जयपुर. प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में दोनों ही प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा जातीय समीकरण साधने में लगी हुई है. सीएम अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच अदावत बढ़ती जा रही है. अब बीजेपी इस लड़ाई में अपना चुनावी फायदा उठाने में जुट गई है. इस बार गुर्जर किसके साथ जायेगा ये बड़ा सवाल है, क्योंकि सचिन पायलट अभी भी कांग्रेस के साथ है और सचिन पायलट के चेहरे पर ही पिछली बार गुर्जर समाज ने एक तरफ़ा कांग्रेस को वोट किया था. जिसके चलते बीजेपी का एक भी गुर्जर विधायक जीत कर नहीं आया. लेकिन इस बार भी गुर्जर समाज किसके साथ जायेगा इस गुर्जर नेता विजय बैंसला ने Etv भारत से खास बातचीत में बताया कि इस बार गुर्जर किसी एक व्यक्ति या दल के साथ नहीं जायेगा. काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती, समाज अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है. जो भी पार्टी गुर्जर प्रतिनिधित्व की बात करेगी समाज उनके साथ जायेगा. बैंसला ने कहा इस बार गुर्जर समाज की ही नहीं बल्कि उन पांच जातियों की एक साथ होगी जी NBC यानी नेशनल बैकवर्ड क्लासेज में शामिल है.
गुर्जर वहीँ जहां गुर्जर की बात : गुर्जर नेता विजय बैंसला ने कहा कि गुर्जर इस बार वहीँ जायेगा जाएगा जहां गुर्जर की बात होगी. पिछली बार के चुनाव में जो गलती हुई जिसका खामियाजा इस तरह से भुगतना पड़ा था कि जो बीजेपी से गुर्जर कैंडिडेट्स खड़े हुए थे वो जीत नहीं पाए. आज की तारीख में सिर्फ हमारे समाज के विधायक सरकार में ही हैं, विपक्ष में एक भी नहीं है. ये जो गलती हुई पिछली बार हुई इस बार नहीं होगी. जहां से भी गुर्जर या एनबीसी का कैंडिडेट चुनाव मैदान में उतरेगा उसको जिताएंगे. इस बार कोई गलती समाज नहीं करेगा. पार्टी कोई भी हो गुर्जर सिर्फ और सिर्फ गुर्जर के साथ ही जायेगा.
एक व्यक्ति के पीछे नहीं जायेंगे : विजय बैंसला ने कहा कि पिछली बार आहुति दी थी, जिसने भी बीजेपी के बैनर पर चुनाव लड़ा उन सभी ने किसी एक व्यक्ति को सीएम बनाने के लिए अपनी आहुति दे दी. लेकिन जो बात कांग्रेस को पूरी करनी थी वो पूरी नहीं की. उसका रिजल्ट जो मिलना चाहिए था वह नहीं मिला. लेकिन अब ये सब बात पुरानी हो गई अब समाज अपना भविष्य देख रहा है. राजस्थान में 200 विधानसभा सीटें हैं इनमे से 75 सीटों पर एनबीसी समाज अपना प्रभाव रखता है. बैंसला ने कहा कि इस बार गुर्जरों की बात नहीं है, एनबीसी समाज की बात है. एक जाजम पर बैठकर डिसीजन ले रहा है. हर बार 5 से 7 सीटें मिलती हैं जितना प्रतिनिधित्व उतना क्यों नहीं ? जहां पर गुर्जर या एनबीसी समाज 20 से 60 हजार की संख्या में उनको टिकट नहीं दिया जाता, उनकी जगह दो से ढाई हजार वोट वाले समाज को आप टिकट देते हो. तो इस रिप्रेजेंटेशन को ठीक करने की जरूरत है.
पिछला दंश झेल रहे हैं : बैंसला ने कहा कि जहां समाज का व्यक्ति खड़ा होगा, समाज उसके साथ खड़ा होगा फिर पार्टी कोई भी हो. जो नुकसान जो दंश पिछले इलेक्शन में झेल चुके हैं उसे दोबारा नहीं झेल सकते. बीजेपी में एक भी विधायक नहीं है. उसको ठीक करने के लिए इस बार किसी भी पार्टी से समाज का उम्मीदवार आये उसे हम जिताएंगे. गुर्जर इस बार एनबीसी के साथ अपनी ताकत क्यों दिखा रहा इस सवाल पर बैंसला ने कहा कि इस बार एनबीसी की बात इसलिए हो रही है क्योंकि हम 5% आरक्षण जो लागू हुआ उसमें हम साथ थे, नौकरियों में साथ है, आंदोलन में साथ रहे, संघर्ष में साथ रहे, तो आने वाली राजनीतिक ताकत में भी हम एक साथ होंगे और अपनी इस ताकत को मजबूत करेंगे. बैंसला ने कहा कि हम बाहर बैठ कर बात क्यों करें. कब तक पटरियों पर बैठे, अब पटरियों पर नहीं अंदर बैठने का वक्त आ गया है.
काठ की हांडी नहीं चढ़ेगी : सचिन पायलट को लेकर विजय ने कहा कि वह अपनी लड़ाई जारी रखें, अच्छी बात है हक की बात करना. अब यह मैटर समाज से परे हो चुका है, ये कांग्रेस पार्टी और उनका इनविजिबल है. उनको शुभकामनाएं दे सकते हैं और जो भी मदद होगी हम करेंगे, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि आगामी इलेक्शन में या उसके बाद आने वाले चुनाव में समाज को क्या प्रेजेंटेशन मिलेगा. 12 लोकसभा सीटों पर भी जहां एनबीसी समाज अपना प्रभाव रखता है, विधानसभा को जोड़कर लोकसभा बनती है. 25 में से 12 लोकसभा सीटों पर अगर प्रभाव है तो समझ सकते हैं कि कितना मजबूत है एमबीसी समाज. ये राजनीतिक पार्टियों को ध्यान रखने की जरूरत है. इस बार किसी एक व्यक्ति या पार्टी के साथ नहीं बल्कि गुर्जर - गुर्जर के साथ जाएगा, उसी के अंदर सब आएंगे. पिछली बार जो हुआ वो दोबारा नहीं होगा, काठ की हांडी एक बार चढ़ती है बार-बार नहीं चढ़ेगी.
दोनों पार्टियों की नजर : कांग्रेस ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया. ऐसे में गुर्जर नाराज है, समुदाय सचिन पायलट के साथ है. हालांकि सीएम गहलोत ने अपनी पकड़ बढ़ने के लिए भगवान देवनारायण की जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित कर किया. वहीं भाजपा पायलट और गहलोत के झगड़े के बीच अपनी राजनीतिक जमीन समाज के बीच में मजबूत करने में लगी है. पीएम नरेंद्र मोदी गुर्जर समुदाय के आराध्य भगवान देवनारायण की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए, गृह मंत्री पूर्वी राजस्थान में चुनावी रणनीति को लेकर बैठक की. बता दें कि 2018 के विधानसभा चुनाव में गुर्जर समाज से 8 विधायक जीत कर सदन पहुंचे थे. 7 प्रत्याशी कांग्रेस के टिकट पर जीत कर विधानसभा पहुंचे. एक प्रत्याशी जोगिन्दर सिंह अवाना बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर जीतकर विधानसभा का सदस्य बने. जबकि बीजेपी के टिकट पर गुर्जर समाज का एक भी विधायक जीत दर्ज नहीं कर पाया था.
12 लोकसभा और 60 विधानसभा गुर्जर समाज का प्रभाव : प्रदेश के 200 सीटों पर नजर डाली जाए तो 14 जिले वो हैं जहां गुर्जर सीधा असर रखता है, राजस्थान में गुर्जर समाज 7% से ज्यादा है. 12 लोकसभा और 60 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर हार जीत का फैसला गुर्जर समाज पर निर्भर करता है. जिलों के लिहाज से देखें तो भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, टोंक, दौसा, बूंदी, कोटा, बारां, झालावाड़, अलवर, राजसमंद, अजमेर, भीलवाड़ा इन जिलों में गुर्जर बाहुल्य है जबकि जयपुर ग्रामीण, झुंझुनूं, सीकर, चितैडगढ, पाली, उदयपुर जिलों की कुछ विधानसभा सीटों पर समाज का असर है. भाजपा के पास 25 में से सिर्फ एक सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया इस समाज से हैं. विधायकों में एक भी नहीं है. लोकसभा के लिहाज से देखें तो जयपुर ग्रामीण, अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक-सवाई माधोपुर, झालावाड़-बारा, कोटा - बूंदी, करौली-धौलपुर, दौसा, भरतपुर और राजसमन्द में गुर्जर समाज प्रभावित करता है. हालांकि गुर्जर समाज इस बार एनबीसी समाज में शामिल पाँचों जातियों की बात कर रहा है ताकि ताकत और मजबूत हो और पार्टियों पर दबाव बन सके.