जयपुर. किसान महापंचायत ने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरपीसी) को लेकर केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं. किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा (Rampal Jat on ERCP) कि नदी से नदी जोड़ों की नीति के तहत किसी भी परियोजना को संबंधित राज्यों की सर्वसम्मति के बिना स्वीकृत नहीं किया जा सकता है. यह स्थापित तथ्य है. इसके बाद भी केंद्रीय जल शक्ति मंत्री की ओर से पार्वती-कालीसिंध-चंबल (पीकेसी) का पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना से एकीकरण की स्वीकृति का राग अलापा जा रहा है. जाट ने कहा कि किसी भी राज्य में सिंचाई परियोजना तैयार करने का कार्य संबंधित राज्य का ही होता है, तब भी केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के मुखिया की ओर से भ्रम उत्पन्न करने के लिए स्वीकृति संबंधी वक्तव्य प्रसारित किया गया है.
तथ्यों को अनदेखा कर रहे हैं केंद्रीय मंत्री: जाट ने बताया कि राष्ट्रीय वन्यजीव मंडल की 18वीं बैठक 12 अप्रैल, 2020 को हुई थी. इस बैठक में हुए फैसले के अनुसार चंबल नदी के संबंध में कोई भी परियोजना स्वीकृत नहीं की जा सकती है. जाट ने कहा कि केंद्रीय मंत्री के रूप में इस प्रकार के तथ्यों को अनदेखा किया जाना आश्चर्यजनक है. इस एकीकरण के कारण पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना से मिलने वाले पानी की मात्रा 3510 मिलियन घन मीटर से घटकर 1775 मिलियन घन मीटर रह जायेगी.
साल 2017 में इस परियोजना की डीपीआर तैयार करते वक्त केंद्र सरकार के मानकों के मुताबिक रोजाना प्रति व्यक्ति 40 लीटर पानी की जरूरत के मुताबिक 1723.5 मिलियन घनमीटर पानी की आवश्यकता आंकी गई थी. अब नये मानकों के अनुसार रोजाना यह जरूरत प्रति व्यक्ति 55 लीटर कर दी गई है. इस 37.5 फीसदी बढ़ोतरी होने से भारत सरकार के नए मानकों के अनुसार 13 जिलों में पीने के पानी के लिए 2369.81 मिलियन घन मीटर की आवश्यकता है. दूसरी ओर 202482 हेक्टर नया सिंचित क्षेत्र विकसित होने की संभावना समाप्त जाएगी. वहीं 26 बांधों के लबालब नहीं होने से 80878.44 हेक्टेयर में सिंचाई के पुनर्जीवित होने का सपना धूल में मिल जाएगा.
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महापंचायत का आरोप है कि जल शक्ति मंत्री 40 हजार करोड़ के बजट की जगह 20-22 हजार करोड़ की लागत बताकर उसकी 90% राशि देने का बखान कर रहे हैं. जाट ने कहा कि ऐसे हालात में ईआरपीसी ही समाप्त हो जाएगी. वहीं सूखा प्रभावित और वर्षा सिंचित कृषि भूमि को जल से वंचित होना पड़ेगा. जाट ने कहा कि साल 2018 में चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई सभाओं में ईआरसीपी को लेकर घोषणा की थी. ऐसे में जल शक्ति मंत्री के रूप में शेखावत की जिम्मेदारी थी कि वह प्रोजेक्ट बनाकर प्रधानमंत्री को उनकी घोषणा याद दिलाते. इसके विपरीत मंत्रालय के मुखिया प्रधानमंत्री की घोषणाओं को पूरी नहीं कर उनकी इच्छा का सम्मान भी नहीं कर रहे हैं, बल्कि राजस्थान की जीवन रेखा इस परियोजना से राजस्थान वासियों को वंचित करने पर उतारू हैं.