जयपुर. विश्व आयुर्वेद परिषद और राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान की तरफ से अग्निकर्म और जीवनशैलीजन्य व्याधियां विषय पर राष्ट्रीय कार्यशाला (Agnikarma Workshop in Jaipur) होगी. 26-27 अगस्त को जयपुर में दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें देशभर के लगभग 400 आयुर्वेद चिकित्सक प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे. इस वर्कशॉप में देश के जाने-माने अग्निकर्म विशेषज्ञ अग्निकर्म विद्या का लाइव डेमोंस्ट्रेशन करेंगे.
विश्व आयुर्वेद परिषद के प्रदेश सचिव डॉ. बीएल बराला ने बताया कि शुक्रवार सुबह साढ़े ग्यारह बजे राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान ऑडिटोरियम में राज्यपाल कलराज मिश्र इस कार्यशाला का उद्घाटन करेंगे. विशिष्ट अतिथि विश्व आयुर्वेद परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. गोविंद सहाय शुक्ल और भारतीय चिकित्सा पद्धति राष्ट्रीय आयोग (NCISM) के अध्यक्ष वैद्य रघुराम भट्ट रहेंगे.
क्या है अग्निकर्म- अग्निकर्म एक पैरासर्जिकल तकनीक है. अग्निकर्म की तुलना थर्मल माइक्रोकोटरी से की जाती है. इसमें लोहा, तांबा, स्वर्ण या पंचधातु की शलाका (प्रोब) से शरीर के तय बिन्दुओं पर अग्निदग्ध किया जाता है. इसके लिए धातु की छड़ के तीक्ष्ण बिंदु को अग्नि पर लाल तप्त कर शरीर के दर्द युक्त स्थान पर कुछ सेकण्ड के लिए स्पर्श किया जाता है. इस वैज्ञानिक रूप से स्थापित पद्धति से बिना किसी दुष्प्रभाव के अच्छे नतीजे मिलने का दावा किया जाता है. आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ सुश्रुत संहिता में अग्निकर्म का विस्तृत उल्लेख मिलता है. आयुर्वेद के ग्रंथों में अग्निकर्म की विधि के सुव्यवस्थित प्रमाण उपलब्ध है.
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इन रोगों में लाभदायी है अग्निकर्म- अग्निकर्म से विभिन्न वातरोगों में दर्द का तुरंत निवारण होता है. अग्निकर्म से साइटिका, स्लिप डिस्क, स्पॉन्डीलाइटिस, जोड़ों का दर्द, कील (कॉर्न), मुष (वार्ट्स) और नस दबने से होने वाले सभी रोगों में तत्काल राहत मिलती है. कुछ दिन तक इलाज से बीमारी का समूल नाश हो जाता है. अभी राजस्थान में बहुत कम चिकित्सक अग्निकर्म का प्रयोग करते हैं.
एक्सपर्ट पैनल- पुणे (महाराष्ट्र) के अग्निकर्म विशेषज्ञ डॉ चंद्रकांत देशमुख, माधवबाग मुम्बई के निदेशक डॉ रोहित साने, नारनौल आयुर्वेद कॉलेज के एसिस्टेंट प्रोफेसर डॉ उमेश सहगल, ग्वालियर के पंचकर्म विशेषज्ञ डॉ अनुज जै सहित देशभर के 400 आयुर्वेद प्रैक्टिशनर कार्यशाला में शामिल होंगे.