जयपुर. आमेर में मां काली के बारे में आज भी ढूंढाड़ अंचल के इतिहास पर आधारित बहुत सी किवदंतिया प्रचलित है. शिला माता मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे पुरातत्वीय विवरण के अनुसार इस मूर्ति को तत्कालीन राजा मानसिंह जसोल बंगाल से 1604 ईस्वी में लेकर आए थे. बताया जाता है कि केदार राजा को पराजित करने के प्रयास में असफल रहने पर राजा मानसिंह ने युद्ध में अपनी विजय के लिए उस प्रतिमा से आशीर्वाद मांगा. इसके बदले में देवी ने राजा केदार के चंगुल से अपने आपको मुक्त कराने की मांग की थी. इस शर्त के अनुसार देवी ने मानसिंह को युद्ध जीतने में सहायता की और मानसिंह ने देवी की प्रतिमा को राजा केदार से मुक्त कराया और आमेर में स्थापित किया. इस मंदिर को महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय ने 1906 में बनवाया था. इससे पहले यह मंदिर चूने का बना हुआ था. मंदिर के प्रवेश दरवाजे पर एक पुरातत्वीय विवरण लिखा हुआ है, जिसमें बताया गया है कि इस मूर्ति को राजा मानसिंह प्रथम बंगाल से 16वीं सदी में आमेर लेकर आए थे.
शिला देवी की ऐतिहासिक प्रतिमा की कहानी
आमेर में प्रतिष्ठापित शिला देवी की प्रतिमा की टेढ़ी गर्दन को लेकर भी एक किवदंती प्रचलित है. बताया जाता है की माता राजा मानसिंह से वार्तालाप करती थी. यहां देवी को नर बलि दी जाती थी. लेकिन एक बार राजा मानसिंह ने माता से वार्तालाप के दौरान नर बलि की जगह पशु बलि देने की बात कही. जिससे माता रुष्ठ हो गई और गुस्से से उन्होंने अपनी गर्दन मानसिंह की ओर से दूसरी ओर मोड़ ली थी. तभी से इस प्रतिमा की गर्दन टेढ़ी है. माता की गर्दन के ऊपर पंचलोकपाल बना हुआ है. जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और कार्तिकेय की छोटी-छोटी प्रतिमा बनी हुई है. शिला देवी की प्रतिमा के एक तरफ खड़े हुए गणेशजी की प्रतिमा है, जो तंत्र का रूप है तो वहीं दूसरी तरफ मीणा शासकों के समय की हिंगलाज माता की दुर्लभ प्रतिमा मंदिर में विराजमान है. देवी को खुश करने के लिए इस मंदिर में पशुओं की बलि दी जाती थी. जो कि बाद में बंद कर दी गर्इ. शिला देवी मंदिर संगमरमर के पत्थरों से बना है. पूर्व राज परिवार भी आता है और मंदिर में पूजा पाठ होते हैं. मां को ऋतु फल का भोग लगाया जाता है.
नवरात्रा में लगती है श्रद्धालुओं की कतारें
आमेर की ऊंचाई पर मौजूद शिला देवी मंदिर में नवरात्र में मंदिर में काफी संख्या में माता के दर्शन करने के लिए भक्त पहुंचते हैं. श्रद्धालुओं का कहना है कि शिला देवी से जो भी मनोकामना मांगें, वो पूरी होती है. वहीं कई श्रद्धालु रोजाना कई किलोमीटर ऊंचाई को चढ़कर माता के मंदिर में पहुंचते हैं और मनोकामना मांगते हैं. इतना ही नहीं पिछले करीब 20 से 25 साल से यहां आ रहे श्रदालुओं का कहना है कि मां के दरबार में हर काम पूरे होते हैं.