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राजधानी जयपुर में लोगों को अब 3 जुलाई का इंतजार, जंतर-मंतर का सम्राट यंत्र बताएगा कैसी होगी वर्षा

राजस्थान में वर्षा को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. राजधानी जयपुर में अब लोगों को 3 जुलाई का इंतजार है. अब जयपुर में जंतर-मंतर पर पर सम्राट यंत्र के जरिए वर्षा का पूर्वानुमान लगाया जाएगा.

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जंतर-मंतर का सम्राट यंत्र बताएगा कैसी होगी वर्षा
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Published : Jun 14, 2023, 7:25 PM IST

राजधानी जयपुर में लोगों को अब 3 जुलाई का इंतजार

जयपुर. इस बार नौतपा में सूर्य की तपिश देखने को नहीं मिली. जिसकी वजह से वर्षा को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है. ऐसे में अब लोगों को आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा (3 जुलाई) का इंतजार है. जब जयपुर में परंपरा का निर्वहन करते हुए ज्योतिषाचार्यों की ओर से जंतर-मंतर पर सम्राट यंत्र के जरिए वर्षा का पूर्वानुमान लगाया जाएगा.

ये भी पढ़ेंः नौतपा 2023 : सूर्य की तपिश तय करेगी कितनी होगी बारिश, बोले ज्योतिषाचार्य-इस बार अच्छा रहेगा मानसून

तीन जुलाई को वायु धारिणी पूर्णिमाः सवाई जयसिंह सिंह द्वितीय ने जयपुर की स्थापना के वक्त यहां वेदशाला बनवाई थी. जिसे जंतर-मंतर नाम दिया गया था. इसी जंतर-मंतर पर ज्योतिषियों की ओर से हर साल आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा पर वायु परीक्षण करते हुए वर्षा का पूर्वानुमान लगाया जाता रहा है. ज्योतिष आचार्य विनोद शास्त्री ने बताया कि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को वायु धारिणी पूर्णिमा होती है. वायु धारिणी पूर्णिमा भारतीय ज्योतिष शास्त्र, धर्म शास्त्रों और वृष्टि विज्ञान का महत्वपूर्ण दिन होता है. इस बार 3 जुलाई को ये आषाढ़ पूर्णिमा पर वायु परीक्षण किया जाएगा और वर्षा कैसी होगी उसका फलादेश प्राप्त होगा.

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वायु के दबाव व दिशा से तय होता है मानसून का फलादेश

ये भी पढ़ेंः Nautapa 2022: सूर्य करने वाले हैं रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश, आसमान से बरसेगी 'आग'...जानिए कब से शुरू होगा नौतपा?

सदियों से चली आ रही परंपराः उन्होंने बताया कि वायु धारिणी के लिए राजस्थान के प्रतिष्ठित विद्वान जंतर-मंतर पर इकट्ठा होकर परीक्षण करते हैं. ज्योतिष शास्त्र की स्थापना से ये परंपरा चली आ रही है. जयपुर राजघराना इस परंपरा को सदियों से निभाता रहा है. जयपुर में सम्राट यंत्र पर विगत 300 वर्षों से वायु परीक्षण कर वर्षा का पूर्वानुमान लगाने की परंपरा चली आ रही है. इस परीक्षण में पूर्व, उत्तर या फिर नैऋत्य दिशा से हवा का प्रवाह होता है, तो ये वर्षा के लिए श्रेष्ठ माने जाते हैं. इसके अलावा अन्य दिशाओं से हवा का प्रवाह श्रेष्ठ नहीं माना जाता.

वायु के दबाव व दिशा से तय होता है मानसून का फलादेशः आपको बता दें कि आषाढ़ पूर्णिमा पर योग-संयोग के बीच होने वाली वर्षा की पुष्टि सूर्यास्त के समय वायु परीक्षण के आधार पर की जाती रही है. जयपुर के जंतर- मंतर में 105 फीट ऊंचा सम्राट यंत्र बना हुआ है. जिस पर चढ़कर ज्योतिषाचार्य ध्वज पूजन के बाद वायु के दबाव और दिशा के अनुसार मानसून का फलादेश देते हैं. हवा के रुख से वर्षा का अनुमान लगाया जाता है. वर्षा भी ज्योतिष विज्ञान का ही एक भाग है, यही वजह है कि इस दौरान गणना के आधार पर की गई भविष्यवाणी लगभग सटीक रहती है.

राजधानी जयपुर में लोगों को अब 3 जुलाई का इंतजार

जयपुर. इस बार नौतपा में सूर्य की तपिश देखने को नहीं मिली. जिसकी वजह से वर्षा को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है. ऐसे में अब लोगों को आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा (3 जुलाई) का इंतजार है. जब जयपुर में परंपरा का निर्वहन करते हुए ज्योतिषाचार्यों की ओर से जंतर-मंतर पर सम्राट यंत्र के जरिए वर्षा का पूर्वानुमान लगाया जाएगा.

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तीन जुलाई को वायु धारिणी पूर्णिमाः सवाई जयसिंह सिंह द्वितीय ने जयपुर की स्थापना के वक्त यहां वेदशाला बनवाई थी. जिसे जंतर-मंतर नाम दिया गया था. इसी जंतर-मंतर पर ज्योतिषियों की ओर से हर साल आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा पर वायु परीक्षण करते हुए वर्षा का पूर्वानुमान लगाया जाता रहा है. ज्योतिष आचार्य विनोद शास्त्री ने बताया कि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को वायु धारिणी पूर्णिमा होती है. वायु धारिणी पूर्णिमा भारतीय ज्योतिष शास्त्र, धर्म शास्त्रों और वृष्टि विज्ञान का महत्वपूर्ण दिन होता है. इस बार 3 जुलाई को ये आषाढ़ पूर्णिमा पर वायु परीक्षण किया जाएगा और वर्षा कैसी होगी उसका फलादेश प्राप्त होगा.

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वायु के दबाव व दिशा से तय होता है मानसून का फलादेश

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सदियों से चली आ रही परंपराः उन्होंने बताया कि वायु धारिणी के लिए राजस्थान के प्रतिष्ठित विद्वान जंतर-मंतर पर इकट्ठा होकर परीक्षण करते हैं. ज्योतिष शास्त्र की स्थापना से ये परंपरा चली आ रही है. जयपुर राजघराना इस परंपरा को सदियों से निभाता रहा है. जयपुर में सम्राट यंत्र पर विगत 300 वर्षों से वायु परीक्षण कर वर्षा का पूर्वानुमान लगाने की परंपरा चली आ रही है. इस परीक्षण में पूर्व, उत्तर या फिर नैऋत्य दिशा से हवा का प्रवाह होता है, तो ये वर्षा के लिए श्रेष्ठ माने जाते हैं. इसके अलावा अन्य दिशाओं से हवा का प्रवाह श्रेष्ठ नहीं माना जाता.

वायु के दबाव व दिशा से तय होता है मानसून का फलादेशः आपको बता दें कि आषाढ़ पूर्णिमा पर योग-संयोग के बीच होने वाली वर्षा की पुष्टि सूर्यास्त के समय वायु परीक्षण के आधार पर की जाती रही है. जयपुर के जंतर- मंतर में 105 फीट ऊंचा सम्राट यंत्र बना हुआ है. जिस पर चढ़कर ज्योतिषाचार्य ध्वज पूजन के बाद वायु के दबाव और दिशा के अनुसार मानसून का फलादेश देते हैं. हवा के रुख से वर्षा का अनुमान लगाया जाता है. वर्षा भी ज्योतिष विज्ञान का ही एक भाग है, यही वजह है कि इस दौरान गणना के आधार पर की गई भविष्यवाणी लगभग सटीक रहती है.

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