जयपुर. प्रदेश में होने वाली 2 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी ने उम्मीदवार तय कर दिए हैं. हरेंद्र मिर्धा खींवसर से तो रीटा चौधरी मंडावा से चुनाव लड़ेंगी. इसे लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने भी साफ कर दिया है कि दोनों प्रत्याशियों के नाम पर चर्चा हो चुकी है और पार्टी ने अपने उम्मीदवार घोषित करने के लिए नवरात्रा की शुरुआत का इंतजार किया और आखिर पहले नवरात्र को दोनों उम्मीदवारों की घोषणा कर दी.
कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने कहा कि राजस्थान के उपचुनाव में कांग्रेस को सफलता मिलती रही है. ऐसे में कांग्रेस यह दोनों सीटों पर उपचुनाव में जीत दर्ज करेगी. वहीं पायलट ने यह भी कहा कि क्योंकि प्रदेश में सरकार कांग्रेस की है ऐसे में 2 सीटों को जनता कांग्रेस प्रत्याशी को ही जिता कर देगी. क्योंकि अगर कांग्रेस का विधायक बनेगा तो उनके क्षेत्र में विकास का काम ज्यादा होगा. किसी दूसरे को जीता कर वैसे भी सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. ऐसे में कांग्रेस सरकार के कामों को देखते हुए और संगठन की सक्रियता से जनता कांग्रेस के प्रत्याशियों को ही जीत दिलाएगी.
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खींवसर विधानसभा सीट पर मिर्धा...
खींवसर सीट पर हरेंद्र मिर्धा उम्मीदवार हैं. कांग्रेस के कद्दावर जाट नेता रामनिवास मिर्धा के बेटे हरेंद्र मिर्धा दो बार विधायक भी रह चुके हैं. हरेंद्र मिर्धा राजस्थान के पूर्व विधानसभा स्पीकर रहे दिग्गज जाट नेता रामनिवास मिर्धा के बेटे हैं. रामनिवास मिर्धा 1953 से 1967 तक विधायक रहे. जिसमें 1957 से 1967 तक राजस्थान विधानसभा के स्पीकर भी रहे. रामनिवास मिर्धा नागौर से 1984 और 1991 में बाड़मेर से सांसद रहे. पिता की विरासत संभालने में हालांकि हरेंद्र मिर्धा इतने सफल नहीं रहे और साल 1980 में वह मूंडवा सीट से चुनाव जीते. इसके बाद वह साल 1998 में नागौर की सीट से चुनाव जीते और गहलोत कैबिनेट में पीडब्ल्यूडी मंत्री भी बने.
हालांकि साल 2003 और साल 2008 में वह लगातार कांग्रेस के टिकट पर नागौर की सीट पर चुनाव हार गए तो साल 2013 में कांग्रेस ने उनकी टिकट काट दी लेकिन वह बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ गए. साल 2013 में भी वह चुनाव नहीं जीत सके. लेकिन साल 2018 में तैयारी करने के बावजूद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा और कांग्रेस को समर्थन दिया इसी का नतीजा था कि कांग्रेस ने दांव खेला है.
हरेंद्र मिर्धा इस कारण हैं कांग्रेस की उम्मीद...
हरेंद्र मिर्धा के साथ सबसे सकारात्मक बात यह है कि नागौर की मिर्धा परिवार से आते हैं जिसकी इस इलाके में काफी प्रतिष्ठा है और अब जब उन्होंने पहला चुनाव जीता था तो मूंडवा की सीट से वह विधायक बने थे. मूंडवा की सीट का ज्यादातर हिस्सा अब डीलिमिटेशन के बाद खींवसर विधानसभा में ही शामिल हो गया है. ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि सरकार होने और मिर्धा परिवार की प्रतिष्ठा के चलते वह चुनाव जीत सकते हैं. वैसे भी इस सीट पर कांग्रेस के लिए हनुमान बेनीवाल एक यक्ष प्रश्न बने हुए हैं लेकिन इस बार वह क्योंकि सांसद बन गए हैं और अपने भाई नारायण बेनीवाल को कितना फायदा पहुंचाते हैं यह देखने वाली बात होगी.
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हरेंद्र मिर्धा की जीत में यह बातें हैं रोड़ा...
हरेंद्र मिर्धा भले ही इस समय टक्कर में माने जा रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि इस सीट के बनने के बाद एक बार भी कांग्रेस जीत नहीं दर्ज कर सकी है. साल 2008 और साल 2013 में तो कांग्रेस के प्रत्याशियों की जमानत तक नहीं बची थी. और वहीं साल 2018 में कांग्रेस ने पूर्व आईपीएस सवाई सिंह पर दांव खेला जो चुनाव में हनुमान बेनीवाल से 20,000 से कम मतों से हारे. अभी सवाई सिंह इस सीट पर दावा कर रहे थे लेकिन उनकी जगह हरेंद्र मिर्धा को टिकट दिया गया है. ऐसे में सवाई सिंह की नाराजगी को दूर करना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी. इसके साथ ही पूरे मिर्धा परिवार का एक साथ रहना भी हरेंद्र के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.
मंडावा विधानसभा सीट से रीटा चौधरी...
मंडावा विधानसभा सीट से पहले से ही माना जा रहा था कि रीटा चौधरी ही कांग्रेस के पास एकमात्र उम्मीदवार है और हुआ भी ऐसा ही. मंडावा की सीट परंपरागत तौर पर कांग्रेस की सीट रही. इस सीट से रीटा चौधरी के पिता कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रामनारायण चौधरी 5 बार चुनाव जीते. उनके बाद उनकी बेटी रीटा चौधरी ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया और साल 2008 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीती लेकिन साल 2013 में कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ चंद्रभान को कांग्रेस नेता की जगह टिकट दे दी लेकिन इससे रीटा नाराज हो गई और उन्होंने निर्दलीय फॉर्म भर दिया. रीटा ने चुनाव में कड़ी टक्कर दी और वह दूसरे नंबर पर रही. यही कारण था कि कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ चंद्रभान की तो इस चुनाव में जमानत ही जब्त हो गई. इसके बाद साल 2018 में कांग्रेस ने फिर से रीटा चौधरी को टिकट दिया लेकिन कड़े मुकाबले के बाद भी रीटा 23 मतों से चुनाव हार गई लेकिन अब कांग्रेस के पास उपचुनाव में रीटा के सिवाय दूसरा कैंडिडेट नहीं था ऐसे में कांग्रेस नेता पर ही दांव खेला है.
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यह रहेगी रीटा के सामने चुनौती...
रीटा चौधरी को टिकट तो मिल गया है लेकिन उनके सामने टक्कर भी कड़ी होनी है. हालांकि अभी तक भाजपा अपना उम्मीदवार तय नहीं कर पाई है लेकिन फिर भी लगातार दो बार चुनाव हारने का असर उन पर है. वहीं बात करें परिवार की तो खुद रीटा के भाई राजेंद्र भी कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे और उनकी और रीटा की अदावत के बारे में हर कोई जानता है. ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती रीटा को उनके घर से ही मिलने वाली है. इसके अलावा इस बार जिस तरह से रीटा पर यह आरोप लगे कि उन्होंने जो तबादले कराए उसमें कांग्रेसी कार्यकर्ता भी नाराज है. उसका भी खामियाजा रीटा को उठाना पड़ सकता है. वहीं इस सीट पर जाट उम्मीदवार ही भाजपा उतारेगी और भाजपा ने जिस तरीके से सतीश पूनिया को उम्मीदवार बनाया है उसके बाद साफ है कि किसान वर्ग भाजपा के साथ आ सकता है.
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दोनों में से जो भी नेता हारा उसका राजनीतिक भविष्य खतरे में...
इन दोनों नेताओं को कांग्रेस ने टिकट तो दे दिया है लेकिन एक बात साफ है कि दोनों नेताओं में से जो चुनाव में हारेगा उनका राजनीतिक भविष्य दांव पर होगा क्योंकि हरेंद्र मिर्धा लगातार तीन चुनाव हार चुके हैं और अगर वह चौथा चुनाव भी हार जाते हैं तो उनको दोबारा टिकट कांग्रेस पार्टी में मिले इसकी संभावना ना के बराबर हो जाएगी तो वही रीटा भी लगातार दो चुनाव हार चुकी है अगर वह तीसरा चुनाव हार जाती है तो उनके राजनीतिक भविष्य पर भी दांव लग सकता है. ऐसे में साफ है कि यह चुनाव इन दोनों नेताओं के लिए भी करो या मरो का सवाल बना हुआ है.