जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार से पूछा है कि एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट को लागू करने से जुड़े मामले में क्या कार्रवाई हो रही है. इसके साथ ही अदालत ने मामले में बार कौंसिल ऑफ इंडिया को नोटिस जारी कर 20 मार्च तक जवाब तलब किया है. अदालत ने कहा कि अधिवक्ताओं की सुरक्षा के लिए कोर्ट गाइडलाइन जारी कर सकती है. ऐसे में केन्द्र और राज्य सरकार के साथ बार कौंसिल ऑफ राजस्थान इस संबंध में अपने सुझाव भी पेश करे. एक्टिंग सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस अनिल उपमन की खंडपीठ ने यह आदेश राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व महासचिव प्रहलाद शर्मा की जनहित याचिका पर दिए.
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता डॉ अभिनव शर्मा ने सुनवाई के दौरान कहा कि चिकित्सकों को संरक्षण देने के लिए 8 धाराओं को लेकर कानून बनाया गया है. इसके लागू होने के बाद प्रदेश में चिकित्सकों के प्रति होने वाले अपराधों पर लगाम लग गई है. इस पर अदालत ने चुटकी लेते हुए कहा कि वे चिकित्सक हैं, लेकिन आप तो सर्जन की भूमिका में हो. इस पर अधिवक्ता अभिनव शर्मा ने कहा कि वकील सुपर स्पेशलिस्ट होता है. यदि सरकार कानून बनाने के अपने कर्तव्य से विमुख होगी तो अधिवक्ता वर्ग सरकार की पूरी सर्जरी कर देगा.
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याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि जब तक राज्य सरकार कानून नहीं बनाती, तब तक अदालत गाइडलाइन जारी कर वकीलों का संरक्षण कर सकती है. इस पर अदालत ने कहा कि उनकी मांग जायज है. ऐसे में सभी पक्ष इस संबंध में अपने सुझाव पेश करें. अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि वकील कोर्ट ऑफिसर होता है. इस मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए और केन्द्र व राज्य सरकार को मिलकर निर्णय लेना चाहिए. राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि मामला उच्च स्तर पर देखा जा रहा है. वहीं बार कौंसिल ऑफ राजस्थान की ओर से अधिवक्ता प्रतीक कासलीवाल ने कहा कि कौंसिल 27 जुलाई, 2021 को बिल को अप्रूव्ड कर राज्य सरकार को भेजा जा चुका है.
वहीं केन्द्र सरकार की ओर से कहा गया कि मामला समवर्ती सूची के विषय का है. ऐसे में केन्द्र और राज्य सरकार इस पर कानून बना सकती हैं. सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने बीसीआई को नोटिस जारी करते हुए 20 मार्च तक सभी को अपना जवाब और सुझाव पेश करने को कहा है. दूसरी ओर वकीलों के न्यायिक बहिष्कार को लेकर अदालत की ओर से लिए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई 9 मार्च तक टल गई. इसके अलावा प्रोटेक्शन एक्ट की मांग को लेकर प्रदेश की अदालतों में वकीलों का न्यायिक बहिष्कार जारी रहा.