जयपुर. जयपुर आज अपना 293वां स्थापना दिवस मना रहा है. यहां के किले, महल, चौपड़ और रास्ते जयपुर की विरासत को आज भी समेटे हुए हैं. विकास के नाम पर बहुत कुछ बदलने के बाद यहां सालों पुरानी विरासत मौजूद है. 18 नवंबर 1727 को महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की नींव रखी थी. 293 साल के जयपुर में समय के साथ बहुत से बदलाव आते गए. शहर स्मार्ट भी हुआ और यहां मेट्रो भी दौड़ रही है लेकिन अभी भी यर हेरिटेज सिटी के नाम से जाना जाता है. यहां की सैकड़ों साल पुरानी विरासत बदस्तूर जवां है.
बंगाल के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने यहां वर्षा जल संचयन और बारिश के निकासी का विशेष इंतजाम किया जो आज भी आधुनिक भारत के ज्यादातर शहरों में देखने को नहीं मिलता है. नाहरगढ़ की पहाड़ियों से निगरानी रखने वाले गढ़ गणेश, आराध्य गोविंद देवजी और तीनों चौपड़ों पर एक ही शैली और समकोण में बने ऐतिहासिक मंदिरों की वजह से जयपुर छोटीकाशी भी कहलाता है.
जयपुर की शान है यहां का परकोटा-
इसी जयपुर की शान है यहां का परकोटा. गंगापोल गेट की नींव के साथ इसका निर्माण हुआ है. यहां नौ ग्रहों के आधार पर 9 चौकड़िया, सूर्य के सात घोड़ों पर सात दरवाजे युक्त परकोटा बनवाया गया है. पूर्व से पश्चिम की ओर जाती सड़क पर पूर्व में सूरजपोल और पश्चिम में चांदपोल बनाया गया.
यहां के ऐतिहासिक महल, पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थर और गेरुआ रंग रोगन जयपुर की पहचान में शामिल है. जिसकी वजह से प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट ने जयपुर को पिंक सिटी नाम भी दिया था. आज ये रंग कुछ बदल सा गया है लेकिन प्रशासन की कोशिश इसे बरकरार रखने की ही है.
जयपुर प्रगति के पथ पर भी आगे बढ़ रहा-
विरासत के बीच आज जयपुर प्रगति के पथ पर भी आगे बढ़ रहा है. एलिवेटेड और भूमिगत मेट्रो, मल्टीनेशनल कंपनी बड़े-बड़े मॉल्स और दौड़ भाग भरी जिंदगी के बीच आज का जयपुर हाईटेक जरूर हुआ है लेकिन इससे शहर की विरासत पर कुछ खास असर नहीं पड़ा. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार जयपुर का समय के साथ संरक्षण भी हुआ है और कुछ कमी भी आई है. वर्तमान समय की विरासत को यूनेस्को ने भी माना है. इसे विश्व विरासत की सूची में भी डाला गया है.
पिछले कुछ दशकों में काफी बदवाल देखा गया-
हालांकि यहां की बसावट में कमी आई है पिछले कुछ दशकों में काफी बदवाल देखा गया. नए मकान पुरानी विरासत से मेल नहीं खाते. परकोटे में मेट्रो निर्माण मखमल के ऊपर टाट के पैबंद जैसा नजर आता है और चौपड़ों के कुंड को भी सहेजा नहीं जा सका. उन्होंने कहा कि अगर आज सवाई जयसिंह द्वितीय मौजूद होते तो वो जयपुर को देखकर खुश नहीं होते.
आबादी और वाहनों की बीच घिरा-
गुलाबी नगरी में कभी बनारस की भोर, प्रयाग की दोपहरी, अवध की शाम और बुंदेलखंड की रात जैसा नजारा दिखाई देता था. लेकिन आज बेतहाशा आबादी और वाहनों की बीच घिरा नजर आता है. इसकी विरासत को संभालने के लिए अब हेरिटेज नगर निगम बना दिया गया है और बढ़ती सीमाओं के बीच विकास के लिए ग्रेटर नगर निगम बनाया गया है जिनके दम पर अब शहर विरासत के साथ अपने विकास के पथ पर आगे बढ़ने को तैयार है.
जयपुर शहर का इतिहास-
1727 में जयपुर नगर का निर्माण शुरू हो गया था. इनमें प्रमुख खंडों को बनाने में करीब 4 साल का समय लगा. तब राजधानी आमेर हुआ करती थी. 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स के आने की खबर मिली तो उनके स्वागत में महाराजा सवाई मानसिंह ने पूरे शहर को गुलाबी रंग से रंगवा दिया था. तभी से इस शहर का नाम पिंक सिटी पड़ गया.
जयपुर शहर को बसाते समय सड़कों और विभिन्न रास्तों की चौड़ाई पर विशेष ध्यान दिया गया. शहर के मुख्य बाजार त्रिपोलिया बाजार में सड़क की चौड़ाई 107 फीट रखी गई तो वहीं हवामहल के पास ड्योढ़ी बाजार के पास 104 फीट की सड़क बनाई गई. मुख्य बाजार की सड़कों के दोनों ओर बाजार सभी भवनों का आकार और ऊंचाई एक जैसी हो इस पर खास ध्यान दिया गया. चान्दपोल से सूरजपोल गेट पश्चिम से उत्तर की ओर है और यहां मुख्य सड़क दोनों गेटों जोड़ती है. बीच-बीच में चौपड़ है.