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Special : राजस्थानी फिल्म उद्योग को उभारने के लिए गहलोत सरकार की 'पॉलिसी' से नाखुश हैं मेकर्स

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Published : Sep 14, 2020, 7:12 PM IST

राजस्थान फिल्म इंडस्ट्री को उभारने के लिए गहलोत सरकार नई पॉलिसी लेकर आई है. इस पॉलिसी के तहत राजस्थानी फिल्मों को मिलने वाली सब्सिडी 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख कर दी गई है. लेकिन फिल्म मेकर्स सरकार के इस सब्सिडी से ज्यादा खुश नहीं हैं. उनका कहना है कि सब्सिडी से कुछ खास नहीं होगा, जब तक सरकार सिनेमा हॉल में राजस्थानी फिल्म के नियम नहीं बना देती. उनका कहना है कि सरकार को ऐतिहासिक स्थलों को राजस्थानी फिल्म शूटिंग के लिए फ्री कर देना चाहिए.

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गहलोत सरकार की सब्सिडी पॉलिसी से नाखुश है प्रदेश का सिनेमा उद्योग

जयपुर. राजस्थानी फिल्मों का जिक्र होते ही बाई चाली सासरिय, नानी बाई को मायरो, भोमली, डिग्गी पूरी का राजा, बालम थारी चुंदड़ी जैसे फिल्मों का नाम जहम में आता है. यह वो फिल्में हैं जिन्होंने न केवल राजस्थान बल्कि माया नगरी मुंबई तक अपनी धूम मचाई है. लेकिन अब ये सब बातें बीते जमाने सी लगती हैं. वक्त गुजरने के साथ राजस्थानी फिल्म इंडस्ट्री में अच्छी फिल्में बनना कमोबेस बंद सा हो गया है. कुछ एक फिल्म मेकर्स हैं जो राजस्थानी संस्कृति और यहां की कुरीतियों पर फिल्म बना रहे हैं. लेकिन सरकार से मिलने वाले असहयोग ने इसे सीमित कर दिया है और रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी. राजस्थानी फिल्म उद्योग को उभारने के लिए प्रदेश की गहलोत सरकार नई नीति लेकर आ रही है. इसके तहत राजस्थानी फिल्मों को मिलने वाली सब्सिडी 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख कर दी गई है.

गहलोत सरकार की सब्सिडी पॉलिसी से नाखुश है प्रदेश का सिनेमा उद्योग

ऐसा नहीं है कि राजस्थान में अच्छे कलाकारों या डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर की कमी है. राजस्थान के कलाकारों ने माया नगरी में अपने हुनर का लोहा मनवाया है. राजस्थान में कुछ एक फिल्म मेकर्स यहां के इतिहास और संस्कृति के साथ सामाजिक कुरीतियों पर फिल्म बना रहे हैं. लेकिन फिल्म मेकर्स की मानें तो सरकार की और से जो सहयोग मिलना चाहिए वो नहीं मिल पाता है. हालांकि, अब सरकार सब्सिडी 10 लाख से बड़ा कर 20 लाख कर रही है इससे थोड़ा बहुत लाभ मिलेगा. लेकिन फिल्म मेकर्स का कहना है कि सब्सिडी से कुछ खास नहीं होगा जब तक सरकार सिनेमा हॉल में राजस्थानी फिल्म के नियम नहीं बना देते. मेकर्स कहते हैं कि सरकार को ऐतिहासिक स्थलों को राजस्थानी फिल्म शूटिंग के लिए फ्री कर देना चाहिए. सरकार की नई पॉलिसी के हिसाब से अब राजस्थानी फिल्म जो सब्जेक्ट बेस और पर्यटन स्थलों पर शूट होंगी उसे 10 से की जगह 20 लाख की सब्सिडी मिलेगी. इसके साथ ही पर्यटन स्थलों पर शूटिंग करने में 50 फीसदी तक शुल्क में छूट मिलेगी. नेशनल अवार्ड लाने वाली फिल्मों को 15 लाख का अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि दी जाएगी. वहीं, ऑस्कर में जीतने पर डेढ़ करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि मिलेगी. हालांकि, राजस्थानी कलाकारों को लगता है राज्य सरकार को अन्य राज्यों की तर्ज पर पॉलिसी बनाने की जरूत है, जिससे राजस्थानी सिनेमा को पहचान मिल सके. इस नई पॉलिसी में कलाकरों के लिए कुछ नहीं है.

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राजस्थानी भाषा की कुछ लोकप्रिय फिल्मों के पोस्टर

राजस्थानी इतिहास, कला संस्कृति, संगीत, पर्यटन स्थल, तीज त्योहार और यहां की भाषा देश मे ही नहीं विदेश में भी अपनी पहचान रखती है. यही वजह है कि हिंदी फिल्मों की ज्यादातर शूटिंग राजस्थान के अलग अलग हिस्सों में होती है, लेकिन इसमें कोई अतिशयोक्ति भी नहीं की प्रदेश में अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें आईं और गईं, लेकिन राजस्थानी सिनेमा को लेकर किसी ने बड़ी पहल नही की. इसका बड़ा उदाहरण प्रदेश में एक भी सरकारी अच्छा ड्रामा इंस्टीट्यूट नहीं होना माना जा सकता है. जब कलाकार सीखेंगे नहीं तो फिल्म अच्छी बनाएंगे कैसे. अच्छी फिल्म बनाएंगे नहीं तो फ़िल्म चलने की संभावना भी कम हो जाती है. ऐसे में जरूरत है सरकार इस दिशा में गंभीरता से विचार करे, ताकि राजस्थानी सिनेमा भी अन्य राज्यों की तरह सफलता के आयाम छू सके.

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राजस्थानी फिल्म का एक सीन फिल्माते हुए कलाकार

क्या है नई फिल्म पॉलिसी में...

  • U ग्रेड वाली फिल्म को मिलने वाले अनुदान राशि को 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख किया जा रहा है.
  • U/A फिल्म को मिलने वाली अनुदान राशि को 5 से बड़ा कर 10 लाख किया जा रहा है.
  • पर्यटन स्थलों पर फिल्म शूटिंग के लिए सरकार की ओर से 50 फीसदी तक कि छूट दी जाएगी.
  • नेशनल अवॉर्ड जितने पर 15 लाख की पुरस्कृत राशि अलग से दी जाएगी.
  • राजस्थान के किसी विषय पर बनने वाली फिल्म जैसे पानी की समस्या, शिक्षा, सामाजिक कुरीतियों पर संबंधित विभाग द्वारा भी अलग से 10 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा.
  • ऑस्कर अवार्ड जितने पर 1.50 करोड़ की पुरस्कृत राशि दी जाएगी.

नई पॉलिसी में राजस्थानी फिल्म उद्योग को मिलने वाली रियायतों की ये है शर्तें...

  • फिल्म को अनुदान के लिए सिनेमा हॉल में फिल्म के 100 शो प्ले करने के सर्टिफिकेशन देना होगा.
  • फिल्म में 50 फीसदी कलाकार, टेक्नीशियन, सहित अन्य लोग जो फिल्म मे किसी ना किसी तरह की भूमिका निभा रहे हैं वो राजस्थानी होने चाहिए.
  • फिल्म राजस्थान में बोली जाने वाली भाषा में होनी चाहिए.
  • धार्मिक सद्भावना, साम्प्रदायिकता भड़काने, कुरीतियों का महिमा मंडल करने वाली फिल्मों को अनुदान नहीं मिलेगा.
  • फिल्म कम से कम 75 मिनट की होनी चाहिए.
  • एक बार अनुदान मिलने के बाद दस साल तक प्रोड्यूसर को अनुदान नहीं मिलेगा

फिल्स मेकर्स ने क्या दिए सुझाव ?

राजस्थानी फिल्म विकास संघ के संरक्षक विपिन तिवारी ने बताया कि सरकार जो राजस्थानी फिल्मों को लेकर राज्य सरकार की ओर से आने वाली नई पॉलिसी में कई ऐसी शर्ते रख दी है जो व्यवहारिक नहीं हैं. उन्होंने कहा कि राजस्थानी फिल्म मेकर्स की ओर से जो सुझाव दिए हैं वो इस तरह से है.

  • U और U/A फिल्म को अन्य राज्य की तर्ज पर एक ही श्रेणी में रखा जाए.
  • पर्यटन स्थलों पर शूटिंग में 100 प्रतिशत छूट दी जाए.
  • एक फिल्म अनुदान मिलने पर प्रड्यूसर को अगले दस साल तक किसी और अनुदान नहीं मिलने वाली शर्त हटाई जाए.
  • अन्य राज्यों की तर्ज पर प्रदेश के सभी सिनेमाघरों में एक शो हर रोज राजस्थानी फिल्म दिखाने के लिए बाध्य किया जाए.

राजस्थानी फिल्मों के डायरेक्टर निशांत भारद्वाज ने बताया कि राज्य में हर पांच साल में नई सरकार बनती है अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें बनी लेकिन किसी भी सरकार की इच्छाशक्ति राजस्थानी फिल्मों को प्रोत्साहन देने की नहीं हुई. सरकारें आई और गई हर दिन राजस्थानी सिनेमा खत्म होने की कगार पर जाता रहा. सरकार जो नई पॉलिसी ला रही है उस पॉलिसी में अनुदान राशि बढ़ाने की बात कर रही है लेकिन यह अनुदान मिलता किसको है सिर्फ चन्द उन लोगों को सरकार की जी हुजूरी में लगे रहते हैं.

उन्होंने कहा कि अनुदान राशि 10 से बढ़ाकर 20 लाख की जा रही है, लेकिन ये राशि एक को 20 लाख नहीं मिलेगी किसी को दो लाख किसी को तीन लाख मतलब कुल 20 लाख ही अनुदान राशि देगी. सरकार की इच्छा शक्ति नहीं है. कोई सरकार नहीं चाहती कि राजस्थान का सिनेमा खड़ा हो जबकि राजस्थान में क्या नहीं है यहां बेहतरीन लोकेशन हैं, यहां संगीत है, यहा पर्यटन स्थल हैं, यहां लोक कला संस्कृति है. यहां का स्वर्णिम अक्षरों में लिखा हुआ इतिहास है.

ये भी पढ़ें: Special: मां के संक्रमित होने पर भी नवजात को कराया जा सकता है स्तनपान...

भारद्वाज आगे कहते हैं कि कोई कमी तो नहीं है राजस्थान में यहां हिंदी फिल्मों वाले आते हैं और राजस्थान को बेच कर चले जाते हैं. सरकार ने अभी तक अपना एक अच्छे स्तर का ड्रामा इंस्टीट्यूट तक तो नहीं बना पाई है. जब कलाकारों को अच्छी एक्टिंग सीखने को नहीं मिलेगी तो बेहतर एक्टर कैसे बनेंगे. डायरेक्शन क्या होता है, कैमरा क्या होता है, कैसे एक अच्छी फिल्म सूट होगी ?

ये भी पढ़ें: Special: कजोड़ मल बगड़िया के हैरतअंगेज कारनामें आपको देखने चाहिए...

कई राजस्थानी फिल्मों में बतौर लीड एक्टर काम कर रहे अमिताभ तिवारी कहते हैं कि राजस्थान में कलाकारों की कमी नहीं है. यहां अच्छे कलाकार हैं, लेकिन जरूरत है राज्य सरकार के सकारात्मक कार्य करने की. उन्होंने कहा कि सरकार सहयोग करती है तो बड़े बजट की फिल्म बनेंगी, जब बड़ी फिल्में बनेगी तो राजस्थानी सिनेमा भी खड़ा होगा. वहीं, राजस्थानी अभिनेत्री वाणी दिनेश और हेमलता बताती है कि साउथ की फिल्में हो या पंजाबी, यहां तक कि मराठी भाषा की फिल्में यह इस लिए चलती है, क्योंकि वहां की सरकार भरपूर सहायता और अनुदान देती है. नई राजस्थानी फिल्म पॉलिसी लाने की बात हो रही है, लेकिन क्या इस पॉलिसी में कहीं भी यह लिखा है कि राजस्थानी कलाकार, एक्टर को कुछ मिलेगा जब तक सरकार इच्छा शक्ति के साथ अच्छी और ठोस पॉलिसी लागू नहीं करेगी तब तक राजस्थान में फिल्म को मुकाम नहीं मिल सकता.

जयपुर. राजस्थानी फिल्मों का जिक्र होते ही बाई चाली सासरिय, नानी बाई को मायरो, भोमली, डिग्गी पूरी का राजा, बालम थारी चुंदड़ी जैसे फिल्मों का नाम जहम में आता है. यह वो फिल्में हैं जिन्होंने न केवल राजस्थान बल्कि माया नगरी मुंबई तक अपनी धूम मचाई है. लेकिन अब ये सब बातें बीते जमाने सी लगती हैं. वक्त गुजरने के साथ राजस्थानी फिल्म इंडस्ट्री में अच्छी फिल्में बनना कमोबेस बंद सा हो गया है. कुछ एक फिल्म मेकर्स हैं जो राजस्थानी संस्कृति और यहां की कुरीतियों पर फिल्म बना रहे हैं. लेकिन सरकार से मिलने वाले असहयोग ने इसे सीमित कर दिया है और रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी. राजस्थानी फिल्म उद्योग को उभारने के लिए प्रदेश की गहलोत सरकार नई नीति लेकर आ रही है. इसके तहत राजस्थानी फिल्मों को मिलने वाली सब्सिडी 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख कर दी गई है.

गहलोत सरकार की सब्सिडी पॉलिसी से नाखुश है प्रदेश का सिनेमा उद्योग

ऐसा नहीं है कि राजस्थान में अच्छे कलाकारों या डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर की कमी है. राजस्थान के कलाकारों ने माया नगरी में अपने हुनर का लोहा मनवाया है. राजस्थान में कुछ एक फिल्म मेकर्स यहां के इतिहास और संस्कृति के साथ सामाजिक कुरीतियों पर फिल्म बना रहे हैं. लेकिन फिल्म मेकर्स की मानें तो सरकार की और से जो सहयोग मिलना चाहिए वो नहीं मिल पाता है. हालांकि, अब सरकार सब्सिडी 10 लाख से बड़ा कर 20 लाख कर रही है इससे थोड़ा बहुत लाभ मिलेगा. लेकिन फिल्म मेकर्स का कहना है कि सब्सिडी से कुछ खास नहीं होगा जब तक सरकार सिनेमा हॉल में राजस्थानी फिल्म के नियम नहीं बना देते. मेकर्स कहते हैं कि सरकार को ऐतिहासिक स्थलों को राजस्थानी फिल्म शूटिंग के लिए फ्री कर देना चाहिए. सरकार की नई पॉलिसी के हिसाब से अब राजस्थानी फिल्म जो सब्जेक्ट बेस और पर्यटन स्थलों पर शूट होंगी उसे 10 से की जगह 20 लाख की सब्सिडी मिलेगी. इसके साथ ही पर्यटन स्थलों पर शूटिंग करने में 50 फीसदी तक शुल्क में छूट मिलेगी. नेशनल अवार्ड लाने वाली फिल्मों को 15 लाख का अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि दी जाएगी. वहीं, ऑस्कर में जीतने पर डेढ़ करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि मिलेगी. हालांकि, राजस्थानी कलाकारों को लगता है राज्य सरकार को अन्य राज्यों की तर्ज पर पॉलिसी बनाने की जरूत है, जिससे राजस्थानी सिनेमा को पहचान मिल सके. इस नई पॉलिसी में कलाकरों के लिए कुछ नहीं है.

राजस्थानी फिल्म, गहलोत सरकार की नई पॉलिसी, राजस्थान फिल्म इंडस्ट्री, Gehlot government, cinema industry is unhappy, subsidy policy rajasthan cinema, rajasthan cinema industry, special news of rajasthan cinema, rajasthan news in hindi, jaipur news in hindi,
राजस्थानी भाषा की कुछ लोकप्रिय फिल्मों के पोस्टर

राजस्थानी इतिहास, कला संस्कृति, संगीत, पर्यटन स्थल, तीज त्योहार और यहां की भाषा देश मे ही नहीं विदेश में भी अपनी पहचान रखती है. यही वजह है कि हिंदी फिल्मों की ज्यादातर शूटिंग राजस्थान के अलग अलग हिस्सों में होती है, लेकिन इसमें कोई अतिशयोक्ति भी नहीं की प्रदेश में अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें आईं और गईं, लेकिन राजस्थानी सिनेमा को लेकर किसी ने बड़ी पहल नही की. इसका बड़ा उदाहरण प्रदेश में एक भी सरकारी अच्छा ड्रामा इंस्टीट्यूट नहीं होना माना जा सकता है. जब कलाकार सीखेंगे नहीं तो फिल्म अच्छी बनाएंगे कैसे. अच्छी फिल्म बनाएंगे नहीं तो फ़िल्म चलने की संभावना भी कम हो जाती है. ऐसे में जरूरत है सरकार इस दिशा में गंभीरता से विचार करे, ताकि राजस्थानी सिनेमा भी अन्य राज्यों की तरह सफलता के आयाम छू सके.

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राजस्थानी फिल्म का एक सीन फिल्माते हुए कलाकार

क्या है नई फिल्म पॉलिसी में...

  • U ग्रेड वाली फिल्म को मिलने वाले अनुदान राशि को 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख किया जा रहा है.
  • U/A फिल्म को मिलने वाली अनुदान राशि को 5 से बड़ा कर 10 लाख किया जा रहा है.
  • पर्यटन स्थलों पर फिल्म शूटिंग के लिए सरकार की ओर से 50 फीसदी तक कि छूट दी जाएगी.
  • नेशनल अवॉर्ड जितने पर 15 लाख की पुरस्कृत राशि अलग से दी जाएगी.
  • राजस्थान के किसी विषय पर बनने वाली फिल्म जैसे पानी की समस्या, शिक्षा, सामाजिक कुरीतियों पर संबंधित विभाग द्वारा भी अलग से 10 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा.
  • ऑस्कर अवार्ड जितने पर 1.50 करोड़ की पुरस्कृत राशि दी जाएगी.

नई पॉलिसी में राजस्थानी फिल्म उद्योग को मिलने वाली रियायतों की ये है शर्तें...

  • फिल्म को अनुदान के लिए सिनेमा हॉल में फिल्म के 100 शो प्ले करने के सर्टिफिकेशन देना होगा.
  • फिल्म में 50 फीसदी कलाकार, टेक्नीशियन, सहित अन्य लोग जो फिल्म मे किसी ना किसी तरह की भूमिका निभा रहे हैं वो राजस्थानी होने चाहिए.
  • फिल्म राजस्थान में बोली जाने वाली भाषा में होनी चाहिए.
  • धार्मिक सद्भावना, साम्प्रदायिकता भड़काने, कुरीतियों का महिमा मंडल करने वाली फिल्मों को अनुदान नहीं मिलेगा.
  • फिल्म कम से कम 75 मिनट की होनी चाहिए.
  • एक बार अनुदान मिलने के बाद दस साल तक प्रोड्यूसर को अनुदान नहीं मिलेगा

फिल्स मेकर्स ने क्या दिए सुझाव ?

राजस्थानी फिल्म विकास संघ के संरक्षक विपिन तिवारी ने बताया कि सरकार जो राजस्थानी फिल्मों को लेकर राज्य सरकार की ओर से आने वाली नई पॉलिसी में कई ऐसी शर्ते रख दी है जो व्यवहारिक नहीं हैं. उन्होंने कहा कि राजस्थानी फिल्म मेकर्स की ओर से जो सुझाव दिए हैं वो इस तरह से है.

  • U और U/A फिल्म को अन्य राज्य की तर्ज पर एक ही श्रेणी में रखा जाए.
  • पर्यटन स्थलों पर शूटिंग में 100 प्रतिशत छूट दी जाए.
  • एक फिल्म अनुदान मिलने पर प्रड्यूसर को अगले दस साल तक किसी और अनुदान नहीं मिलने वाली शर्त हटाई जाए.
  • अन्य राज्यों की तर्ज पर प्रदेश के सभी सिनेमाघरों में एक शो हर रोज राजस्थानी फिल्म दिखाने के लिए बाध्य किया जाए.

राजस्थानी फिल्मों के डायरेक्टर निशांत भारद्वाज ने बताया कि राज्य में हर पांच साल में नई सरकार बनती है अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें बनी लेकिन किसी भी सरकार की इच्छाशक्ति राजस्थानी फिल्मों को प्रोत्साहन देने की नहीं हुई. सरकारें आई और गई हर दिन राजस्थानी सिनेमा खत्म होने की कगार पर जाता रहा. सरकार जो नई पॉलिसी ला रही है उस पॉलिसी में अनुदान राशि बढ़ाने की बात कर रही है लेकिन यह अनुदान मिलता किसको है सिर्फ चन्द उन लोगों को सरकार की जी हुजूरी में लगे रहते हैं.

उन्होंने कहा कि अनुदान राशि 10 से बढ़ाकर 20 लाख की जा रही है, लेकिन ये राशि एक को 20 लाख नहीं मिलेगी किसी को दो लाख किसी को तीन लाख मतलब कुल 20 लाख ही अनुदान राशि देगी. सरकार की इच्छा शक्ति नहीं है. कोई सरकार नहीं चाहती कि राजस्थान का सिनेमा खड़ा हो जबकि राजस्थान में क्या नहीं है यहां बेहतरीन लोकेशन हैं, यहां संगीत है, यहा पर्यटन स्थल हैं, यहां लोक कला संस्कृति है. यहां का स्वर्णिम अक्षरों में लिखा हुआ इतिहास है.

ये भी पढ़ें: Special: मां के संक्रमित होने पर भी नवजात को कराया जा सकता है स्तनपान...

भारद्वाज आगे कहते हैं कि कोई कमी तो नहीं है राजस्थान में यहां हिंदी फिल्मों वाले आते हैं और राजस्थान को बेच कर चले जाते हैं. सरकार ने अभी तक अपना एक अच्छे स्तर का ड्रामा इंस्टीट्यूट तक तो नहीं बना पाई है. जब कलाकारों को अच्छी एक्टिंग सीखने को नहीं मिलेगी तो बेहतर एक्टर कैसे बनेंगे. डायरेक्शन क्या होता है, कैमरा क्या होता है, कैसे एक अच्छी फिल्म सूट होगी ?

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कई राजस्थानी फिल्मों में बतौर लीड एक्टर काम कर रहे अमिताभ तिवारी कहते हैं कि राजस्थान में कलाकारों की कमी नहीं है. यहां अच्छे कलाकार हैं, लेकिन जरूरत है राज्य सरकार के सकारात्मक कार्य करने की. उन्होंने कहा कि सरकार सहयोग करती है तो बड़े बजट की फिल्म बनेंगी, जब बड़ी फिल्में बनेगी तो राजस्थानी सिनेमा भी खड़ा होगा. वहीं, राजस्थानी अभिनेत्री वाणी दिनेश और हेमलता बताती है कि साउथ की फिल्में हो या पंजाबी, यहां तक कि मराठी भाषा की फिल्में यह इस लिए चलती है, क्योंकि वहां की सरकार भरपूर सहायता और अनुदान देती है. नई राजस्थानी फिल्म पॉलिसी लाने की बात हो रही है, लेकिन क्या इस पॉलिसी में कहीं भी यह लिखा है कि राजस्थानी कलाकार, एक्टर को कुछ मिलेगा जब तक सरकार इच्छा शक्ति के साथ अच्छी और ठोस पॉलिसी लागू नहीं करेगी तब तक राजस्थान में फिल्म को मुकाम नहीं मिल सकता.

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