जयपुर. प्रदेश की राजनीति जातिगत समीकरणों पर चलती रही है. जिस क्षेत्र में जिस जाति का प्रभाव रहता है कि वहां पर राजनीतिक दल उसी को उम्मीदवार घोषित करते हैं. शायद यही वजह है कि जातिगत राजनीति के प्रभाव के बीच अब अलग-अलग समाज के आयोग और बोर्ड बनाने की (Demand for Mahajan Welfare Commission) मांग उठने लगी है. प्रदेश में महाजन समाज आयोग बनाने की मांग को लेकर बाल संरक्षण आयोग कि सदस्य संगीता गर्ग ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखा है.
संगीता गर्ग ने की ये मांग -
बाल संरक्षण आयोग की सदस्य संगीता गर्ग ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर मांग की है कि जिस प्रकार सभी समाजों के उत्थान, उनके विकास और सामाजिक समस्याओं के निराकरण के लिए सम्बन्धित समाज के बोर्ड या आयोग का गठन किया गया है. उसी तरह महाजन कल्याण आयोग का गठन किया जाना चाहिए. इस समाज ने हमेशा देश निर्माण और समाज हित में योगदान दिया है, परन्तु आज भी समाज के बहुत से पुरुष, महिलाएं आर्थिक और सामाजिक रुप में संघर्ष कर रहे हैं.
पत्र में लिखा कि कहा जाता है कि महाजन समाज व्यापारी वर्ग होता है और उनके कल्याण के लिये व्यापार बोर्ड का गठन किया गया लेकिन वह दौर अलग था जब वर्ण व्यवस्था थी. आज सभी वर्ग के पुरुष और महिलाएं व्यापार में लिप्त हैं और सुचारू रूप से व्यापार कर रहे हैं तो व्यापार कल्याण बोर्ड व्यापारियों के लिये है ना की सिर्फ़ वैश्य समाज के लिए. ऐसे में महाजन वर्ग के उत्थान के लिए महाजन कल्याण बोर्ड या वैश्य कल्याण आयोग का गठन किया जाना चाहिए ताकि महाजन वर्ग पार्टी से जुड़ेगा और आने वाले चुनाव में सहयोग करेगा.
इन समाज के हैं बोर्ड
- गुर्जर समाज के लिए देवनारायण बोर्ड
- ब्राह्मण समाज के लिए विप्र कल्याण बोर्ड
- राव समाज के लिए वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन अकादमी
- सेन समाज का केश कला बोर्ड
- कुमार समुदाय का माटी कला बोर्ड
- रेगर समाज का चर्म शिल्प कला बोर्ड
- माली समाज का ज्योतिबा फुले बोर्ड
- धोबी समाज का धोबी कल्याण बोर्ड
- घुमंतू समाज के लिए घुमंतू जनजाति विकास बोर्ड
- SC-ST समाज के लिए एससी एसटी आयोग समेत कई अन्य
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ये समाज भी कर रहे मांग
प्रदेश में जातिगत बोर्ड बनाकर अशोक गहलोत सरकार जाति समूह को कांग्रेस से जोड़ने की कोशिश कर रही है. पहले विप्र कल्याण बोर्ड, ज्योतिबा फूले बोर्ड सहित चार बोर्ड के गठन को मंजुरी दी थी लेकिन इसके बाद अब अन्य जातियों से भी ऐसी मांगें उठने लगी हैं. इन समाजों की यह नाउम्मीदी बेवजह नहीं है. राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं और सरकार जातिगत समूहों को खुश करने की कवायद में जुटी है. ऐसा नही है कि महाजन समाज ने जाती के आधार पर बोर्ड की मांग उठाई हो. इससे पहले राजपूत समाज ने राजपूत कल्याण बोर्ड और जाट समाज वीर तेजा कल्याण बोर्ड की मांग कर रहा है.
पहले भी जातीय समूह के बनते रहे बोर्ड
ऐसा नहीं है कि गहलोत सरकार ही बोर्ड या आयोग बना कर जातीय समूह को खुश कर रही है, बल्कि पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में गुर्जर समाज के लिए देवनारायण बोर्ड का गठन कर इसकी नींव रख दी गई थी. वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन अकादमी का गठन भी वसुंधरा सरकार में हुआ. राजनैतिक लिहाज से यह चतुराई भरी रणनीति है, इसलिए 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस इसको लेकर गंभीर हो गई.
क्या जातिगत बोर्ड आयोग के गठन की राजनीति
दरअसल राजनीतिक वोट बैंक को साधने के लिए सरकारों की ओर से आयोग और बोर्ड का गठन किया जाता रहा है . खास तौर से जातिगत वोट और आयोग का गठन के पीछे जातीय समूह के वोट बैंक को अपने पक्ष में करना एक उद्देश्य होता है. यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में अलग-अलग जातिय समूह के आयोग और बोर्ड बनते रहे है . समाज के आयोग और बोर्ड का गठन कर सरकार उस समाज में अपना प्रभाव जमा कर एक बड़े वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कवायद होती .