ETV Bharat / state

Special : 1967 का चुनाव, जिसने छीन ली 9 जिंदगियां फिर लगा राष्ट्रपति शासन, पहली बार दल-बदल से बनी थी सरकार

author img

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 2, 2023, 8:17 AM IST

राजस्थान में साल 1967 का चुनाव ऐतिहासिक था और इसे ऐतिहासिक बनाया कुछ घटनाओं ने. 1967 में न केवल प्रदेश में बल्कि देश में भी कांग्रेस के आधिपत्य को चुनौती मिली थी. विधानसभा और लोकसभा चुनाव एकसाथ हुए थे, लेकिन राजस्थान का विधानसभा चुनाव देश में सुर्खियों में आ गया. आखिर क्या हुआ था उस दौर में कि प्रदेश में राष्ट्रपति शासन तक लग गया ? यहां जानिए पूरा घटनाक्रम...

history of Rajasthan assembly election 1967
राजस्थान विधानसभा चुनाव 1967
पहली बार लगा था राष्ट्रपति शासन

जयपुर. राजस्थान के सियासी इतिहास के पन्नों को टटोलने पर 1967 का विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में सामने आता है. इस चुनाव में कुछ ऐसी घटनाएं घटीं जो इसे खास बनाती हैं. यह ऐसा चुनाव था जब पहली बार प्रदेश में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. यही वो दौर था, जब जयपुर के जौहरी बाजार में गोली कांड हुआ, तब राष्ट्रपति शासन भी लगा. यही नहीं, पहली मर्तबा दल-बदल के जरिए सरकार भी बनी. पहली ही बार दक्षिणपंथी और वामपंथी एक साथ खड़े दिखाई दिए.

राइट और लेफ्ट विंग आए साथ : राजस्थान में 1967 में 200 नहीं, बल्कि 184 विधानसभा सीटें हुआ करती थीं. जाहिर तौर पर बहुमत का आंकड़ा भी कम ही था. कुछ ऐसे समीकरण बैठे कि प्रदेश की राजनीति देश में सुर्खियों में आ गई. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताते हैं कि 1962 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी राजनीति में आई. इसी पार्टी से जयपुर की महारानी गायत्री देवी जीत कर विधानसभा पहुंचीं थीं. इसी पार्टी के साथ विपक्ष इकट्ठा हो रहा था, जिसका प्रभाव 1967 के चुनाव में भी देखने को मिला. ये वही चुनाव था जो राष्ट्रपति शासन के लिए भी जाना जाता है. उस चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. विधानसभा में 184 सीटें थीं. प्रदेश में चुनाव हुए और कांग्रेस की 89 सीटें मिली. इनमें भी दामोदर लाल व्यास टोंक और मालपुरा दो सीटों से निर्वाचित हुए थे.

history of Rajasthan assembly election 1967
मोहनलाल सुखाड़िया ने जोड़-तोड़ से बनाई थी सरकार

ऐसे में एक स्थान व्यवहारिक रूप से कम हो गया और कांग्रेस के विधायक 88 रह गए, जबकि विपक्ष के विधायक मिलकर 95 सदस्य हो गए थे. ऐसा पहली बार हुआ था जब दक्षिणपंथी और वामपंथी दल एक साथ आए. हालांकि, तत्कालीन राज्यपाल डॉ. संपूर्णानंद ने चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. इस पर एक बहस छिड़ गई और जमकर विरोध भी हुआ.

गोलीकांड में 9 की मौत : 7 मार्च 1967 को लोग सड़क पर निकल कर बड़ी चौपड़ पर इकट्ठा हो गए. इस दौरान पुलिस की ओर से किए गए गोली कांड में 9 लोग मारे गए और लगभग 50 लोग घायल हुए. पहली बार राजस्थान के लोकतंत्र में हिंसा देखने को मिली. इस मामले को लेकर बने जस्टिस बेरी आयोग ने स्पष्ट तौर पर माना कि पुलिस की ओर से बड़े स्तर पर फायरिंग की गई है. आगे हिंसा की आशंका पर राज्यपाल की सिफारिश पर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. 13 मार्च 1967 को राष्ट्रपति शासन लगा. नई विधानसभा के सदस्य और सबसे बड़ी पार्टी के नेताओं को शपथ तक नहीं दिलाई गई.

पढ़ें : उदयपुर जिले में सबसे पहले इन विधानसभा सीटों पर आएंगे परिणाम

इस दौरान राजनीतिक दल संख्या के जोड़-तोड़ के काम में लग गए, तब मोहनलाल सुखाड़िया ने विपक्षी पार्टी जनसंघ के रामचरण को दल-बदल करवाया. इसके अलावा संयुक्त मोर्चे के पांच अन्य विधायकों को जोड़कर 94 विधायकों के साथ सरकार बनाने की ओर अग्रसर हुए, तब तक राज्यपाल का कार्यकाल पूरा हो गया था और नए राज्यपाल सरदार हुकुम सिंह बने. तब कांग्रेस और विपक्षी दलों के गठबंधन ने अपनी-अपनी सरकार बनाने का दावा पेश किया, लेकिन इन सबके बीच 21 विधायक ऐसे भी थे जिनके नाम दोनों दलों की सूची में शामिल थे. तब उन 21 विधायकों से वोट कराया गया. आखिर में 94 कांग्रेस के और 88 विपक्ष के विधायक सामने आए. इनमें भी झालावाड़ के विधायक महाराजा हरिश्चंद्र की मृत्यु होने की वजह से वो एक सीट और खाली हो गई थी. आखिर में 26 अप्रैल 1967 को सुखाडिया मंत्रिमंडल ने शपथ ग्रहण किया और राज्य में राष्ट्रपति शासन भी खत्म हुआ. बाद में मोहनलाल सुखाड़िया जो 'राजनीति के चाणक्य' कहलाते थे, वो 94 की संख्या को बढ़ाकर 108 तक ले गए.

पढ़ें : मतगणना स्थल में प्रवेश और पार्किंग की गाइडलाइन जारी, प्रत्याशियों-मतदान कर्मियों और अधिकारियों के लिए ये रहेंगी व्यवस्थाएं

यही वजह है कि 1967 का चुनाव हमेशा के लिए राजनीति के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. इसी चुनाव के बाद प्रदेश में एक मजबूत विपक्ष उभरा. विपक्ष ने पहली बार संयुक्त मोर्चा बनाया, हालांकि, वो सफल नहीं हुए, लेकिन ये चुनाव ऐतिहासिक हो गया. इस चुनाव ने 9 जिंदगियों को काल का ग्रास तक बना दिया.

पहली बार लगा था राष्ट्रपति शासन

जयपुर. राजस्थान के सियासी इतिहास के पन्नों को टटोलने पर 1967 का विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में सामने आता है. इस चुनाव में कुछ ऐसी घटनाएं घटीं जो इसे खास बनाती हैं. यह ऐसा चुनाव था जब पहली बार प्रदेश में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. यही वो दौर था, जब जयपुर के जौहरी बाजार में गोली कांड हुआ, तब राष्ट्रपति शासन भी लगा. यही नहीं, पहली मर्तबा दल-बदल के जरिए सरकार भी बनी. पहली ही बार दक्षिणपंथी और वामपंथी एक साथ खड़े दिखाई दिए.

राइट और लेफ्ट विंग आए साथ : राजस्थान में 1967 में 200 नहीं, बल्कि 184 विधानसभा सीटें हुआ करती थीं. जाहिर तौर पर बहुमत का आंकड़ा भी कम ही था. कुछ ऐसे समीकरण बैठे कि प्रदेश की राजनीति देश में सुर्खियों में आ गई. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताते हैं कि 1962 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी राजनीति में आई. इसी पार्टी से जयपुर की महारानी गायत्री देवी जीत कर विधानसभा पहुंचीं थीं. इसी पार्टी के साथ विपक्ष इकट्ठा हो रहा था, जिसका प्रभाव 1967 के चुनाव में भी देखने को मिला. ये वही चुनाव था जो राष्ट्रपति शासन के लिए भी जाना जाता है. उस चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. विधानसभा में 184 सीटें थीं. प्रदेश में चुनाव हुए और कांग्रेस की 89 सीटें मिली. इनमें भी दामोदर लाल व्यास टोंक और मालपुरा दो सीटों से निर्वाचित हुए थे.

history of Rajasthan assembly election 1967
मोहनलाल सुखाड़िया ने जोड़-तोड़ से बनाई थी सरकार

ऐसे में एक स्थान व्यवहारिक रूप से कम हो गया और कांग्रेस के विधायक 88 रह गए, जबकि विपक्ष के विधायक मिलकर 95 सदस्य हो गए थे. ऐसा पहली बार हुआ था जब दक्षिणपंथी और वामपंथी दल एक साथ आए. हालांकि, तत्कालीन राज्यपाल डॉ. संपूर्णानंद ने चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. इस पर एक बहस छिड़ गई और जमकर विरोध भी हुआ.

गोलीकांड में 9 की मौत : 7 मार्च 1967 को लोग सड़क पर निकल कर बड़ी चौपड़ पर इकट्ठा हो गए. इस दौरान पुलिस की ओर से किए गए गोली कांड में 9 लोग मारे गए और लगभग 50 लोग घायल हुए. पहली बार राजस्थान के लोकतंत्र में हिंसा देखने को मिली. इस मामले को लेकर बने जस्टिस बेरी आयोग ने स्पष्ट तौर पर माना कि पुलिस की ओर से बड़े स्तर पर फायरिंग की गई है. आगे हिंसा की आशंका पर राज्यपाल की सिफारिश पर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. 13 मार्च 1967 को राष्ट्रपति शासन लगा. नई विधानसभा के सदस्य और सबसे बड़ी पार्टी के नेताओं को शपथ तक नहीं दिलाई गई.

पढ़ें : उदयपुर जिले में सबसे पहले इन विधानसभा सीटों पर आएंगे परिणाम

इस दौरान राजनीतिक दल संख्या के जोड़-तोड़ के काम में लग गए, तब मोहनलाल सुखाड़िया ने विपक्षी पार्टी जनसंघ के रामचरण को दल-बदल करवाया. इसके अलावा संयुक्त मोर्चे के पांच अन्य विधायकों को जोड़कर 94 विधायकों के साथ सरकार बनाने की ओर अग्रसर हुए, तब तक राज्यपाल का कार्यकाल पूरा हो गया था और नए राज्यपाल सरदार हुकुम सिंह बने. तब कांग्रेस और विपक्षी दलों के गठबंधन ने अपनी-अपनी सरकार बनाने का दावा पेश किया, लेकिन इन सबके बीच 21 विधायक ऐसे भी थे जिनके नाम दोनों दलों की सूची में शामिल थे. तब उन 21 विधायकों से वोट कराया गया. आखिर में 94 कांग्रेस के और 88 विपक्ष के विधायक सामने आए. इनमें भी झालावाड़ के विधायक महाराजा हरिश्चंद्र की मृत्यु होने की वजह से वो एक सीट और खाली हो गई थी. आखिर में 26 अप्रैल 1967 को सुखाडिया मंत्रिमंडल ने शपथ ग्रहण किया और राज्य में राष्ट्रपति शासन भी खत्म हुआ. बाद में मोहनलाल सुखाड़िया जो 'राजनीति के चाणक्य' कहलाते थे, वो 94 की संख्या को बढ़ाकर 108 तक ले गए.

पढ़ें : मतगणना स्थल में प्रवेश और पार्किंग की गाइडलाइन जारी, प्रत्याशियों-मतदान कर्मियों और अधिकारियों के लिए ये रहेंगी व्यवस्थाएं

यही वजह है कि 1967 का चुनाव हमेशा के लिए राजनीति के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. इसी चुनाव के बाद प्रदेश में एक मजबूत विपक्ष उभरा. विपक्ष ने पहली बार संयुक्त मोर्चा बनाया, हालांकि, वो सफल नहीं हुए, लेकिन ये चुनाव ऐतिहासिक हो गया. इस चुनाव ने 9 जिंदगियों को काल का ग्रास तक बना दिया.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.