जयपुर. राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं और अबकी राज्य के सियासी रण में आम आदमी पार्टी भी कूद गई है. बीते दिनों जयपुर आए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने यहां दिल्ली के शिक्षा मॉडल का जमकर प्रचार किया, जिसके बाद अब प्रदेश में शिक्षा मॉडल को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. एक ओर गहलोत सरकार स्कूल शिक्षा में बने अपने 5 वर्ल्ड रिकॉर्ड को गिनाते हुए शिक्षा में राजस्थान के बढ़ते कदम की बात कह रही है तो वहीं, दूसरी ओर राज्य में स्कूल शिक्षा को बतौर मॉडल के रूप में पेश करने को लेकर शिक्षाविदों की राय अलग-अलग है.
केजरीवाल मॉडल पर मंत्री कल्ला ने कही ये बड़ी बात - अरविंद केजरीवाल की ओर से दिल्ली की स्कूली शिक्षा को बतौर मॉडल पेश करने से प्रदेश के शिक्षा मंत्री डॉ. बीडी कल्ला इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल केवल प्रचार-प्रसार और विज्ञापन की सियासत करते हैं. जबकि जो नेशनल सर्वे हुआ है उसमें दिल्ली सातवें नंबर पर है और राजस्थान पहले तीन राज्यों में शामिल है. इसके साथ ही जो नवाचार राजस्थान कर रहा है, वो किसी भी प्रदेश में नहीं किए जा रहे हैं. दिल्ली राजस्थान से बहुत पीछे हैं. उन्होंने कहा कि दिल्ली में शिक्षा का विस्तार नहीं हुआ है. जबकि राजस्थान में एक साथ 4500 सेकेंडरी स्कूल को सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में बदला है. साथ ही स्कूलों में बाल वाटिका शुरू की गई है. इसके अलावा स्कूलों में कमरे, लैब, लाइब्रेरी और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार किए जा रहे हैं. आगे उन्होंने कहा कि नई एजुकेशन पॉलिसी में भी राजस्थान ऐसा पहला राज्य है, जहां 400 से ज्यादा स्कूलों में पीएम श्री योजना के अंतर्गत चयन हुआ है.
राजस्थान में स्कूल शिक्षा में बने ये 5 विश्व रिकॉर्ड
- एक करोड़ बच्चों ने एक साथ 25 मिनट तक गाए 6 राष्ट्रभक्ति गीत
- तीन सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं के सामूहिक गायन में शामिल हुए एक करोड़ छात्र
- नेशनल जंबूरी में सबसे बड़े अस्थायी स्टेडियम एरीना बना रिकॉर्ड
- 56000 स्कूलों में एक साथ चेस खेलने का बना रिकॉर्ड
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से 50 लाख छात्रों की 1.35 करोड़ ओसीआर शीट चेक होने का बना रिकॉर्ड
राजस्थान में आप का कोई संगठन नहीं - राज्य के शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि राजस्थान में केजरीवाल का कोई संगठन नहीं है और न ही उनकी यहां चलने वाली है. शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं राजस्थान सरकार ने तो हाल ही में 10 बड़ी राहत देकर कैंप तक लगवाए हैं, जिसका असर भी देखने को मिल रहा है. वहीं, उन्होंने कहा कि दिल्ली में ऐसे काम नहीं हुए हैं और वहां केवल व केवल विज्ञापन पॉलिटिक्स जारी है.
दिल्ली से राजस्थान की कोई तुलना नहीं - हालांकि, प्रदेश में शिक्षण व्यवस्था को लेकर शिक्षाविदों की अपनी अलग-अलग राय है. शिक्षक नेता विपिन प्रकाश शर्मा का मानना है कि राजस्थान की शिक्षा गुणवत्ता में सुधार हुआ है. पिछली सरकार में 25 हजार स्कूल बंद किए गए थे. इस सरकार में उन्हें चालू करने की कवायद की गई है. वहीं, राज्य सरकार की पहल पर शिक्षा विभाग में जो वर्ल्ड रिकॉर्ड्स बने हैं, उससे भी कहीं न कहीं मनोबल तो बढ़ा ही है. उन्होंने आगे कहा कि दिल्ली और राजस्थान मॉडल की तुलना नहीं की जा सकती है, क्योंकि दिल्ली शहरी क्षेत्र है, जबकि राजस्थान में ग्रामीण इलाके भी शामिल हैं. ऐसे कई रिमोट एरिया हैं, जहां बिजली, पानी तक की सुविधा नहीं है. लेकिन इस क्रम में प्रयास जरूर किए जा रहे हैं.
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चर्चा में सीएम गहलोत का ये मॉडल - दूसरी ओर गहलोत सरकार महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल का नया मॉडल लेकर के आई. अब तक करीब 2700 स्कूलों से खोले जा चुके हैं, और सरकार करीब 1200 स्कूल और खोलने जा रहे हैं. ताकि गरीब ग्रामीण बच्चों को अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा मिल सके. जो सराहनीय प्रयास है. हालांकि विपिन प्रकाश शर्मा ने कहा कि इन्हीं स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी भी है. सरकार अभी भी भामाशाह की ओर देख रही है. इन स्कूलों में ना ही इंग्लिश पढ़ाने वाले शिक्षक हैं.
सरकार संविदा पर भर्ती करने की पॉलिसी लेकर आई लेकिन वो भर्ती भी पाइपलाइन में हैं. सरकार ऐसे फैसले तो लेती है, लेकिन तुरंत उन पर कार्रवाई करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि शिक्षा मंत्री सरकार को रिपीट कर सकता है. लेकिन सरकार शिक्षा मंत्री की ओर भी ध्यान नहीं देती हैं. राजस्थान का ट्रेंड देखें तो 5 साल में दो या तीन शिक्षा मंत्री मिल जाते हैं. एक ही शिक्षा मंत्री 5 साल तक काम करें तो निश्चित रूप से सरकार को रिटेन करने में सबसे बड़ा योगदान रह सकता है. क्योंकि शिक्षा से हर घर में कोई ना कोई जुड़ा हुआ जरूर है, और यही वोटो में भी तब्दील होंगे.
वहीं, शिक्षक नेता महावीर सिहाग ने कहा कि शिक्षा के नाते तीन राज्य राजस्थान, दिल्ली और केरल का नाम आता है. राजस्थान में जिस तरह शिक्षा को बढ़ाने के लिए काम किए हैं, वो प्रशंसनीय है. निशुल्क यूनिफॉर्म वितरण, मिड डे मील के साथ-साथ बाल गोपाल योजना के तहत दूध देना, इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार निश्चित रूप से छात्रों के लिए ये अच्छे काम है. प्रदेश में इंग्लिश मीडियम स्कूल शुरू किए हैं. हालांकि यहां देखने वाली बात यह है कि इंग्लिश मीडियम स्कूल खोलने का प्रचार तो किया जा रहा है, लेकिन जितने स्कूल खोलें हैं उतने ही हिंदी मीडियम स्कूल बंद भी किए गए हैं. जिसे प्रोग्रेस या आगे बढ़ना नहीं कह सकते हैं. दिल्ली सरकार स्कूलों का आधारभूत ढांचा तैयार करने में कामयाब रही है, वो राजस्थान सरकार नहीं कर पाई है.
वहीं, केरल में जिस तरह से रिक्त पदों को हाथोंहाथ भरा जाता है और हर क्लास के लिए शिक्षक नियुक्त किया जाता है, उसकी तुलना में राजस्थान में तो मिडिल स्कूल के लिए 5 ही पद दे रखे हैं. इसके अलावा 3 क्लास खाली रखने की तो खुद सरकार ने व्यवस्था कर रखी है. ऐसे में शिक्षा व्यवस्था को ठीक होने की स्थिति में तो कह सकते हैं लेकिन ये मॉडल के रूप में उचित नहीं है. आज यहां के शिक्षकों को एक मुहिम चलानी पड़ रही है कि 'हमें पढ़ाने दो'. इससे समझ सकते हैं कि राज्य सरकार के शिक्षा मॉडल में कहीं ना कहीं खामी जरूर है. उन्होंने कहा कि अभी देश में केवल केरल को शिक्षा के नाते मॉडल के रूप में देखा जा सकता है. दिल्ली को भी उससे सीखने की दरकार है.
उधर, शिक्षाविद विनोद शास्त्री ने कहा कि राजस्थान में वर्तमान में जो शिक्षा व्यवस्था है वो दूसरे राज्यों के मुकाबले काफी बेहतर हैं. हालांकि वर्तमान स्थिति में इसे मॉडल के तौर पर नहीं देखा जा सकता है, क्योंकि फिलहाल कोई मॉडल है ही नहीं, लेकिन मॉडल बनाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि यहां का शैक्षणिक स्तर और इंफ्रास्ट्रक्चर इस तरह का है कि यदि थोड़ा सा प्रयास किया जाए तो ये देश के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए मॉडल बन सकता है. लेकिन इसमें राजनीतिक दृष्टिकोण को लेकर निर्णय लेने की आवश्यकता नहीं है.