जयपुर. सुहागिनों ने आज अखंड सौभाग्य के लिए करवा चौथ का व्रत रखा है. रात 8:28 बजे चांद का दीदार करते हुए महिलाएं अपना व्रत खोलेंगी. इससे पहले सुबह से राजधानी के बाजारों में नवविवाहिताएं करवा खरीदने और अपनी सास को सुहाग का सामान देने के लिए निकली. साथ ही सोलह श्रृंगार करने के लिए ब्यूटी पार्लर में पहुंची.
पति की लंबी आयु के लिए करेंगी मंगलकामनाः विशेष संयोगों में बुधवार को करवा चौथ का व्रत रखकर महिलाएं अखंड सुहाग की कामना कर रही हैं. छोटी काशी में सुबह से महिलाओं ने कथा सुनकर, सोलह श्रृंगार करते हुए बड़ों का आशीर्वाद लिया. कथा सुनने के साथ ही भगवान गणेश, चौथ माता और फिर चंद्र देव की पूजा की गई. रात को चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति की लंबी आयु के लिए मंगलकामना करेंगी.
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करवा चौथ पर पड़ रहा ये महासंयोगः ज्योतिषाचार्य पंडित पुरुषोत्तम गौड़ ने बताया कि सर्वार्थसिद्धि योग, अमृत योग के साथ मृगशिरा नक्षत्र का महासंयोग भी है. करवा चौथ के दिन सूर्य, मंगल और बुध एक साथ विराजमान रहने से बुधादित्य योग बना है. ऐसे में रोहिणी नक्षत्र में चंद्रमा की पूजा करना शुभ संयोग रहेगा. पंडित पुरुषोत्तम गौड़ ने बताया कि चंद्रमा को गणेश जी ने श्राप दिया था. इसलिए चतुर्थी पर चंद्रमा को देखने से दोष लगता है, इससे बचने के लिए चांद को सीधे देखने के बजाए छलनी का प्रयोग करते है. इसकी शुरुआत सावित्री के पतिव्रता धर्म से हुई. आपको बता दें कि करवा चौथ पर महिलाएं निर्जला व्रत रहती हैं. रात में मिट्टी के बर्तन से पानी पीकर व्रत खोलती हैं. ये करवा पंचतत्वों से बना होता है, जबकि आयुर्वेद के अनुसार व्रत में इस्तेमाल होने वाला करवा मिट्टी से बना होता है.
यह है पौराणिक कहानीः बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी. सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे. यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे. एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी. शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा, उनकी बहन बहुत व्याकुल थी. सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जला व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है. चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है.
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है. दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो. इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो. बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है. वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है.
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दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है. वह बौखला जाती है. उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ. भाभी बताती है कि करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं. सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी.
वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है, उसकी देखभाल करती है. उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है. एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है. उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं. जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं, तो वह प्रत्येक भाभी से यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है.
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इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है. यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए उसे पकड़ लेना तो तुम और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना. ऐसा कह कर वह चली जाती है. सबसे अंत में छोटी भाभी आती है. करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती लेकिन वह टालमटोली करने लगती है. इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है. भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है.
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है. करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है. इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है. इस पर करवा कहती है कि हे श्री गणेश-मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले.