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Special : पायलट के कदम पर टिकी सियासी निगाहें, राजस्थान के चुनावी इतिहास में निर्दलीय और अन्य की अलग ही रही तस्वीर - पायलट के कदम पर टिकी सियासी निगाहें

राजस्थान में कांग्रेस के भीतर सचिन पायलट के अगले कदम पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं. राजस्थान की राजनीति में पायलट का अगला कदम क्या होगा ये तो समय बताएगा. चर्चाओं के दौर में राजस्थान में निर्दलीय व अन्य की क्या भूमिका रहती है जानिए इस रिपोर्ट में...

Rumours of Sachin Pilot leaving Congress
सचिन पायलट के कांग्रेस छोड़ने का अफवाह
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Published : Jun 10, 2023, 10:10 PM IST

Updated : Jun 11, 2023, 8:01 AM IST

पायलट के कांग्रेस छोड़ने को कांग्रेस बता रही अफवाह

जयपुर. राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जारी सियासी खींचतान के बीच पिछले कई दिनों से पायलट के कांग्रेस का दामन छोड़ने की चर्चा बरकरार है. चर्चा है कि पायलट कांग्रेस का दामन छोड़कर अपनी पार्टी बना सकते हैं. कांग्रेस पार्टी ने इन चर्चाओं को सिरे से नकारते हुए, कोरी अफवाह करार दी है. राजस्थान की परिपाटी को आधार मानकर यह भी कहा जा रहा है कि अगर पायलट पार्टी बनाते भी हैं तो बड़ी सफलता मिलने की संभावना न के बराबर है. राजस्थान के विधानसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो काफी हद तक यह बात सही भी लगती है.

साथ ही कहा भी जा सकता है कि राजस्थान में जनता भाजपा और कांग्रेस को ही पसंद कर उन्हें सत्ता की चाबी सौंपती है. तीसरे मोर्चे के तौर पर भले ही कितना ही बड़ा कोई क्षेत्रीय क्षत्रप क्यों न हो, उसे जनता नकार देती है. अभी तक का इतिहास यही रहा है कि राजस्थान में भले ही एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की सरकार बनती रही हो, लेकिन क्षेत्रीय क्षत्रपों की तमाम सक्रियता को जनता न कहते हुए हर बार सत्ता के शीर्ष पर इन्हीं दोनों पार्टियों में से किसी एक को सत्ता सौंपती है.

Rajasthan Assembly Election 2023
बीते सालों का आंकड़ा

पढे़ं. सचिन पायलट के नई पार्टी बनाने पर क्या बोले कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल

पांच चुनाव के आंकड़े : भले ही सत्ता कांग्रेस और भाजपा के हाथ में रहती हो, लेकिन राजस्थान में बीते पांच चुनाव के आंकड़े देखे जाएं तो राजस्थान की 20 से 25 प्रतिशत वोट देने वाली जनता भाजपा और कांग्रेस की जगह निर्दलीय या अन्य पार्टियों को भी वोट देती है. भाजपा और कांग्रेस से इतर जीत कर आने वाले विधायकों की संख्या भी हर बार 8 से 13 प्रतिशत रही है, लेकिन खास बात यह है कि ये कभी एक नहीं हो सके.

हनुमान की लड़ाई जारी : कहा जा रहा है कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच कांग्रेस पार्टी सुलह करवाने में कामयाब रही है. इसके साथ ही अब भी राजस्थान में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि पायलट को अगर कांग्रेस पार्टी राजस्थान में कोई महत्वपूर्ण पद देकर समाहित नहीं करती है, तो वह 11 जून को उनके पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि के दिन या 22 जून को बांदीकुई में होने वाली सभा में कोई निर्णय ले सकते हैं. पायलट पार्टी में रहेंगे या कांग्रेस से अलग कोई रास्ता अपनाएंगे, यह आने वाला समय बताएगा. राजस्थान का अब तक का जो इतिहास रहा है वह बताता है कि कई राष्ट्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय क्षत्रपों ने यह प्रयास किया है. भले ही वो सत्ता पाने में असफल रहे हों, लेकिन जनता ने कांग्रेस और भाजपा के अलावा इन पार्टियों या क्षेत्रीय क्षत्रपों पर भी भरोसा जताया है.

Rajasthan Assembly Election 2023
बीते सालों का आंकड़ा

पढ़ें. अब गहलोत-पायलट विवाद में कमलनाथ की एंट्री, जानें क्या है पार्टी की सियासी रणनीति

ये नहीं हुए सफल : देवी सिंह भाटी ने सामाजिक न्याय मंच, किरोड़ी लाल मीणा की राजपा और घनश्याम तिवाड़ी की दीनदयाल वाहिनी का फार्मूला असफल रहा. घनश्याम तिवाड़ी और किरोड़ी लाल मीणा ने भाजपा में घर वापसी कर ली, लेकिन हनुमान बेनीवाल अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के साथ मैदान में डटे हुए हैं. साथ ही भाजपा और कांग्रेस को परेशान कर रहे हैं. केवल बेनीवाल ही नहीं, बल्कि बहुजन समाज पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय ट्राईबल पार्टी वह दल है जो राजस्थान में अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी पकड़ रखते हैं.

Rajasthan Assembly Election 2023
बीते सालों का आंकड़ा

निर्दलीय या अन्य के खाते में गए वोट : सीट और वोट प्रतिशत की बात करें तो भाजपा और कांग्रेस के अलावा चुनाव जीतने वाले अन्य दलों या निर्दलीय ने 2018 में 27 सीट जीतते हुए कुल 21.93% वोट लिया था. इसी प्रकार 2013 में अन्यों ने 16 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए कुल 21.76% वोट हासिल किया था. 2008 में 26 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए कुल 28.9% वोट लिया था. इसी प्रकार निर्दलीय और अन्य दलों ने 2003 में 24 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए 25.2% वोट लिया और साल 1998 में 14 सीटें जीतते हुए 21.8% वोट लिया था. ऐसे में कहा जा सकता है कि राजस्थान की जनता 21 से लेकर 28 प्रतिशत तक भाजपा और कांग्रेस के अलावा पार्टियों या निर्दलीय प्रत्याशियों को मतदान करती है, जबकि सत्ता में आने वाली पार्टी और कांग्रेस 35 से 40 फीसदी वोट लेकर सरकार बनाती है.

पायलट के कांग्रेस छोड़ने को कांग्रेस बता रही अफवाह

जयपुर. राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जारी सियासी खींचतान के बीच पिछले कई दिनों से पायलट के कांग्रेस का दामन छोड़ने की चर्चा बरकरार है. चर्चा है कि पायलट कांग्रेस का दामन छोड़कर अपनी पार्टी बना सकते हैं. कांग्रेस पार्टी ने इन चर्चाओं को सिरे से नकारते हुए, कोरी अफवाह करार दी है. राजस्थान की परिपाटी को आधार मानकर यह भी कहा जा रहा है कि अगर पायलट पार्टी बनाते भी हैं तो बड़ी सफलता मिलने की संभावना न के बराबर है. राजस्थान के विधानसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो काफी हद तक यह बात सही भी लगती है.

साथ ही कहा भी जा सकता है कि राजस्थान में जनता भाजपा और कांग्रेस को ही पसंद कर उन्हें सत्ता की चाबी सौंपती है. तीसरे मोर्चे के तौर पर भले ही कितना ही बड़ा कोई क्षेत्रीय क्षत्रप क्यों न हो, उसे जनता नकार देती है. अभी तक का इतिहास यही रहा है कि राजस्थान में भले ही एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की सरकार बनती रही हो, लेकिन क्षेत्रीय क्षत्रपों की तमाम सक्रियता को जनता न कहते हुए हर बार सत्ता के शीर्ष पर इन्हीं दोनों पार्टियों में से किसी एक को सत्ता सौंपती है.

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पांच चुनाव के आंकड़े : भले ही सत्ता कांग्रेस और भाजपा के हाथ में रहती हो, लेकिन राजस्थान में बीते पांच चुनाव के आंकड़े देखे जाएं तो राजस्थान की 20 से 25 प्रतिशत वोट देने वाली जनता भाजपा और कांग्रेस की जगह निर्दलीय या अन्य पार्टियों को भी वोट देती है. भाजपा और कांग्रेस से इतर जीत कर आने वाले विधायकों की संख्या भी हर बार 8 से 13 प्रतिशत रही है, लेकिन खास बात यह है कि ये कभी एक नहीं हो सके.

हनुमान की लड़ाई जारी : कहा जा रहा है कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच कांग्रेस पार्टी सुलह करवाने में कामयाब रही है. इसके साथ ही अब भी राजस्थान में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि पायलट को अगर कांग्रेस पार्टी राजस्थान में कोई महत्वपूर्ण पद देकर समाहित नहीं करती है, तो वह 11 जून को उनके पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि के दिन या 22 जून को बांदीकुई में होने वाली सभा में कोई निर्णय ले सकते हैं. पायलट पार्टी में रहेंगे या कांग्रेस से अलग कोई रास्ता अपनाएंगे, यह आने वाला समय बताएगा. राजस्थान का अब तक का जो इतिहास रहा है वह बताता है कि कई राष्ट्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय क्षत्रपों ने यह प्रयास किया है. भले ही वो सत्ता पाने में असफल रहे हों, लेकिन जनता ने कांग्रेस और भाजपा के अलावा इन पार्टियों या क्षेत्रीय क्षत्रपों पर भी भरोसा जताया है.

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ये नहीं हुए सफल : देवी सिंह भाटी ने सामाजिक न्याय मंच, किरोड़ी लाल मीणा की राजपा और घनश्याम तिवाड़ी की दीनदयाल वाहिनी का फार्मूला असफल रहा. घनश्याम तिवाड़ी और किरोड़ी लाल मीणा ने भाजपा में घर वापसी कर ली, लेकिन हनुमान बेनीवाल अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के साथ मैदान में डटे हुए हैं. साथ ही भाजपा और कांग्रेस को परेशान कर रहे हैं. केवल बेनीवाल ही नहीं, बल्कि बहुजन समाज पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय ट्राईबल पार्टी वह दल है जो राजस्थान में अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी पकड़ रखते हैं.

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निर्दलीय या अन्य के खाते में गए वोट : सीट और वोट प्रतिशत की बात करें तो भाजपा और कांग्रेस के अलावा चुनाव जीतने वाले अन्य दलों या निर्दलीय ने 2018 में 27 सीट जीतते हुए कुल 21.93% वोट लिया था. इसी प्रकार 2013 में अन्यों ने 16 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए कुल 21.76% वोट हासिल किया था. 2008 में 26 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए कुल 28.9% वोट लिया था. इसी प्रकार निर्दलीय और अन्य दलों ने 2003 में 24 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए 25.2% वोट लिया और साल 1998 में 14 सीटें जीतते हुए 21.8% वोट लिया था. ऐसे में कहा जा सकता है कि राजस्थान की जनता 21 से लेकर 28 प्रतिशत तक भाजपा और कांग्रेस के अलावा पार्टियों या निर्दलीय प्रत्याशियों को मतदान करती है, जबकि सत्ता में आने वाली पार्टी और कांग्रेस 35 से 40 फीसदी वोट लेकर सरकार बनाती है.

Last Updated : Jun 11, 2023, 8:01 AM IST
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