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पुष्य नक्षत्र में बछ बारस, महिलाएं व्रत कर गाय बछड़े की पूजा करेंगी तो होगा फलदाई

बछ बारस या गोवत्स द्वादशी व्रत पुत्र की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण द्वादशी को बछ बारस या गोवत्स द्वादशी पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष यह त्योहार आज मनाया जा रहा है.

Bach Baras in Pushya Nakshatra
पुष्य नक्षत्र में बछ बारस
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Published : Aug 24, 2022, 7:15 AM IST

जयपुर. भाद्रपद की द्वादशी पर बछ बारस या गोवत्स द्वादशी व्रत (Govatsa Dwadashi 2022) पुत्र की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है. इस बार बछ बारस दो दिन मनाई जा रही है. हालांकि ज्योतिषाचार्यों की मानें तो पुष्य नक्षत्र होने के चलते बुधवार के दिन बछ बारस ज्यादा फलदाई है. इस दिन गौमाता की बछड़े सहित पूजा की जाती है. वहीं, माताएं अपने पुत्र की मंगल कामना के लिए व्रत रखती है और पूजा करती हैं.

बछ बारस (Bach Baras) पर गौ माता और बछड़े की पूजा की जाती है. ये त्योहार संतान की कामना और उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता है. इसमें गाय-बछड़ा और बाघ-बाघिन की मूर्तियां बना कर उनकी पूजा की जाती है. व्रत के दिन बछड़े वाली गाय की पूजा कर कथा सुनी जाती है फिर प्रसाद ग्रहण किया जाता है. ज्योतिषाचार्यों की मानें तो इस दिन गेंहू से बने हुए पकवान और चाकू से कटी हुई सब्जी नहीं खाए जाते हैं. बाजरे या ज्वार का सोगरा और अंकुरित अनाज की कढ़ी, सूखी सब्जी बनाई जाती है. वहीं महिलाओं की ओर से सुबह गौमाता की विधिवत पूजा-अर्चना कर बछबारस की कहानी सुनी जाती है. इसे गोवत्स द्वादशी भी कहते हैं.

दरअसल, भगवान कृष्ण को गाय और बछड़ों से बड़ा प्रेम था. ऐसा माना जाता है कि बछ बारस के दिन गाय और बछड़ों की पूजा करने से भगवान कृष्ण सहित गाय में निवास करने वाले देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है. जिससे घर में खुशहाली और सम्पन्नता आती है. बछ बारस का पर्व (Bach Baras in Pushya Nakshatra) राजस्थानी महिलाओं में ज्यादा लोकप्रिय है.

पढ़ें- एकादशी और बछ बारस का व्रत एक ही दिन, अश्वमेध यज्ञ के समान फलदाई अजा एकादशी

ऐसे करें पूजा- इस दिन बछड़े वाले गाय की पूजा की जाती है. यदि गाय की पूजा नहीं कर सकते तो एक पाटे पर मिट्टी से बछबारस बनाकर उसके बीच में एक गोल मिट्टी की बावड़ी बनाएं. फिर उसको थोड़ा दूध-दही से भरें. ये सब चढाकर पूजा करने के बाद रोली और दक्षिणा चढ़ाएं. हाथ में मोठ और बाजरे के दाने को लेकर कहानी सुनें. बछबारस के चित्र की पूजा भी करें चूंकि धार्मिक पुराणों में गौमाता में सभी तीर्थ होने की बात कही गई है, जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ. गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है, जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान और कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता.

ऐसी मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं और पितरों को एक साथ खुश करना है तो गौभक्ति-गौसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है. भविष्य पुराण के अनुसार गौमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं. इसीलिए बछ बारस या गोवत्स द्वादशी के दिन महिलाएं अपने बेटे की सलामती, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए ये पर्व मनाती हैं.

जयपुर. भाद्रपद की द्वादशी पर बछ बारस या गोवत्स द्वादशी व्रत (Govatsa Dwadashi 2022) पुत्र की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है. इस बार बछ बारस दो दिन मनाई जा रही है. हालांकि ज्योतिषाचार्यों की मानें तो पुष्य नक्षत्र होने के चलते बुधवार के दिन बछ बारस ज्यादा फलदाई है. इस दिन गौमाता की बछड़े सहित पूजा की जाती है. वहीं, माताएं अपने पुत्र की मंगल कामना के लिए व्रत रखती है और पूजा करती हैं.

बछ बारस (Bach Baras) पर गौ माता और बछड़े की पूजा की जाती है. ये त्योहार संतान की कामना और उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता है. इसमें गाय-बछड़ा और बाघ-बाघिन की मूर्तियां बना कर उनकी पूजा की जाती है. व्रत के दिन बछड़े वाली गाय की पूजा कर कथा सुनी जाती है फिर प्रसाद ग्रहण किया जाता है. ज्योतिषाचार्यों की मानें तो इस दिन गेंहू से बने हुए पकवान और चाकू से कटी हुई सब्जी नहीं खाए जाते हैं. बाजरे या ज्वार का सोगरा और अंकुरित अनाज की कढ़ी, सूखी सब्जी बनाई जाती है. वहीं महिलाओं की ओर से सुबह गौमाता की विधिवत पूजा-अर्चना कर बछबारस की कहानी सुनी जाती है. इसे गोवत्स द्वादशी भी कहते हैं.

दरअसल, भगवान कृष्ण को गाय और बछड़ों से बड़ा प्रेम था. ऐसा माना जाता है कि बछ बारस के दिन गाय और बछड़ों की पूजा करने से भगवान कृष्ण सहित गाय में निवास करने वाले देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है. जिससे घर में खुशहाली और सम्पन्नता आती है. बछ बारस का पर्व (Bach Baras in Pushya Nakshatra) राजस्थानी महिलाओं में ज्यादा लोकप्रिय है.

पढ़ें- एकादशी और बछ बारस का व्रत एक ही दिन, अश्वमेध यज्ञ के समान फलदाई अजा एकादशी

ऐसे करें पूजा- इस दिन बछड़े वाले गाय की पूजा की जाती है. यदि गाय की पूजा नहीं कर सकते तो एक पाटे पर मिट्टी से बछबारस बनाकर उसके बीच में एक गोल मिट्टी की बावड़ी बनाएं. फिर उसको थोड़ा दूध-दही से भरें. ये सब चढाकर पूजा करने के बाद रोली और दक्षिणा चढ़ाएं. हाथ में मोठ और बाजरे के दाने को लेकर कहानी सुनें. बछबारस के चित्र की पूजा भी करें चूंकि धार्मिक पुराणों में गौमाता में सभी तीर्थ होने की बात कही गई है, जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ. गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है, जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान और कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता.

ऐसी मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं और पितरों को एक साथ खुश करना है तो गौभक्ति-गौसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है. भविष्य पुराण के अनुसार गौमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं. इसीलिए बछ बारस या गोवत्स द्वादशी के दिन महिलाएं अपने बेटे की सलामती, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए ये पर्व मनाती हैं.

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