जयपुर. दुनिया की सबसे बड़ी धातु से बनी घंटी बहुत जल्द कोटा में चंबल रिवर फ्रंट पर आप बजा सकेंगे. जयपुर के स्टार्टअप्स 3डीप्रिंटकार्ट ने इसे तैयार किया है. इसके दो हिस्से सोमवार को कोटा के लिए रवाना किया गया था, तीसरा हिस्सा 27 दिसंबर, बुधवार को रवाना किया गया. जयपुर के इंजीनियर प्रांजल कटारा ने कोटा में लगने वाली 57 हज़ार किलोग्राम की बेल को तैयार करने में अहम भूमिका अदा की है (Biggest bell 3D Masterpiece Made in Jaipur).
इस घंटी की ऊंचाई करीब 30 फीट होगी, जबकि इसका व्यास 27 फीट के करीब होगा. 3 डी तकनीक से जयपुर में प्रांजल ने रिवर फ्रंट पर स्थापित होने वाली घंटी का मास्टरपीस तैयार किया है. 57 हज़ार किलो की घंटी के मुकाबले की है मास्टर पीस भी करीब 8 से 10 हज़ार किलोग्राम का होगा. जयपुर में तैयार इस मास्टरपीस को ट्रेलर के माध्यम से कोटा तक दो अलग-अलग हिस्सों में पहुंचाया गया है.
प्रांजल ने बताया कि हम चंबल रिवर फ्रंट कोटा के लिए इसी साल अप्रैल से दुनिया की सबसे बड़ी बेल पर काम कर रहे हैं. बेल निर्माण प्रक्रिया में पांच चरण शामिल हैं. जैसे 3डी सीएडी मॉडलिंग, 3डी सीएडी विश्लेषण, अनुमोदन के लिए मिनी 3डी प्रिंट बैल मॉडल, 3डी प्रिंटिंग के साथ बेल फैब्रिकेशन, असेंबली और पोस्ट प्रोसेसिंग जैसे काम शामिल हैं . इसे मजबूती देने के लिए मेटेलिक फ्रेम और मैट के साथ फ्रेम किया गया है.
स्टार्टअप 3डीप्रिंटकार्ट के ओनर प्रांजल ने बताया कि मेटल कास्टिंग प्रक्रिया के दौरान क्ले वाले मास्टरपीस एक बार इस्तेमाल होने के बाद नष्ट हो जाते थे. इसके उलट खास तकनीक से तैयार यह 3डी प्रिंटेड मास्टरपीस बिना किसी परेशानी के कास्टिंग के लिए 2-3 बार इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा 3डी प्रिंटिंग तकनीक इस तरह के विशाल प्रोजेक्ट की डिजाइन में सटीक साबित होती है. प्रांजल ने कहा कि मास्टरपीस को डेड लाइन में पूरा करने के लिए हमने 24 घंटे और सातों दिन काम कर लक्ष्य को हासिल किया है. बेल के मास्टरपीस को तैयार करने के लिए पॉलीफाइबर की 3डी तकनीक से करीब 640 टाइलों को तैयार किया गया. जिनको आपस में जोड़कर तीन हिस्से तैयार हुए. इनको ट्रोलों की मदद से कोटा भेजा गया है.
पढ़ें-Tallest Shiv Statue : विश्व की सबसे बड़ी शिव प्रतिमा का मोरारी बापू ने किया लोकार्पण
8 किलोमीटर तक गूंजेगी आवाज- प्रांजल दावा करते हैं कि यह दुनिया की सबसे बड़ी बेल होगी. इसे बनाने में करीब करीब 6 महीने से ज़्यादा का वक्त लगा है. सिंगल मैटल की इस बेल की खास बात यह है कि इसे सामान्य व्यक्ति चेन की मदद से बजा सकेगा और इसकी आवाज 8 किलोमीटर तक सुनी जाएगी. कोटा में चंबल नदी के रिवरफट पर स्थापित होने वाली इस भीमकाय बेल को गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी जगह मिल पाएगी. फिलहाल गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में आवेदन भेज दिया गया है. जल्द ही स्वीकृति मिलने की उम्मीद है. वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी बेल चीन में 8.2 गुणा 6.5 मीटर की है और दूसरे नंबर पर मॉस्को की बेल 8 गुणा 6.6 मीटर की है.
यह खासियत होती है 3डी प्रिंटिंग डिजाइन की- 3डी प्रिंटिंग एक निर्माण प्रक्रिया है, जो एक डिजिटल मॉडल फ़ाइल से फिजिकल आकार लेती है. यह तकनीक एक संपूर्ण वस्तु बनाने के लिए परत दर परत सामग्री को जोड़कर काम करती है. आजकल इस आधुनिक 3डी प्रिंटिंग का उपयोग शिक्षा से लेकर उद्योग तक के विभिन्न क्षेत्रों में किया जा रहा है. मसलन कंस्ट्रक्शन, आर्ट, डिजाइन, मेडिकल और हेल्थ, फूड प्रोसेसिंग यूनिट, फैशन इंडस्ट्री, इलेक्ट्रॉनिक्स, रोबोटिक्स, मोटर इंजीनियरिंग, एयरोस्पेस और इंजीनियरिंग के दूसरे क्षेत्रों में इसकी अहमियत साबित होने लगी है.
प्रांजल कहते हैं कि 3D प्रिंटिंग सही मायनों में इस बात को साबित करती है कि कला की कोई सीमा नहीं होती है और इस आधुनिक तकनीक के दम पर ही दुनिया की सबसे बड़ी घंटी अब जल्द साकार होकर सामने आने वाली है. इस तकनीक में कंप्यूटर से तैयार डिजाइन को मूर्त रूप देने में ज्यादा मशक्कत नहीं होती है. यही वजह है कि आज बड़े-बड़े आर्किटेक्ट इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं.
चंबल रिवर फ्रंट पर जारी है तैयारी- दुनिया की सबसे बड़ी घंटी को सांचे में ढालने के लिए चंबल रिवर फ्रंट पर खास तरह की भट्टियां बनाई गई है. इन 35 भट्टियों की टेस्टिंग का काम भी पूरा किया जा चुका है. इस काम में जुटी इंजीनियर की टीम के के मुताबिक हर भट्टी में एक साथ 22 सौ किलो धातु को गलाया जा सकता है. इन भट्टियों में कास्टिंग एलॉय को गलाने के बाद चार विशेष पात्रों से सांचे तक पहुंचाया जाएगा. जहां बेल को स्थापित किया जाएगा. अगर सब कुछ ठीक रहा तो करीब 15 मिनट में 3D डिजाइन पर सांचे में धातु डालकर बेल को तैयार कर लिया जाएगा.