जयपुर. राजस्थान चुनाव में अब 6 महीने से कम समय बचा है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां अब चुनावी मोड में आ चुकी हैं. जहां भाजपा में अब सरकार के विरोध में प्रदर्शन तेज होंगे और प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले कार्यकर्ता टिकट के प्रमुख दावेदार होंगे. वहीं सत्ताधारी दल में टिकट के लिए जमकर उठापटक चल रही है. दरअसल सालों से चली आ रही परंपरा कैसे टूटे और सरकार रिपीट कैसे हो इसके लिए कांग्रेस एड़ी से चोटी का जोर लगा रही है, लेकिन तमाम योजनाओं के बाद भी चुनाव में हार मिलेगी या जीत इसमें सबसे बड़ा रोल उस उस प्रत्याशी का होता है, जिसे जिताऊ मानकर पार्टी टिकट देती है.
ये भी पढ़ेंः Rajasthan : मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बोले- चुनाव जीतने के लिए भाजपा भेजती है ED, इनकम टैक्स और CBI को
टिकट की अंतिम सीढ़ी सीईसी होगीः यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी ने चुनाव से 6 महीने पहले ही किन कार्यकर्ताओं को टिकट देना है. इसके लिए मशक्कत शुरू कर दी है. हालात यह है कि कांग्रेस पार्टी में टिकट देने के लिए अभी से फोर लेयर सिस्टम बन चुका है. जिसमें राजस्थान कांग्रेस प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा, तीनों सह प्रभारी और इनके साथ ही अब टिकट के लिए योग्य प्रत्याशियों की खोज करने कांग्रेस पार्टी ने पर्यवेक्षक भी राजस्थान में लगा दिए हैं. खास बात यह है कि कांग्रेस के टिकट के लिए लगाए गए चारों लेयर टिकट देने के अपने-अपने दावे भी करते नजर आ रहे हैं. टिकट के लिए यह चारों सीढ़ियां पार करने के बाद भी कांग्रेस कार्यकर्ता को अभी अंतिम सीढ़ी सीईसी पार करनी होगी. उसके बाद ही उसका टिकट फाइनल होगा.
ये भी पढ़ेंः राजस्थान में मंदिर के रास्ते पीएम मोदी साध रहे मिशन 2023, चुनावी साल में जानें दौरों की सियासत
कार्यकर्ता कंफ्यूज-क्षेत्र में रहें या टिकट मांगेंः चुनाव में अब 6 महीने का समय शेष रह गया है और प्रत्याशी टिकट की जुगत में भी लग चुके हैं. सबसे महत्वपूर्ण है कि प्रत्याशी को टिकट मिलना. ऐसे में हर विधानसभा से जो मजबूत प्रत्याशी है. वह टिकट की आस में हर सिस्टम के साथ कदमताल कर रहे हैं, लेकिन इन नेताओं को भी पता है कि अगर उन्होंने अपने क्षेत्र में समय नहीं दिया तो समस्या भी खड़ी हो सकती है. ऐसे में कार्यकर्ता भी कंफ्यूज है कि वह टिकट के लिए नेताओं की चाकरी करें या फिर अपने क्षेत्र में पकड़ मजबूत करें. टिकट के इच्छुक प्रत्याशी एक सिस्टम से मिलते हैं और कांग्रेस दूसरा नया सिस्टम खड़ा कर देती है. ऐसे में प्रत्याशियों के लिए पर्यवेक्षकों को ढूंढ़ना मुश्किल साबित हो रहा है. हालांकि है कि कांग्रेस के बड़े से छोटे नेता जो टिकट के इच्छुक हैं. वह ऊपर से लेकर पर्यवेक्षकों के सिस्टम तक चक्कर लगा रहे हैं.