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इन माता के दरबार में श्रद्धालुओं की हर मन्नत होती है पूरी... - Navratra

चैत्र नवरात्र आज से शुरू हो गए है. नवरात्र में माता के दर्शन करने के लिए देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है. वहीं घट स्थापना के साथ ही कई धार्मिक आयोजन भी हुए. नवरात्र के दिनों में देवी मंदिरों और शक्तिपीठों की घर बैठे ही दर्शन कराने और मंदिर की जानकारी देने की ईटीवी भारत की मुहिम के तहत आज हम आपको लेकर चलते है राजधानी जयपुर के आमेर महल में विराजमान शिला माता मंदिर. जानिए श्रद्धालुओं की आस्था के प्रमुख केन्द्र इस मंदिर की ऐतिहासिक कहानी.

नवरात्र में शिला देवी माता के मंदिर में श्रद्धालुओं की रही भीड़
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Published : Apr 6, 2019, 6:26 PM IST

जयपुर. आमेर में मां काली के बारे में आज भी ढूंढाड़ अंचल के इतिहास पर आधारित बहुत सी किवदंतिया प्रचलित है. शिला माता मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे पुरातत्वीय विवरण के अनुसार इस मूर्ति को तत्कालीन राजा मानसिंह जसोल बंगाल से 1604 ईस्वी में लेकर आए थे. बताया जाता है कि केदार राजा को पराजित करने के प्रयास में असफल रहने पर राजा मानसिंह ने युद्ध में अपनी विजय के लिए उस प्रतिमा से आशीर्वाद मांगा. इसके बदले में देवी ने राजा केदार के चंगुल से अपने आपको मुक्त कराने की मांग की थी. इस शर्त के अनुसार देवी ने मानसिंह को युद्ध जीतने में सहायता की और मानसिंह ने देवी की प्रतिमा को राजा केदार से मुक्त कराया और आमेर में स्थापित किया. इस मंदिर को महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय ने 1906 में बनवाया था. इससे पहले यह मंदिर चूने का बना हुआ था. मंदिर के प्रवेश दरवाजे पर एक पुरातत्वीय विवरण लिखा हुआ है, जिसमें बताया गया है कि इस मूर्ति को राजा मानसिंह प्रथम बंगाल से 16वीं सदी में आमेर लेकर आए थे.

शिला देवी माता की टेढ़ी गर्दन का रहस्य जानिए,


शिला देवी की ऐतिहासिक प्रतिमा की कहानी
आमेर में प्रतिष्ठापित शिला देवी की प्रतिमा की टेढ़ी गर्दन को लेकर भी एक किवदंती प्रचलित है. बताया जाता है की माता राजा मानसिंह से वार्तालाप करती थी. यहां देवी को नर बलि दी जाती थी. लेकिन एक बार राजा मानसिंह ने माता से वार्तालाप के दौरान नर बलि की जगह पशु बलि देने की बात कही. जिससे माता रुष्ठ हो गई और गुस्से से उन्होंने अपनी गर्दन मानसिंह की ओर से दूसरी ओर मोड़ ली थी. तभी से इस प्रतिमा की गर्दन टेढ़ी है. माता की गर्दन के ऊपर पंचलोकपाल बना हुआ है. जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और कार्तिकेय की छोटी-छोटी प्रतिमा बनी हुई है. शिला देवी की प्रतिमा के एक तरफ खड़े हुए गणेशजी की प्रतिमा है, जो तंत्र का रूप है तो वहीं दूसरी तरफ मीणा शासकों के समय की हिंगलाज माता की दुर्लभ प्रतिमा मंदिर में विराजमान है. देवी को खुश करने के लिए इस मंदिर में पशुओं की बलि दी जाती थी. जो कि बाद में बंद कर दी गर्इ. शिला देवी मंदिर संगमरमर के पत्थरों से बना है. पूर्व राज परिवार भी आता है और मंदिर में पूजा पाठ होते हैं. मां को ऋतु फल का भोग लगाया जाता है.

नवरात्रा में लगती है श्रद्धालुओं की कतारें
आमेर की ऊंचाई पर मौजूद शिला देवी मंदिर में नवरात्र में मंदिर में काफी संख्या में माता के दर्शन करने के लिए भक्त पहुंचते हैं. श्रद्धालुओं का कहना है कि शिला देवी से जो भी मनोकामना मांगें, वो पूरी होती है. वहीं कई श्रद्धालु रोजाना कई किलोमीटर ऊंचाई को चढ़कर माता के मंदिर में पहुंचते हैं और मनोकामना मांगते हैं. इतना ही नहीं पिछले करीब 20 से 25 साल से यहां आ रहे श्रदालुओं का कहना है कि मां के दरबार में हर काम पूरे होते हैं.

जयपुर. आमेर में मां काली के बारे में आज भी ढूंढाड़ अंचल के इतिहास पर आधारित बहुत सी किवदंतिया प्रचलित है. शिला माता मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे पुरातत्वीय विवरण के अनुसार इस मूर्ति को तत्कालीन राजा मानसिंह जसोल बंगाल से 1604 ईस्वी में लेकर आए थे. बताया जाता है कि केदार राजा को पराजित करने के प्रयास में असफल रहने पर राजा मानसिंह ने युद्ध में अपनी विजय के लिए उस प्रतिमा से आशीर्वाद मांगा. इसके बदले में देवी ने राजा केदार के चंगुल से अपने आपको मुक्त कराने की मांग की थी. इस शर्त के अनुसार देवी ने मानसिंह को युद्ध जीतने में सहायता की और मानसिंह ने देवी की प्रतिमा को राजा केदार से मुक्त कराया और आमेर में स्थापित किया. इस मंदिर को महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय ने 1906 में बनवाया था. इससे पहले यह मंदिर चूने का बना हुआ था. मंदिर के प्रवेश दरवाजे पर एक पुरातत्वीय विवरण लिखा हुआ है, जिसमें बताया गया है कि इस मूर्ति को राजा मानसिंह प्रथम बंगाल से 16वीं सदी में आमेर लेकर आए थे.

शिला देवी माता की टेढ़ी गर्दन का रहस्य जानिए,


शिला देवी की ऐतिहासिक प्रतिमा की कहानी
आमेर में प्रतिष्ठापित शिला देवी की प्रतिमा की टेढ़ी गर्दन को लेकर भी एक किवदंती प्रचलित है. बताया जाता है की माता राजा मानसिंह से वार्तालाप करती थी. यहां देवी को नर बलि दी जाती थी. लेकिन एक बार राजा मानसिंह ने माता से वार्तालाप के दौरान नर बलि की जगह पशु बलि देने की बात कही. जिससे माता रुष्ठ हो गई और गुस्से से उन्होंने अपनी गर्दन मानसिंह की ओर से दूसरी ओर मोड़ ली थी. तभी से इस प्रतिमा की गर्दन टेढ़ी है. माता की गर्दन के ऊपर पंचलोकपाल बना हुआ है. जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और कार्तिकेय की छोटी-छोटी प्रतिमा बनी हुई है. शिला देवी की प्रतिमा के एक तरफ खड़े हुए गणेशजी की प्रतिमा है, जो तंत्र का रूप है तो वहीं दूसरी तरफ मीणा शासकों के समय की हिंगलाज माता की दुर्लभ प्रतिमा मंदिर में विराजमान है. देवी को खुश करने के लिए इस मंदिर में पशुओं की बलि दी जाती थी. जो कि बाद में बंद कर दी गर्इ. शिला देवी मंदिर संगमरमर के पत्थरों से बना है. पूर्व राज परिवार भी आता है और मंदिर में पूजा पाठ होते हैं. मां को ऋतु फल का भोग लगाया जाता है.

नवरात्रा में लगती है श्रद्धालुओं की कतारें
आमेर की ऊंचाई पर मौजूद शिला देवी मंदिर में नवरात्र में मंदिर में काफी संख्या में माता के दर्शन करने के लिए भक्त पहुंचते हैं. श्रद्धालुओं का कहना है कि शिला देवी से जो भी मनोकामना मांगें, वो पूरी होती है. वहीं कई श्रद्धालु रोजाना कई किलोमीटर ऊंचाई को चढ़कर माता के मंदिर में पहुंचते हैं और मनोकामना मांगते हैं. इतना ही नहीं पिछले करीब 20 से 25 साल से यहां आ रहे श्रदालुओं का कहना है कि मां के दरबार में हर काम पूरे होते हैं.

Intro:जयपुर- चैत्र नवरात्रा आज से प्रारंभ हो गए है। नवरात्रा में माता के दर्शन करने के लिए मंदिर में भक्तों की भीड़ देखते ही उमड़ती है। वही आज हम आपको राजधानी जयपुर के आमेर महल में विराजमान शिला माता मंदिर की ऐतिहासिक और रोचक कहानी बताने जा रहे है।



Body:शिला देवी को राजा मानसिंह प्रथम बंगाल से लाए आमेर

आमेर में माँ काली के बारे में आज भी ढूंढाड अंचल इतिहास पर आधारित बहुत सी किवदंतिया प्रचलित है। शिला माता मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे पुरातत्वीय विवरण के अनुसार इस मूर्ति को राजा मानसिंह जसोल बंगाल से 1604 ईस्वी में लेकर आए थे। बताया जाता है कि केदार राजा को पराजित करने के प्रयत्न में असफल रहने पर मानसिंह ने युद्ध में अपनी विजय के लिए उस प्रतिमा से आशीर्वाद माँगा। इसके बदले में देवी ने राजा केदार के चंगुल से अपने आपको मुक्त कराने की मांग की। इस शर्त के अनुसार देवी ने मानसिंह को युद्ध जीतने में सहायता की और मानसिंह ने देवी की प्रतिमा को राजा केदार से मुक्त कराया और आमेर में स्थापित किया। इस मंदिर काे महाराज सवाई मानसिंह द्वितीय ने 1906 में बनवाया था। इससे पहले यह मंदिर चूने का बना हुआ था। मंदिर के प्रवेश दवाजे पर एक पुरातत्वीय विवरण लिखा हुआ है जिसमें बताया गया है कि इस मूर्ति को राजा मानसिंह प्रथम बंगाल से सौलहवीं सदी में आमेर लेकर आए थे।


शिला देवी की ऐतिहासिक मूर्ति की कहानी
आमेर में प्रतिष्ठापित शिला देवी की प्रतिमा के टेढ़ी गर्दन को लेकर भी एक किवदंती प्रचलित है
बताया जाता है की माता स्वयं-भू राजा मानसिंह से वार्तालाप करती थी। यहाँ देवी को नर बलि दी जाती थी। लेकिन एक बार राजा मानसिंह ने माता से वार्तालाप के दौरान नरबलि के जगह पशु बलि देने की बात कही। जिससे माता रुष्ठ हो गयी और गुस्से से उन्होंने अपनी गर्दन मानसिंह की ओर से दूसरी ओर मोड़ ली। तभी से इस प्रतिमा की गर्दन टेढ़ी है। माता के गर्दन के ऊपर पंचलोकपाल बना हुआ है जिसमें ब्रहमा, विष्णु, महेश, गणेश और कार्तिके के छोटी छोटी प्रतिमा बनी हुई है। शिला देवी की प्रतिमा के एक तरफ खड़े हुए गणेश जी की प्रतिमा है जो तंत्र का रूप है तो वही दूसरी तरफ मीणा शासकों के समय की हिंगलाज माता की दुर्लभ प्रतिमा मंदिर में विराजमान है। देवी को खुश करने के लिए इस मंदिर में पशुओं की बलि दी जाती थी जाे कि बाद में बंद कर दी गर्इ। शिला देवी मंदिर संगमरमर के पत्थराें से बना है।
राज परिवार भी आता है और मंदिर में पूजा पाठ होते है। माँ को ऋतु फल का भोग लगाया जाता


नवरात्रा में लगती है श्रदालुओं की कतार
आमेर की ऊँचाई पर मौजूद शिला देवी मंदिर में नवरात्रि में मंदिर में काफी संख्या में माता के दर्शन करने के लिए भक्त पहुंचते है। श्रदालुओं का कहना है की शिला देवी से जो भी मनोकामना मांगे वो पूर्ण होती है। वही कई श्रदालु रोजाना कई किलोमीटर ऊँचाई को चढ़कर माता के मंदिर में पहुँचते है और मनोकामना मांगते है। इतना ही नहीं 20 से 25 साल पुराने श्रदालुओं का कहना है को माँ के दरबार हर काम पूर्ण होते है।


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