रेनवाल (जयपुर). मकर संक्रांति पर्व के नजदीक आते ही रंग-बिरंगी पतंग खरीदने के लिए बच्चों के चेहरों पर खुशियां बिखरी हुई हैं. संक्रांति पर्व को लेकर कस्बे में कई जगह पतंगों की दुकानें सज गई हैं. कबूतर निवास, बाईपास चौराहा, मुख्य बाजार और नला बाजार सहित कस्बे में करीब 20 से अधिक जगहों पर पतंगों की दुकानें सजी हैं. दुकानदारों को उम्मीद है कि हर साल की तरह इस बार भी पर्व के पहले खरीदारों की भीड़ रहेगी.
लेकिन इस साल पतंग व्यवसाय पर कोरोना का असर साफ नजर आ रहा है. लॉकडाउन के कारण पतंग सामग्री महंगी हो गई है. पिछले साल 150 रुपए में मांझे की एक रील और एक दर्जन पतंग आ जाती थी. लेकिन इस साल इसके दाम बढ़कर 250 रुपए हो गए हैं. पतंग व्यवसायियों ईसाक ने बताया कि कोरोना काल में लॉकडाउन के चलते पतंग बनाने के कागज से लेकर कांप तक महंगी हो गई है, जिससे पतंग की कीमत में काफी इजाफा हाे गया है. हालांकि संक्रांति की उमंग में तिल-गुड की सामग्री से बनी वस्तुओं के साथ ही रेवड़ी, गजक और मूंगफली की खुशबू से बाजार महक रहे हैं. लेकिन पतंगों की बिक्री में तेजी नहीं है. कोरोना संक्रमण और चाइनीज मांझे के प्रतिबंध के चलते पतंग-डोर की बिक्री बेहद कम है.
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बच्चाें से लेकर युवाओं में पतंगबाजी काे लेकर जाेश है. लाेगाे में माेदी, विराट काेहली और तिरंगे की पतंगाें का क्रेज ज्यादा है. वहीं कुछ युवाओं ने पतंगबाजी करते समय चाइनीज मांझे के प्रयाेग न कर बेजूबान पक्षियाें काे बचाने का संदेश दिया है. जिंदादिली दर्शाने का यह त्योहार प्रेम और सौहार्द का प्रतीक माना गया है. इस दिन हिंदू परंपरा के अनुसार लोग अपने बुर्जगों को वस्त्र आदि भेंटकर आर्शीवाद प्राप्त करते हैं. इसके अलावा गायों को चारा, बांट और गुड खिलाकर पुण्य कमाया जाता है. रेनवाल की गोपाल गौशाला में भी इन दिनों धर्मावलंबी लोग गायों को चारा पानी डालकर धर्म-कर्म का काम करते हैं. इस दिन बच्चे, युवा और महिलाएं भी पतंग उड़ाकर परंपरा काे आगे बढ़ाती हैं.