जयपुर. राजस्थान में एक वक्त अकाल, सूखे की स्थितियां सुर्खियों में रहा करती थी. मगर बीते डेढ़ दशक में कमोबेश हर साल, सुर्खियों में गुर्जर आरक्षण आंदोलन रहता है. आंदोलन का वो अतीत भुलाए नहीं भूलता जिसमें 70 से ज्यादा गुर्जर समाज के लोग मारे गए.
हिंसा का वो रौद्र रूप कि सुप्रीम कोर्ट को भी उस वक्त की हिंसा को राष्ट्रीय शर्म कहना पड़ा था. इतने सालों में फिर उसी मोड़ पर आ कर खड़ा हो जाए तो जाहिर है कि अलग-अलग वक्त में सरकार के प्रतिनिधियों और गुर्जर नेताओं ने सिर्फ अपनी राजनीति चमकाई है.
समझौते होते रहे और नए वादे घोषणा पत्रों में शामिल हो रहे. नई सरकार में नई भर्तियां जब भी खुली गुर्जर आंदोलन होते रहे. आज फिर गुर्जर आंदोलन शुरू होने से राजस्थान की आवाम डरी-सहमी है. क्योंकि किसी भी पक्ष का रूख, विश्वास नहीं जगा पा रहा. कोरोना काल, कारोबार बेहाल और उस पर आंदोलन की ये मार.
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संवाद के लिए सरकार की ओर से भी अपनी 'पसंद' के नेता हैं तो गुर्जर समाज की ओर से भी अपनी 'पसंद' के नेताओं को आगे किया जा रहा है. अपने-अपने चहेते आगे करने की इस बिसात में अगर कोई पीछे जा रहा है तो वो है राजस्थान और राजस्थान की जनता.
मांग पूरी होने तक जारी रहेगा आंदोलन
आरक्षण समेत विभिन्न मांगों को लेकर एक बार फिर गुर्जर समाज पुराने ट्रैक पर आ डटा है. हर बार की तरह इस बार भी गुर्जर आंदोलन का केंद्र भरतपुर जिले के बयाना तहसील स्थित पीलू का पुरा ही बना हुआ है. कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के निर्देश के बाद दिल्ली-मुंबई रेलवे ट्रैक को जाम करके समाज के लोग बैठे हुए हैं.
शाम होते-होते समाज की महिलाएं भी बच्चों को साथ में लेकर रेलवे ट्रैक पर पहुंचकर आंदोलन का समर्थन किया. महिलाओं ने हाथों में लाठियां ले रखी थी. आंदोलन के दूसरे दिन रेलवे ट्रैक पर पहुंचे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने सरकार को दो-टूक जवाब देते हुए कहा कि मांगें पूरी होने तक आंदोलन जारी रहेगा.