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BSF का यह ऊंट दस्ता, दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड से लेकर जैसलमेर के मरु महोत्सव की है शान - BSF CAMEL SQUAD

सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने मरू महोत्सव में ऊंट कैमल टैटू शो में एक से बढ़कर एक प्रस्तुति दी.

मरु महोत्सव में ऊंट दस्ता
मरु महोत्सव में ऊंट दस्ता (ETV Bharat Jaisalmer)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 16, 2025, 2:18 PM IST

Updated : Feb 16, 2025, 2:36 PM IST

जैसलमेर : सीमा सुरक्षा बल न केवल देश की सीमाओं की रक्षा करती हैं, बल्कि विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से युवाओं में देश के प्रति जोश और जूनून को बढ़ाने का कार्य भी करती हैं. गत दिनों जैसलमेर में आयोजित हुए तीन दिवसीय मरु महोत्सव के दौरान भी बीएसएफ के जवानों ने विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से युवाओं को सशस्त्र बालों में भर्ती होकर देश की रक्षा में अपना योगदान देने के लिए जागरूक किया.

प्रशिक्षित होते हैं यह ऊंट (वीडियो ईटीवी भारत जैसलमेर)

बीएसएफ के उप समादेष्टा मनोहर सिंह खींची ने बताया कि कैमल टेटू शो एक विशेष प्रकार का सांस्कृतिक और शारीरिक प्रदर्शन था, जिसमें ऊंटों को विभिन्न प्रकार के रंगीन टैटू से सजाया गया था. इस शो में दिखाए गए ऊंटों के शरीर पर बने चित्र और डिजाइनों ने उनके अद्वितीय रूप को और भी आकर्षक बना दिया. शो में हर ऊंट एक खास कलाकार की तरह सजा हुआ था, जिसने दर्शकों को न केवल उत्साहित किया, बल्कि भारतीय संस्कृति और राजस्थान की पारंपरिक कला का भी संदेश दिया. इस शो में राजस्थानी लोक गीतों की मधुर धुनों पर माउंटेन बैंड की ओर से शानदार संगीत प्रस्तुति दी गई.

पढे़ं. मरू महोत्सव 2025: रेगिस्तानी जहाज ऊंट के नाम रहा तीसरा दिन, वायु सैनिकों ने किया शौर्य का प्रदर्शन

भारतीय संस्कृति के संगम का उदाहरण : उन्होंने बताया कि दिल्ली के कर्तव्य पथ पर हाल ही में गणतंत्र दिवस की परेड में भी बीएसएफ के कैमल दल और कैमल माउंटेन बैंड ने हिस्सा लिया था, जिसे दर्शकों ने काफी सराहा. उन्होंने कहा कि यह शो सीमा सुरक्षा बल की शक्ति, कला और भारतीय संस्कृति के संगम का बेहतरीन उदाहरण है. इसके माध्यम से न केवल बीएसएफ अपनी वीरता का प्रदर्शन करती है, बल्कि देश के नागरिकों को यह भी बताना चाहती है कि देश की सीमाओं की सुरक्षा में तैनात जवान हर मुश्किल से निपटने के लिए तैयार है.

ऊंटों को विभिन्न प्रकार के रंगीन टैटू से सजाया गया
ऊंटों को विभिन्न प्रकार के रंगीन टैटू से सजाया गया (ETV Bharat Jaisalmer)

प्रशिक्षित होते हैं यह ऊंट : बता दें कि बीएसएफ के पास करीब 1200 ऊंट हैं. ऊंटों को जोधपुर में मंडोर रोड स्थित बीएसएफ के सहायक प्रशिक्षण केंद्र में प्रशिक्षित किया जाता है. ऊंटों को 5 साल की उम्र से ट्रेनिंग दी जाती है. प्रशिक्षण केंद्र में ऊंटों को बैंड की धुनों, तेज आवाज के साथ संयोजन, चलने का क्रम, उठने-बैठने का तरीका, गर्दन घुमाना सिखाया जाता है. एक ऊंट बीएसएफ में करीब 15 साल तक सेवाएं देता है. इसके बाद उसे सेवानिवृत्त कर दिया जाता है.

ऊंट एक खास कलाकार की तरह सजा हुआ रहता है
ऊंट एक खास कलाकार की तरह सजा हुआ रहता है (ETV Bharat Jaisalmer)

पढे़ं. सम लखमणा के धोरों पर ऊंट दौड़ और सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ मरु महोत्सव का समापन

1976 में ऊंटों के दस्ते ने पहली बार की थी परेड : राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड में पहली बार वर्ष 1976 में बीएसएफ का ऊंट दस्ता शामिल हुआ था. उस वक्त ऊंटों को खास प्रशिक्षण नहीं दिया गया था. वर्ष 1990 से ऊंट दस्ता बैंड के साथ सम्मिलित होने लगा. इसके बाद भी समय-समय पर इसमें कई परिवर्तन किए गए हैं. हाल ही में कुछ समय पूर्व से अब महिला जवानों को भी इस दस्ते में शामिल किया गया है. सीमा की सुरक्षा में जवानों के साथ ऊंटों की भूमिका भी अहम होती है. ऊंटों ने साल 1965 और 1971 के जंग में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

जैसलमेर : सीमा सुरक्षा बल न केवल देश की सीमाओं की रक्षा करती हैं, बल्कि विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से युवाओं में देश के प्रति जोश और जूनून को बढ़ाने का कार्य भी करती हैं. गत दिनों जैसलमेर में आयोजित हुए तीन दिवसीय मरु महोत्सव के दौरान भी बीएसएफ के जवानों ने विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से युवाओं को सशस्त्र बालों में भर्ती होकर देश की रक्षा में अपना योगदान देने के लिए जागरूक किया.

प्रशिक्षित होते हैं यह ऊंट (वीडियो ईटीवी भारत जैसलमेर)

बीएसएफ के उप समादेष्टा मनोहर सिंह खींची ने बताया कि कैमल टेटू शो एक विशेष प्रकार का सांस्कृतिक और शारीरिक प्रदर्शन था, जिसमें ऊंटों को विभिन्न प्रकार के रंगीन टैटू से सजाया गया था. इस शो में दिखाए गए ऊंटों के शरीर पर बने चित्र और डिजाइनों ने उनके अद्वितीय रूप को और भी आकर्षक बना दिया. शो में हर ऊंट एक खास कलाकार की तरह सजा हुआ था, जिसने दर्शकों को न केवल उत्साहित किया, बल्कि भारतीय संस्कृति और राजस्थान की पारंपरिक कला का भी संदेश दिया. इस शो में राजस्थानी लोक गीतों की मधुर धुनों पर माउंटेन बैंड की ओर से शानदार संगीत प्रस्तुति दी गई.

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भारतीय संस्कृति के संगम का उदाहरण : उन्होंने बताया कि दिल्ली के कर्तव्य पथ पर हाल ही में गणतंत्र दिवस की परेड में भी बीएसएफ के कैमल दल और कैमल माउंटेन बैंड ने हिस्सा लिया था, जिसे दर्शकों ने काफी सराहा. उन्होंने कहा कि यह शो सीमा सुरक्षा बल की शक्ति, कला और भारतीय संस्कृति के संगम का बेहतरीन उदाहरण है. इसके माध्यम से न केवल बीएसएफ अपनी वीरता का प्रदर्शन करती है, बल्कि देश के नागरिकों को यह भी बताना चाहती है कि देश की सीमाओं की सुरक्षा में तैनात जवान हर मुश्किल से निपटने के लिए तैयार है.

ऊंटों को विभिन्न प्रकार के रंगीन टैटू से सजाया गया
ऊंटों को विभिन्न प्रकार के रंगीन टैटू से सजाया गया (ETV Bharat Jaisalmer)

प्रशिक्षित होते हैं यह ऊंट : बता दें कि बीएसएफ के पास करीब 1200 ऊंट हैं. ऊंटों को जोधपुर में मंडोर रोड स्थित बीएसएफ के सहायक प्रशिक्षण केंद्र में प्रशिक्षित किया जाता है. ऊंटों को 5 साल की उम्र से ट्रेनिंग दी जाती है. प्रशिक्षण केंद्र में ऊंटों को बैंड की धुनों, तेज आवाज के साथ संयोजन, चलने का क्रम, उठने-बैठने का तरीका, गर्दन घुमाना सिखाया जाता है. एक ऊंट बीएसएफ में करीब 15 साल तक सेवाएं देता है. इसके बाद उसे सेवानिवृत्त कर दिया जाता है.

ऊंट एक खास कलाकार की तरह सजा हुआ रहता है
ऊंट एक खास कलाकार की तरह सजा हुआ रहता है (ETV Bharat Jaisalmer)

पढे़ं. सम लखमणा के धोरों पर ऊंट दौड़ और सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ मरु महोत्सव का समापन

1976 में ऊंटों के दस्ते ने पहली बार की थी परेड : राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड में पहली बार वर्ष 1976 में बीएसएफ का ऊंट दस्ता शामिल हुआ था. उस वक्त ऊंटों को खास प्रशिक्षण नहीं दिया गया था. वर्ष 1990 से ऊंट दस्ता बैंड के साथ सम्मिलित होने लगा. इसके बाद भी समय-समय पर इसमें कई परिवर्तन किए गए हैं. हाल ही में कुछ समय पूर्व से अब महिला जवानों को भी इस दस्ते में शामिल किया गया है. सीमा की सुरक्षा में जवानों के साथ ऊंटों की भूमिका भी अहम होती है. ऊंटों ने साल 1965 और 1971 के जंग में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

Last Updated : Feb 16, 2025, 2:36 PM IST
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