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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी राजस्थान, जानें क्या होगी आगे की रणनीति - Angry Gehlot supporters MLA

कांग्रेस के नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Congress President Mallikarjun Kharge) के लिए राजस्थान में व्याप्त सियासी संकट पर फैसला लेना आसान नहीं होगा. लेकिन उन्हें किसी भी सूरत में पार्टी आलाकमना के इकबाल को भी कायम (Rajasthan political crisis) रखना है. अगर खड़गे ऐसा करने में असफल रहे तो फिर सूबे में सरकार बचाना मुश्किल होगा.

Rajasthan political crisis
खड़गे की सबसे बड़ी चुनौती
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Published : Oct 19, 2022, 3:27 PM IST

जयपुर. मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष निर्वाचित हो चुके हैं. अध्यक्ष बनने के बाद उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती राजस्थान में व्याप्त सियासी असंतोष और उठी बगावती सुर को दबाने की होगी, जो आसान नहीं है. ऐसे में राजस्थान में जारी सियासी घमासान को (Rajasthan political crisis) खड़गे के लिए अग्नि परीक्षा के तौर पर भी देखा जा रहा है, क्योंकि पार्टी अध्यक्ष बनने से पूर्व इस समस्या के समाधान के लिए उन्हें बतौर पर्यवेक्षक जयपुर भेजा गया था. लेकिन गहलोत समर्थक विधायक के अड़ियल रूख और इस्तीफे ने पार्टी आलाकमान की चिंताएं बढ़ा दी थी. यही वजह है कि अब खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद राजस्थान पर उनके फैसलों का साफ असर देखने को (Kharge fire political test) मिलेगा. वहीं, खड़गे भी जानते हैं कि उन्हें अपने पहले असाइनमेंट से किसी भी तरह पार पाना होगा, वरना प्रदेश में सरकार गिरने की संभावना बढ़ जाएगी.

खड़गे को फूंक-फूंककर रखना होगा कदम: एक ओर गहलोत समर्थक विधायक अपने रूख पर अब भी अडिग (Angry Gehlot supporters MLA) है तो दूसरी ओर आलाकमान का इकबाल भी कायम रखना है. ऐसे में नवनिर्वाचित पार्टी अध्यक्ष के लिए राह आसान नहीं है. बावजूद इसके बिना समाधान के सूबे में सरकार बचाना भी दिन-ब-दिन मुश्किल दिख रहा है. खैर, खड़गे पहले ही राजस्थान में विधायक दल की बैठक करवाने में असफल हो चुके हैं. ऐसे में साफ है कि अगर विधायकों को उनके पक्ष में फैसला होता नहीं दिखा तो वो आगे बगावत कर सकते हैं. यही कारण है कि इस मामले में अब खड़गे को फूंक-फूंककर कदम रखना होगा.

खड़गे की सबसे बड़ी चुनौती

इसे भी पढ़ें - मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष बने, 7897 वोट मिले, थरूर को 1072 वोट

माना जा रहा है कि खड़गे गहलोत को भरोसे में लेते हुए विधायक दल की बैठक करवाकर एक लाइन का प्रस्ताव पास कराने की कोशिश करेंगे. ताकि उनके समर्थकों को साधने के साथ ही कार्यकर्ताओं में यह संदेश दिया जा सके कि कांग्रेस पार्टी ने केवल अपना फैसला होल्ड किया था न कि वापस लिया है. वहीं, सूबे के सियासी जानकारों की मानें तो फिलहाल सीएम फेस पर निर्णय फोल्ड हो सकता है, क्योंकि अगर मुख्यमंत्री बदलने के बाबत कोई निर्णय लिया गया तो सूबे में सरकार बचाना पार्टी के लिए मुश्किल होगा.

क्या कर सकते हैं खड़गे ?

  • विधायक दल की बैठक बुलाकर कांग्रेस आलाकमान के नाम एक लाइन का प्रस्ताव पास करवाने की कोशिश करेंगे.
  • सीएम फेस पर फिलहाल फैसला न लें, ऐसे में गहलोत के मुख्यमंत्री बने रहने की उम्मीद अधिक दिख रही है.
  • अगर सचिन पायलट के नाम पर सहमति नहीं बनी तो किसी तीसरे को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है.
  • अगर सचिन पायलट को आलाकमान मुख्यमंत्री बनाने की बात पर कायम रहा और विधायक अगर इस्तीफे वापस नहीं लेते हैं तो फिर उनके खिलाफ सख्त एक्शन लिया जा सकता है.
  • बागी विधायकों का टिकट भी काटा जा सकता है.
  • फिलहाल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बजट तक यथास्थिति में रखा जा सकता है.
  • आगे गहलोत को संगठन की जिम्मेदारी सौंप दिल्ली बुलाया जा सकता है.
  • पायलट को राजस्थान कांग्रेस की कमान सौंपकर उन्हें 2023 के लिए राजस्थान का चेहरा भी घोषित किया जा सकता है.

जयपुर. मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष निर्वाचित हो चुके हैं. अध्यक्ष बनने के बाद उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती राजस्थान में व्याप्त सियासी असंतोष और उठी बगावती सुर को दबाने की होगी, जो आसान नहीं है. ऐसे में राजस्थान में जारी सियासी घमासान को (Rajasthan political crisis) खड़गे के लिए अग्नि परीक्षा के तौर पर भी देखा जा रहा है, क्योंकि पार्टी अध्यक्ष बनने से पूर्व इस समस्या के समाधान के लिए उन्हें बतौर पर्यवेक्षक जयपुर भेजा गया था. लेकिन गहलोत समर्थक विधायक के अड़ियल रूख और इस्तीफे ने पार्टी आलाकमान की चिंताएं बढ़ा दी थी. यही वजह है कि अब खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद राजस्थान पर उनके फैसलों का साफ असर देखने को (Kharge fire political test) मिलेगा. वहीं, खड़गे भी जानते हैं कि उन्हें अपने पहले असाइनमेंट से किसी भी तरह पार पाना होगा, वरना प्रदेश में सरकार गिरने की संभावना बढ़ जाएगी.

खड़गे को फूंक-फूंककर रखना होगा कदम: एक ओर गहलोत समर्थक विधायक अपने रूख पर अब भी अडिग (Angry Gehlot supporters MLA) है तो दूसरी ओर आलाकमान का इकबाल भी कायम रखना है. ऐसे में नवनिर्वाचित पार्टी अध्यक्ष के लिए राह आसान नहीं है. बावजूद इसके बिना समाधान के सूबे में सरकार बचाना भी दिन-ब-दिन मुश्किल दिख रहा है. खैर, खड़गे पहले ही राजस्थान में विधायक दल की बैठक करवाने में असफल हो चुके हैं. ऐसे में साफ है कि अगर विधायकों को उनके पक्ष में फैसला होता नहीं दिखा तो वो आगे बगावत कर सकते हैं. यही कारण है कि इस मामले में अब खड़गे को फूंक-फूंककर कदम रखना होगा.

खड़गे की सबसे बड़ी चुनौती

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माना जा रहा है कि खड़गे गहलोत को भरोसे में लेते हुए विधायक दल की बैठक करवाकर एक लाइन का प्रस्ताव पास कराने की कोशिश करेंगे. ताकि उनके समर्थकों को साधने के साथ ही कार्यकर्ताओं में यह संदेश दिया जा सके कि कांग्रेस पार्टी ने केवल अपना फैसला होल्ड किया था न कि वापस लिया है. वहीं, सूबे के सियासी जानकारों की मानें तो फिलहाल सीएम फेस पर निर्णय फोल्ड हो सकता है, क्योंकि अगर मुख्यमंत्री बदलने के बाबत कोई निर्णय लिया गया तो सूबे में सरकार बचाना पार्टी के लिए मुश्किल होगा.

क्या कर सकते हैं खड़गे ?

  • विधायक दल की बैठक बुलाकर कांग्रेस आलाकमान के नाम एक लाइन का प्रस्ताव पास करवाने की कोशिश करेंगे.
  • सीएम फेस पर फिलहाल फैसला न लें, ऐसे में गहलोत के मुख्यमंत्री बने रहने की उम्मीद अधिक दिख रही है.
  • अगर सचिन पायलट के नाम पर सहमति नहीं बनी तो किसी तीसरे को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है.
  • अगर सचिन पायलट को आलाकमान मुख्यमंत्री बनाने की बात पर कायम रहा और विधायक अगर इस्तीफे वापस नहीं लेते हैं तो फिर उनके खिलाफ सख्त एक्शन लिया जा सकता है.
  • बागी विधायकों का टिकट भी काटा जा सकता है.
  • फिलहाल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बजट तक यथास्थिति में रखा जा सकता है.
  • आगे गहलोत को संगठन की जिम्मेदारी सौंप दिल्ली बुलाया जा सकता है.
  • पायलट को राजस्थान कांग्रेस की कमान सौंपकर उन्हें 2023 के लिए राजस्थान का चेहरा भी घोषित किया जा सकता है.
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