जयपुर. राजधानी जयपुर में 13 मई 2008 को हुए सीरियम बम ब्लास्ट मामले में हाईकोर्ट ने बुधवार को सभी सबूतों को खारिज करते हुए आरोपियों को बरी कर दिया. कोर्ट ने धमाकों के चार आरोपी रहे सैफ, सैफूर्रहमान, सलमान और सरवर आजमी को बरी करते हुए कहा कि ATS ने भरोसे लायक सबूत नहीं दिए हैं. इस तरह से 16 साल पुराने मामले में जयपुर को इंसाफ भी नहीं मिला. इससे पहले मामले में एक आरोपी शाहबाज हुसैन को बरी किया गया था. साल 2019 के दिसंबर में अभियोजन पक्ष की ओर से आरोप साबित नहीं कर पाने की वजह से शाहबाज हुसैन के खिलाफ मामला साबित नहीं हो सका था. जाहिर है कि इन सिलसिलेवार बम धमाकों में 71 बेगुनाहों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था, जबकि 186 लोग घायल हो गए थे.
पूनिया ने सरकार को घेरा : जयपुर में 13 मई 2008 को हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामलों में राजनीति पर तेज हो गई है. भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कोर्ट का फैसला आने के बाद अपना वीडियो जारी किया. इस दौरान पूनिया ने आरोप लगाते हुए कहा कि बम ब्लास्ट मामले में सभी आरोपियों का बरी होना गहलोत सरकार की पैरवी पर शंका पैदा करता है. यह मामला राज्य सरकार की न्यायिक पैरवी की लापरवाही पर भी संदेह पैदा करता है. पूनिया ने इल्जाम लगाकर कहा कि यह मामला कांग्रेस सरकार की तुष्टिकरण की पराकाष्ठा है.
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पूर्व पुलिस अधिकारी का यह तर्क : राजस्थान पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी राजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि जयपुर ब्लास्ट में जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को इंसाफ नहीं मिला. आज उनके दिल पर जो बीत रही है, उसे बयान नहीं किया जा सकता है. शेखावत ने कहा कि एंटी टेररिस्ट स्कवॉड ने इस मामले की जांच की थी, लेकिन हाईकोर्ट के मुताबिक इस जांच में कई तरह की खामियां भी रही थीं. जिसकी वजह से निचली अदालत से फांसी की सजा पाने वाले आरोपी बरी हो गए. शेखावत ने कहा कि प्रदेश सरकार को पीड़ित परिवारों को इंसाफ दिलाने के लिए ऊपरी अदालत में जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि मामले में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की अनुशंसा यह जाहिर करती है कि मामले की जांच के दौरान काफी लापरवाही बरती गई है. जबकि एटीएस का गठन ही आतंकवाद को रोकने के मकसद से किया गया था.
यह तर्क दिया आरोपियों के वकील ने : जयपुर धमाकों के मामले में बरी किए गए आरोपियों के वकील सैयद सदत अली ने बाद में मीडिया से बातचीत में इस मामले की जांच के दौरान बरती गई खामियों का भी तफ्सील के साथ जिक्र किया. उन्होंने कहा कि इस मामले में पांच आरोपियों की गिरफ्तारी की गई थी, जिसमें से एक को चार साल पहले बरी कर दिया गया था. लेकिन दोषी करार दिए गए अन्य चार जिसमें मोहम्मद सैफ, साल 2009 में गिरफ्तार किए गए सरवर और सैफुर्रहमान और साल 2010 में पकड़े गए सलमान के खिलाफ पेश किए गए सबूतों में कई खामियां थीं.
एटीएस के चार अधिकारियों ने इस मामले की जांच की थी. मामले में सबसे बड़ी चूक यह रही कि एटीएस अधिकारियों ने डिस्क्लोजर स्टेटमेंट पर भरोसा किया, लेकिन उससे तीन महीने पहले ही साइकिल की दुकानवालों को बुलाकर जांच की गई थी. ऐसे में यह तर्क कैसे साबित होगा कि अगर धमाके के चार महीने बाद पहली बार साइकिल खरीदने की खबर मिली थी, तो धमाकों को अगले दिन किसने बताया कि किशनपोल बाजार से साइकिल खरीदी गई थी. इसी तरह से साइकिल खरीद की बिल बुक बरामद की गई, जिनमें साफ तौर पर सीरियल नंबर्स में छेड़छाड़ को कोर्ट ने माना है.
वहीं, बिल बुक में पेश की गई साइकिल के नंबर और सीज की गई. साइकिलों के नंबर मैच नहीं करते हैं. कोर्ट ने एटीएस के उस तर्क को दरकिनार किया, जिसमें आरोपियों के 13 मई को दिल्ली से बस में हिंदू नाम से आकर धमाके करने की बात कही गई है, जबकि इस बारे में किसी तरह से टिकट या दसतावेज पेश नहीं किए गए. कोर्ट ने माना कि आरोपियों के दोपहर में दिल्ली से जयपुर आकर साइकिल खरीदने से लेकर खाना खाने और बम प्लांट करके दिल्ली लौटने की मियाद किसी भी लिहाज से मुमकिन नहीं है. वहीं, एक और तर्क धमाकों में इस्तेमाल किए गए बम में लगाए गए छर्रों से जुड़ा है. एटीएस का कहना था कि आरोपियों ने छर्रे दिल्ली जामा मस्जिद के नजदीक एक दुकान से खरीदे थे, लेकिन जो छर्रे पेश किए और बम में इस्तेमाल छर्रे FSL की जांच में हुए मिलान के दौरान नहीं मिले.