जयपुर. सूबे की सियासी गलियारों में इन दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बयानों के साथ ही तेजी से जारी सियासी नियुक्तियों की (Rajasthan Political Crisis) चर्चा है. खैर, ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि आगामी 19 अक्टूबर को कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिलने जा रहा है. वहीं, कांग्रेस का एक बड़ा खेमा मल्लिकार्जुन खड़गे की जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त है.
इस बीच अगर खड़गे पार्टी अध्यक्ष (Mallikarjun Kharge can win elections) चुने भी जाते हैं तो भी उनकी राह आसान नहीं होगी, क्योंकि पदभार संभालने के साथ ही उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती राजस्थान में जारी सियासी उठापटक (Political Ruckus in Rajasthan) को शांत करने की होगी. वहीं, कहा तो यह भी जा रहा है कि खड़गे भले ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाए, लेकिन पार्टी की कमान गांधी परिवार के हाथों में ही रहेगी. ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का पहले राहुल गांधी से बेल्लारी में मुलाकात और फिर जयपुर में वोटिंग के बाद उनके और गांधी परिवार के मधुर रिश्तों पर बयान प्रदेश कांग्रेस नेताओं को कंफ्यूज किए हुए हैं.
सीएम के सियासी बयानों के कई मायने निकाले जा रहे हैं. साथ ही सवाल उठ रहे हैं कि क्या सीएम गहलोत से आलाकमान की नाराजगी अब दूर हो गई है या फिर रिश्तों की दुहाई देकर गहलोत कुर्सी बचाने की जुगत में जुटे हैं. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि सूबे में 25 सितंबर के बाद एक के बाद एक दो दर्जन से अधिक सियासी नियुक्तियां की गई हैं. इन नियुक्तियों के समय को लेकर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं. पार्टी के कई नेता बिना नाम लिए लगातार सीएम के बयानों की निंदा कर चुके हैं.
आखिर क्यों खामोश हैं पायलट ? : बीते 25 सितंबर को कांग्रेस आलाकमान की ओर से बुलाई गई विधायक दल की बैठक का गहलोत समर्थक विधायकों ने न केवल बहिष्कार किया था, बल्कि स्पीकर सीपी जोशी को अपना इस्तीफा तक सौंप दिया. इसके बाद से ही कहा जा रहा था कि कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाराज है. लेकिन पहले गहलोत का बेल्लारी जाकर राहुल गांधी से मुलाकात करना और फिर 17 अक्टूबर से गुजरात चुनाव के पर्यवेक्षक के तौर पर कमान संभालते हुए रैलियां और जनसभाएं करना, इस ओर इशारा कर रहा है कि शायद आलाकमान ने गहलोत को माफ कर दिया है तो वहीं हड़बड़ी में जारी सियासी नियुक्तियां संदेह की स्थिति उत्पन्न कर रही है.
इसी बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बिना नाम लिए सचिन पायलट पर लगातार हमले कर रहे हैं, लेकिन पायलट खामोश हैं. यही कारण है कि गहलोत से ज्यादा पायलट राजनीतिक पंडितों को चौंका रहे हैं, क्योंकि पायलट कभी जवाब देने से नहीं चूकते हैं. इन सबके बीच पिछले 20 दिनों की बात करें तो पायलट खुद पर जारी व्यक्तिगत हमलों पर भी कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं. ऐसे में पायलट की चुप्पी में कइयों सवाल दबे हैं.