जयपुर. होली-धुलंडी मनाने के साथ मंगलवार से ही छोटी काशी में लोकपर्व गणगौर के पूजन का दौर भी शुरू हुआ. गणगौर इस बार 16 दिन के बजाय 18 दिन पूजी जाएगी. सुहागिन महिलाओं के इस पर्व में नवविवाहिताएं ससुराल से अपने मायके जाकर भगवान शंकर और माता पार्वती के प्रतीक ईसर और गोरा की पूजा करती हैं. धुलंडी के दिन से चैत्र शुक्ल तृतीया तक गणगौर पूजन का दौर चलता है. राजधानी में इसी दिन प्रसिद्ध गणगौर की सवारी भी निकाली जाएगी.
यूं तो गणगौर का पूजन 16 दिन होता है लेकिन इस बार तिथि के घटने-बढ़ने से गणगौर का पूजन 18 दिन किया जाएगा. मंगलवार से महिलाओं ने सोलह शृंगार कर पारंपरिक परिधान पहनकर त्योहार मनाना शुरू कर दिया है. रंगोत्सव के साथ ही गणगौर पूजन का आगाज हुआ, जो आगामी 24 मार्च तक पूरे विधि विधान के साथ किया जाएगा.
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अखंड सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं घर-घर में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं. इसमें ईसर और गौर यानी शिव पार्वती की मिट्टी से मूर्तियां बनाकर उनका शृंगार कर पूजन किया जाता है. कुंवारी युवतियां और सुहागिन महिलाएं पारंपरिक वस्त्र और आभूषण पहनकर सिर पर लोटा रख बाग-बगीचों में जाकर हरी दूब और फूल पत्तियों से अपने लोटे को सजाती हैं. इसके बाद उसमें ताजा जल भरकर उसे सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाते हुए घर आती हैं. इसके बाद घर में विराजे गणगौर की विधि विधान के साथ पूजन किया जाता है.