जयपुर. प्रदेश बीजेपी में सबकुछ इतना अच्छा नहीं चल रहा है, जितना दिखाया जा रहा है. इसकी वजह पिछले दिनों बीजेपी में घटित घटनाक्रम से भी लगाया जा सकता है. बीजेपी में 12 दिन बीत जाने के बाद भी नेता प्रतिपक्ष को लेकर सस्पेंस बरकरार है. वहीं, अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के राजस्थान दौरे पर निगाहें हैं. सूत्रों की मानें तो नड्डा के इस दौरे के बाद ही नेता प्रतिपक्ष का नाम तय होगा.
नड्डा का दौरा : बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा दो दिन के राजस्थान प्रवास पर हैं. आज दूसरे दिन नड्डा हनुमानगढ़ जंक्शन पर सिख किसान संगठन के कार्यक्रम में शामिल होंगे. इस दौर प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया उनके साथ रहेंगे. नड्डा का दौरा इन मायनों मे भी अहम माना जा रहा है, क्योंकि 28 फरवरी यानी सोमवार से विधानसभा बजट सत्र की कार्यवाही फिर से शुरू होगी. नेता प्रतिपक्ष रहे गुलाबचंद कटारिया का असम का राज्यपाल नियुक्त होने के बाद से प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली है.
पढ़ें : Assam New Governor: गुलाबचंद कटारिया ने ली असम के राज्यपाल पद की शपथ
12 दिन बाद भी बीजेपी सदन के नेता का नाम तय नहीं कर पाई है. सदन में सरकार को घेरने के लिए नेता प्रतिपक्ष की भूमिका अहम होती है. अब नेता प्रतिपक्ष नहीं होने से विपक्ष की ओर से सरकार को घेरने वाला कोई नहीं है. हालांकि, उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ सदन में मुखर रहते हैं, लेकिन फिर भी नेता प्रतिपक्ष की अपनी भूमिका होती है. ऐसे में माना जा रहा है कि नड्डा इस दो दिन के दौरे के दौरान प्रदेश अध्यक्ष से चर्चा कर फीडबैक केंद्रीय नेतृत्व तक देंगे. हालांकि, अंतिम निर्णय पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के स्तर पर ही तय होगा.
नाम तय नहीं होने में गुटबाजी बड़ी वजह : राजनीत के जानकर और वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर शर्मा बताते हैं कि बीजेपी में भले ही सबकुछ सामान्य दिखाने की कोशिश हो रही हो, लेकिन नेता प्रतिपक्ष का नाम तय नहीं कर पाने के पीछे बीजेपी की गुटबाजी एक बड़ा कारण है. नेता प्रतिपक्ष के नाम ऐसे वक्त में तय होना है, जब प्रदेश में विधानसभा चुनाव सामने है. माना ये भी जा रहा है कि जिस नेता का नाम नेता प्रतिपक्ष के लिए तय होगा, वह भावी मुख्यमंत्री की दौड़ में दावेदार बन जाएगा.
अब प्रदेश के नेताओं की निगाहें केंद्रीय नेतृत्व पर टिकी हैं. हालांकि, माना जा रहा है कि इस पद के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का नाम चल रहा है. लेकिन इनमें पेच वसुंधरा राजे और पूनिया को लेकर ही है, क्योंकि दोनों के बीच की दूरियों पर आलाकमान की नजरें भी हैं.
क्या बन रहा समीकरण ? : श्याम सुंदर बतातें है कि प्रदेश बीजेपी दो खेमो में है. पहला पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का तो दूसरा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का. पार्टी भले इसे नकारती रही हो, लेकिन समय-समय पर गुटबाजी खुले तौर पर दिखाई देती रही है. इसकी रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व तक भी पहुंची है. इसी गुटबाजी को खत्म करने के लिए पार्टी नेतृत्व ने ये रास्ता निकाला है. इसमें संभावना ये बन रही है कि सतीश पूनिया को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती है.
पूनिया को हाल ही में सदन में बजट पर नेता प्रतिपक्ष के रूप में बोलने की जिम्मेदारी भी गई थी. पूनिया का अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा भी हो चुका है तो नेता प्रतिपक्ष के तौर पर नई भूमिका मिल सकती है. इससे चुनावी साल में गुटबाजी के साथ जातिगत समीकरण साधना पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. दूसरा समीकरण ये हो सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जो पहले भी नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में रह चुकी हैं, उन्हें ही ये जिम्मेदारी दी जाए. हालांकि, बीजेपी में केंद्रीय नेतृत्व हमेशा चौंकाने वाला नाम ही तय करता आया है. इस बार भी ऐसा ही चौंकाने वाला नाम सामने आ सकता है.