कोटपूतली (जयपुर). ओडिशा में भगवान जगन्नाथ पुरी की महिमा पूरी दुनिया में विख्यात है. लेकिन क्या आपको पता है कि साल में जिस एक दिन पुरी में कपाट बंद होते हैं, उसी दिन कोटपूतली के पास गांव पुरुषोत्तमपुरा में भगवान जगन्नाथ मंदिर के कपाट खुलते हैं. इसी दिन यहां लक्खी मेला भरता है. ऐसे में इस मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.
भगवान जगन्नाथ के मेले की तैयारियां 15 दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं. मेले की शुरुआत भगवान जगन्नाथजी को अन्नकूट प्रसादी के भोग के साथ की जाती है. ऐसे में अन्नकूट प्रसादी के लिए इस बार 30 क्विंटल बाजरा, 2 हजार लीटर कढ़ी और कई क्विंटल सब्जी तैयार की गई है. इस प्रसादी को लेने के लिए भक्तों में दिन भर तांता लगा रहा.
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भगवान जगन्नाथ का ये अनूठा मंदिर नारेहड़ा पावटा सड़क मार्ग से करीब 2 किमी पश्चिम में पहाड़ियों के बीच में बना है. वहीं इस मंदिर में कई किलोमीटर से भक्त पैदल चलकर यहां पहुंचते हैं और मन्नते मांगते हैं. भगवान जगन्नाथ के इस धाम से केशवदास नाम के भक्त की कहानी जुड़ी है.
बताया जाता है कि सैकड़ों साल पहले केशवदास यहां से हर साल दर्शन के लिए उड़ीसा के जगन्नाथपुरी पैदल जाया करते थे. जगन्नाथपुरी जाकर आने में उन्हें 6 महीने लग जाते थे. बुढ़ापे में जब उनके लिए चलना दूभर हो गया था तो भगवान जगन्नाथ ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि पुरुषोत्तमपुरा के अखेबड़ पर्वत से एक शिला टूट कर नीचे आएगी. जिसे मेरा स्वरूप मानकर पूजा करो. जिसके बाद से ही यहां पूजा-अर्चना की जा रही है.
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तभी से हर साल यहां पौष मास की कृष्ण पक्ष नवमी को विशाल मेला भरता आ रहा है. मेले की खास बात यह है कि जिस दिन यहां मेला भरता है. उस दिन उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी धाम के पट बंद रहते हैं. मंदिर की एक और खास बात ये है कि मनोकामनाएं पूरी होने पर यहां मेले की रात में भक्त मशाल जलाते हैं. इन मशालों को जलाने में 1 क्विंटल से ज्यादा सरसों का तेल इस्तेमाल किया जाता है.