जयपुर. राजधानी के निगम में मेयर और ब्यूरोक्रेट के बीच विवाद का पुराना इतिहास रहा है. महापौर ज्योति खंडेलवाल के समय एक नहीं दो नहीं बल्कि 9 कमिश्नर बदले गए. राजेश यादव, जगरूप सिंह यादव और एलसी असवाल से तो अच्छी खासी खींचतान रही थी. हालांकि ब्यूरोक्रेट बदलने का हर बार कारण विवाद नहीं रहा. वहीं इसके बाद अशोक लाहोटी और रवि जैन, विष्णु लाटा और विजय पाल सिंह के बीच बतौर मेयर और कमिश्नर अच्छे संबंध नहीं रहे. जब जयपुर में 2 निगम बने तो ग्रेटर निगम में सौम्या गुर्जर और कमिश्नर यज्ञ मित्र सिंह देव का प्रकरण किसी से छुपा नहीं है. जबकि हाल ही में हैरिटेज नगर निगम में महापौर मुनेश गुर्जर और एडिशनल कमिश्नर राजेंद्र वर्मा के बीच की खींचतान जगजाहिर हुई. इन सभी प्रकरणों में विवाद भले ही मेयर और ब्यूरोक्रेट के बीच हुआ हो, लेकिन खामियाजा आम जनता और आम जनता से जुड़े हुए विकास कार्यों को भुगतना पड़ा है. इस बार तो निगम बाहरी दखल से गुजर रहा है.
जयपुर के निगमों में लगातार तीन बोर्ड से वित्तीय अधिकार और शक्ति के लिए मेयर और ब्यूरोक्रेट के बीच विवाद होता रहा है. विशेषकर जब-जब मेयर अपने अधिकारों के लिए मुखर हुए तब तब विवाद ने जन्म लिया. दरअसल, 2009 में कांग्रेस सरकार के शासन में मेयर को कमजोर करते हुए कमिश्नर को ज्यादा अधिकार दिए गए थे. जबकि इसी बोर्ड में पहली मर्तबा मेयर जनता की ओर से सीधे चुनी गई थी. नतीजन तत्कालीन मेयर ज्योति खंडेलवाल के कार्यकाल में टकराव शुरू हुए. हालांकि यह टकराव लिखित में शिकायत और नोटशीट के जरिए हुए था.
ज्योति खंडेलवाल के 5 साल के कार्यकाल में 10 सीईओ (कमिश्नर) बदले : ज्योति खंडेलवाल के कार्यकाल में 10 सीईओ बदले गए. जिनके नाम ललित मेहरा, आरपी जैन, लालचंद असवाल, एमपी स्वामी, राजेश यादव, एमपी मीणा (कार्यवाहक), लोकनाथ सोनी, जगरूप सिंह यादव, लालचंद असवाल और ज्ञानाराम हैं.
ज्योति का कई कमिश्नर से रहा विवाद : ज्योति खंडेलवाल ने अपने कार्यकाल के दौरान तत्कालीन यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी तक से शिकायत की थी. उनके दौर में कमिश्नर रहे एलसी असवाल, राजेश यादव, जगरूप सिंह यादव से और लोकनाथ सोनी से विवाद जगजाहिर है. वकीलों की नियुक्ति का मामला, मेयर हाउस की जमीन को किसी अन्य को आवंटित करने, अतिक्रमण का मामला, बीट कर्मचारियों का ईएसआई/पीएफ का मामला विवाद का प्रमुख कारण रहा था.
नाहटा vs आशुतोष : इसके बाद मेयर बने निर्मल नाहटा और सीईओ आशुतोष एटी पेडणेकर ने मेयर से बिना पूछे 125 कर्मचारियों के ट्रांसफर कर दिए थे. इस पर महापौर को यूओ नोट लगाना पड़ा. उसके बावजूद भी तत्कालीन सीईओ (चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर) नहीं माने और उन्होंने सभी को रिलीव करवा दिया.
लाहोटी vs रवि जैन : मेयर अशोक लाहोटी और कमिश्नर रवि जैन के बीच भी विवाद हुआ. लाहोटी 168 करोड़ के विकास कार्यों की वित्तीय स्वीकृति को लेकर बोर्ड बैठक बुलाना चाहते थे. लेकिन रवि जैन ने इस पर अड़ंगा लगा दिया और खुद अवकाश पर चले गए. यही नहीं कमिश्नर मेयर के अधिकार की 75 लाख से ऊपर की फाइल को दो फाइल बनवाने लगे, ताकि कोई भी फाइल मेयर तक जाए ही नहीं. लाहोटी ने इसकी शिकायत भी राज्य सरकार से की थी.
लाटा vs विजयपाल : इसके बाद मेयर बने विष्णु लाटा और कमिश्नर विजय पाल सिंह के बीच में खींचतान चलती रही. गैराज शाखा में संसाधन खरीदने, बोर्ड की मीटिंग और विकास कार्यों की फाइल को अटकाने के आरोप लगते रहे.
सौम्या vs यज्ञ मित्र सिंह : ग्रेटर नगर निगम की महापौर डॉ सौम्या गुर्जर और कमिश्नर यज्ञ मित्र सिंह देव के बीच बीवीजी कंपनी को लेकर विवाद उपजा था. आलम ये रहा कि मामले में सौम्या गुर्जर को अपनी सीट तक गंवानी पड़ी थी. हालांकि कोर्ट से लड़कर वो वापस सीट पर काबिज हुई. तब तक यज्ञ मित्र सिंह निगम से हट चुके थे.
मुनेश vs राजेंद्र वर्मा : हाल ही में हेरिटेज नगर निगम महापौर मुनेश गुर्जर और एडिशनल कमिश्नर राजेंद्र वर्मा भी आमने-सामने हो गए थे. मामला बीट की फाइल अटकाने से जुड़ा था. इस मामले में जमकर तू-तड़ाक और अभद्र भाषा का प्रयोग भी हुआ. जिसके वीडियो भी सार्वजनिक हुए. ऐसे में राजेंद्र वर्मा को सस्पेंड करने की मांग को लेकर महापौर ने पार्षदों के साथ धरना भी दिया.
मेयर को नोट शीट पर लिखने और शिकायत का अधिकार : मेयर ब्यूरोक्रेट्स के बीच किस-किस काम को लेकर पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल ने कहा कि जनप्रतिनिधियों की भावना रहती है कि जनता के हित में काम हो सके. उसके लिए अगर उन्हें अधिकारियों को कहना होता है, तो निश्चित रूप से कहते भी हैं. क्योंकि निगम पब्लिक डीलिंग का डिपार्टमेंट है जहां जन्म से लेकर मृत्यु तक के काम होते हैं. ऐसे में पब्लिक डीलिंग ज्यादा होने की वजह से लोगों की अपेक्षाएं भी बहुत ज्यादा होती हैं. लेकिन अगर काम में कोताही है तो निश्चित रूप से नोटशीट लिखें. मेयर के पास फाइल पर लिखने का अधिकार होता है, तो उसके हिसाब से नोटशीट भेज कर और यदि कहीं भ्रष्टाचार पाया जाता है तो उसकी शिकायत एसीबी या संबंधित विभाग में करके रिजल्ट पा सकते हैं
लेकिन इन दिनों निगमों में अमर्यादित भाषा को बोलना, कमरे से बाहर नहीं निकलने देना या यूं कहें कि एक सीधा टकराव भाषा, बोलचाल के माध्यम से हो रहा है. वो गलत है. निश्चित रूप से उनके समय पर भी कई कमिश्नर बदले गए. लेकिन ये मुख्यमंत्री का अधिकार होता है. उन्होंने कभी किसी कमिश्नर को बदलने के लिए नहीं कहा. यदि उन्हें किसी काम में कमी नजर आई है, तो उसे सीधे नोटशीट के माध्यम से कहा गया है. एसीबी में शिकायत की है. उनके समय में ही सबसे पहले आईएएस जेल गया. ऐसे में आपसी टकराव, अमर्यादित भाषा या हाथापाई करना ये जनप्रतिनिधियों ब्यूरोक्रेट्स के बीच में उचित प्रक्रिया नहीं हो सकती. यदि जनप्रतिनिधि पॉलिसी निर्धारक है, तो ब्यूरोक्रेट उसको एग्जीक्यूट करने वाले हैं. दोनों के साथ से ही निगम बेहतर ढंग से चल सकता है. ऐसे में सीधे टकराव से बचना चाहिए.
इस बोर्ड में बाहरी दखल : 2004 से लगातार पार्षद उमर दराज ने बताया कि पहले निगम में इतना भारी हस्तक्षेप नहीं था, जितना अब देखने को मिल रहा है. इसे लेकर उन्होंने आदर्श नगर विधायक रफीक खान पर तो सीधे आरोप भी लगाए. उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि यदि ब्यूरोक्रेसी और मेयर या पार्षदों के बीच कम्युनिकेशन गैप रहता है, तो उससे विकास का धागा टूटता है, गांठ बनती है और विकास कार्यों पर सीधा असर पड़ता है.