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जयपुर में श्री राम कॉलोनी की जमीन हाउसिंग बोर्ड की, JDA नियमन करके खारिज से विवाद में उलझा

राजधानी के हाई प्रोफाइल श्रीराम कॉलोनी के अतिक्रमण का मामला सुलझने का नाम नहीं ले रहा है. पांच पट्टा धारकों की जमीन को छोड़ हाउसिंग बोर्ड ने बची हुई जमीन से अतिक्रमण हटाने को लेकर जेडीए को पत्र लिखा है. इसके साथ ही ड्रोन से सर्वे भी कराने जा रहा है.

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Published : Sep 30, 2019, 10:29 AM IST

जयपुर. श्रीराम कॉलोनी की जमीन हाउसिंग बोर्ड की जमीन के अतिक्रमण का मामला हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है. जिसमें हाउसिंग बोर्ड और जेडीए उलझे हुए हैं. दरअसल, यह मामला 42 बीघा 10 बिस्वा जमीन का है. जिसकी अवाप्ति साल 1991 में ही पूरी हो गई थी.

हाउसिंग बोर्ड कॅालोनी की जमीनी विवाद

हाउसिंग बोर्ड की ओर से इस जमीन का मुआवजा सिविल कोर्ट में जमा करा दिया गया था. तहसीलदार से मौके पर कब्जा भी ले लिया गया था, लेकिन एक सोसायटी ने मूल खातेदारों में से कुछ खातेदारों का नाम इस्तेमाल कर एक फर्जी करानामा तैयार किया गया. जिसके बाद फर्जी पट्टे जारी कर दिए गए. हाउसिंग बोर्ड ने डबल बेंच पर रिट लगाई. यहां हार मिलने के बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा, लेकिन यहां भी हाउसिंग बोर्ड को राहत नहीं मिली.

30 साल से उलझा रखा मामला, जेडीए के अधिकारी बैकफुट पर

मौके पर जमीनी विवाद सुलझाने को लेकर जेडीए शुरू से बैकफुट पर रहा है. बात चाहे नियमन करके खारिज करने की हो, या फिर निर्माण की. साल 2017 में जेडीए के पीटी सर्वे में ही बमुश्किल 5-7 निर्माण सामने आए थे. जिससे लोग भी गुमराह हुए हैं.

पढे़ं- जयपुरः नफरी की कमी से जूझ रही जयपुर ग्रामीण पुलिस

कोर्ट के निर्देश पर पांच पट्टा धारकों को पट्टे देने का आदेश दिया गया. ये आदेश जेडीए के लिए थे, और जमीन हाउसिंग बोर्ड की थी. बावजूद इसके हाउसिंग बोर्ड ने अब इंदुबाला सहित पांच पट्टा धारकों की जमीन को छोड़कर शेष भूमि पर से अतिक्रमण हटाने के लिए जेडीए को पत्र लिखा है. हाल ही में यूडीएच विभाग की ओर से भी जेडीए को हाउसिंग बोर्ड की मदद करने के निर्देश दिए गए हैं.

पढे़ं- घर में सांप घुसने से मचा हड़कंप, सबसे ज्यादा जहरीले जानवरों में से एक है यह सांप

हालांकि पांच पट्टा धारकों के जमीन का मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है. ऐसे में फैसला आने तक हाउसिंग बोर्ड फिलहाल अपनी बची हुई जमीन का ड्रोन के जरिए सर्वे कराने जा रहा है. अब बोर्ड को इंतजार है कि आखिर जेडीए अपने एक्ट की धारा- 72 का इस्तेमाल कब करेगा. जिसमें उसे उन सभी जमीनों से कब्जा हटाने के अधिकार हैं, जो निजी नहीं है.

जयपुर. श्रीराम कॉलोनी की जमीन हाउसिंग बोर्ड की जमीन के अतिक्रमण का मामला हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है. जिसमें हाउसिंग बोर्ड और जेडीए उलझे हुए हैं. दरअसल, यह मामला 42 बीघा 10 बिस्वा जमीन का है. जिसकी अवाप्ति साल 1991 में ही पूरी हो गई थी.

हाउसिंग बोर्ड कॅालोनी की जमीनी विवाद

हाउसिंग बोर्ड की ओर से इस जमीन का मुआवजा सिविल कोर्ट में जमा करा दिया गया था. तहसीलदार से मौके पर कब्जा भी ले लिया गया था, लेकिन एक सोसायटी ने मूल खातेदारों में से कुछ खातेदारों का नाम इस्तेमाल कर एक फर्जी करानामा तैयार किया गया. जिसके बाद फर्जी पट्टे जारी कर दिए गए. हाउसिंग बोर्ड ने डबल बेंच पर रिट लगाई. यहां हार मिलने के बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा, लेकिन यहां भी हाउसिंग बोर्ड को राहत नहीं मिली.

30 साल से उलझा रखा मामला, जेडीए के अधिकारी बैकफुट पर

मौके पर जमीनी विवाद सुलझाने को लेकर जेडीए शुरू से बैकफुट पर रहा है. बात चाहे नियमन करके खारिज करने की हो, या फिर निर्माण की. साल 2017 में जेडीए के पीटी सर्वे में ही बमुश्किल 5-7 निर्माण सामने आए थे. जिससे लोग भी गुमराह हुए हैं.

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कोर्ट के निर्देश पर पांच पट्टा धारकों को पट्टे देने का आदेश दिया गया. ये आदेश जेडीए के लिए थे, और जमीन हाउसिंग बोर्ड की थी. बावजूद इसके हाउसिंग बोर्ड ने अब इंदुबाला सहित पांच पट्टा धारकों की जमीन को छोड़कर शेष भूमि पर से अतिक्रमण हटाने के लिए जेडीए को पत्र लिखा है. हाल ही में यूडीएच विभाग की ओर से भी जेडीए को हाउसिंग बोर्ड की मदद करने के निर्देश दिए गए हैं.

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हालांकि पांच पट्टा धारकों के जमीन का मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है. ऐसे में फैसला आने तक हाउसिंग बोर्ड फिलहाल अपनी बची हुई जमीन का ड्रोन के जरिए सर्वे कराने जा रहा है. अब बोर्ड को इंतजार है कि आखिर जेडीए अपने एक्ट की धारा- 72 का इस्तेमाल कब करेगा. जिसमें उसे उन सभी जमीनों से कब्जा हटाने के अधिकार हैं, जो निजी नहीं है.

Intro:जयपुर - टोंक रोड स्थित हाईप्रोफाइल श्रीराम कॉलोनी के अतिक्रमण मामला सुलझने का नाम नहीं ले रहा। पांच पट्टा धारकों की जमीन को छोड़ हाउसिंग बोर्ड ने बची हुई जमीन से अतिक्रमण हटाने को लेकर जेडीए को पत्र लिखा है। और ड्रोन से सर्वे भी कराने जा रहा है। जबकि जेडीए इस जमीन का नियमन करके, खारिज करने के चलते इस विवाद में उलझ कर फिलहाल बैकफुट पर है।


Body:हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने वाला मामला। जिसमें हाउसिंग बोर्ड और जेडीए उलझे हुए हैं। और एक सोसाइटी की ओर से फर्जी पट्टे बांट दिये गए। दरअसल, ये मामला 42 बीघा 10 बिस्वा जमीन का है। जिसकी अवाप्ति 1991 में ही पूरी हो गई थी। हाउसिंग बोर्ड की ओर से इस जमीन का मुआवजा सिविल कोर्ट में जमा करा दिया गया था। और तहसीलदार से मौके पर कब्जा भी ले लिया गया था। लेकिन एक सोसायटी ने मूल खातेदारों में से कुछ खातेदारों का नाम इस्तेमाल कर एक फर्जी करारनामा तैयार किया गया। और फर्जी पट्टे जारी कर दिए गए। जिसके आधार पर 1994-95 में जेडीए से नियमन भी करा लिया गया। हालांकि बाद में जेडीए ने इस नियम को निरस्त कर दिया। लेकिन इंदुबाला सहित पांच पट्टा धारकों ने हाई कोर्ट सिंगल बेंच पर अपील की। और फैसला उनके हक में गया। जिस पर उन पांच पट्टा धारकों को जेडीए को पट्टे जारी करने के निर्देश दिए गए।

हालांकि हाउसिंग बोर्ड ने डबल बेंच पर रिट लगाई। यहां हार मिलने के बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा। लेकिन यहां भी हाउसिंग बोर्ड को राहत नहीं मिली। और कोर्ट के निर्देश पर पांच पट्टा धारकों को पट्टे देने का आदेश बहाल हो गया। हालांकि ये आदेश जेडीए के लिए थे, और जमीन हाउसिंग बोर्ड की थी। बावजूद इसके हाउसिंग बोर्ड ने अब इंदुबाला सहित पांच पट्टा धारकों की जमीन को छोड़कर शेष भूमि पर से अतिक्रमण हटाने के लिए जेडीए को पत्र लिखा है। हाल ही में यूडीएच विभाग की ओर से भी जेडीए को हाउसिंग बोर्ड की मदद करने के निर्देश दिए गए हैं।
बाईट - पवन अरोड़ा, आयुक्त, हाउसिंग बोर्ड


Conclusion:हालांकि पांच पट्टा धारकों के जमीन का मामला भी कोर्ट में विचाराधीन है। ऐसे में फैसला आने तक हाउसिंग बोर्ड फिलहाल अपनी बची हुई जमीन का ड्रोन के जरिए सर्वे कराने जा रहा है। और बोर्ड को इंतजार है कि आखिर जेडीए अपने एक्ट की धारा 72 का इस्तेमाल कब करेगा। जिसमें उसे उन सभी जमीनों से कब्जा हटाने के अधिकार प्रदत्त हैं, जो निजी नहीं है।
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