफी है.

शिक्षकों की इन मांगों पर नहीं हो पाई सुनवाई
शिक्षकों की इन मांगों पर नहीं हो पाई सुनवाई

छात्राओं के ड्रॉपआउट में राजस्थान दूसरे पायदान पर : प्रदेश की 3% बालिका स्कूल शिक्षा से दूर है. ग्रामीण क्षेत्रों में बालिकाएं प्रवेश तो लेती हैं. लेकिन किशोरावस्था में आते-आते ड्रॉपआउट हो रही हैं. हालांकि इस आंकड़े में कमी जरूर आई है. लेकिन 11 से 14 आयु वर्ग की छात्राओं का आंकड़ा देखें तो उत्तर प्रदेश के बाद 2.9 फ़ीसदी के आंकड़े के साथ राजस्थान का ही नंबर आता है. जबकि 15 से 16 आयु वर्ग की 9.4 फ़ीसदी बालिकाएं स्कूल से दूर हैं.

पढ़ें डायल फ्यूचर से 87 हजार से ज्यादा छात्रों को लाभ का दावा, अब सालभर चलेगी काउंसलिंग

छात्रों को ना टेबलेट मिला ना साइकिल : राज्य सरकार नई-नई योजनाएं चला रही हैं. लेकिन शिक्षा से जुड़ी लैपटॉप और साइकिल योजना के लिए सरकार के पास शायद बजट नहीं है. विद्यार्थियों को पहले लैपटॉप दिया जाता था, उसे टेबलेट किया गया और 3 साल से इस योजना का लाभ छात्रों को नहीं मिल रहा है. यही नहीं चार लाख से ज्यादा छात्राओं को साइकिल नहीं मिल पाई है.

नहीं हो सके थर्ड ग्रेड शिक्षकों के ट्रांसफर : कांग्रेस में चुनाव के दौरान थर्ड ग्रेड शिक्षकों के ट्रांसफर करने और ट्रांसफर पॉलिसी बनाने का वादा किया था. लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ही रहे. पौने 5 साल में थर्ड ग्रेड शिक्षकों के ट्रांसफर नहीं कर पाए. और ट्रांसफर पॉलिसी तो फाइलों से बाहर ही नहीं निकल पाई.

आरटीई का नहीं हुआ भुगतान : निजी स्कूलों में पढ़ाई कराने के लिए छात्रों के एडमिशन तो हुए. लेकिन स्कूलों को फीस का पुनर्भरण का नियम सरकार बिसरा गई. निजी स्कूलों में करीब 6 लाख छात्र आरटीई के तहत अध्यनरत हैं. सरकार ने इसके लिए बजट दिया, लेकिन भुगतान नहीं किया. यही नहीं आरटीई के तहत ही छात्रों को भी 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई नि:शुल्क कराने की घोषणा की. लेकिन छात्रों के बैंक अकाउंट में पुनर्भरण राशि पहुंची नहीं. ऐसे में अभिभावकों को अपनी जेब ढीली करनी पड़ी.

महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल तो खोले लेकिन शिक्षक नहीं लगाएं : राज्य सरकार की ओर से महात्मा गांधी के नाम पर हिंदी मीडियम स्कूलों को आनन-फानन में बंद कर, उनके स्थान पर इंग्लिश मीडियम स्कूल शुरू किए गए. जहां 1 साल तो छात्रों की जमकर रूचि देखने को मिली. लेकिन वर्ष 2023-24 में जो नए स्कूल शुरू किए गए, वहां तय सीटों से भी कम आवेदन प्राप्त हुए हैं. जिसका एक बड़ा कारण स्कूलों में इंग्लिश सब्जेक्ट पढ़ाने वाले शिक्षकों की कमी को बताया जा रहा है. स्कूलों में जिन अध्यापकों को पढ़ाने के लिए लगाया गया, उनमें से अकेले राजधानी से 125 अध्यापकों ने विभाग को दोबारा हिंदी मीडियम स्कूलों में लगाने की मांग की है. इन स्कूलों में 10 हजार शिक्षक लगाए जाने का काम अब संविदा पर किया जा रहा है.

चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही नहीं : प्रदेश के सरकारी स्कूलों में 19 हजार से ज्यादा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के पद रिक्त हैं. प्रदेश में करीब 64 हजार 963 स्कूल हैं. जिनमें 24 हजार 804 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के पद स्वीकृत हैं. उनमें से भी केवल 5 हजार 741 कर्मचारी विद्यालयों में कार्यरत हैं. इसी वजह से स्कूल खोलने से लेकर घंटी बजाने और साफ-सफाई का काम भी शिक्षकों और छात्रों को करना पड़ता है.

यही नहीं सरकारी महकमे का सबसे बड़ा कुनबा शिक्षक भी सरकार से नाखुश ही रहे हैं. वेतन विसंगति, डीपीसी नहीं करना, इंग्लिश मीडियम स्कूलों में शिक्षक नहीं उपलब्ध करा पाना और ट्रांसफर पॉलिसी नहीं ला पाना सबसे बड़ी नाकामी बताई जा रही है. प्रदेश में करीब साढ़े 3 लाख शिक्षक मौजूद हैं. इन्हीं शिक्षकों को पूरे पौने 5 साल तक सरकार से कई अपेक्षाएं रही. शिक्षकों के आरोप हैं कि उनकी मांगों पर पूर्व शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने तो कार्रवाई की नहीं और वर्तमान शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला की चल नहीं पाई. इसी कारण शिक्षक संगठन समय-समय पर सड़कों पर उतरे और उनके लगातार प्रदर्शन के दौर जारी हैं.

Last Updated : Aug 3, 2023, 1:25 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.