हनुमानगढ़. जिले की दो किन्नर जन प्रतिनिधि ऐसी हैं जिन्होंने न सिर्फ किन्नरों के प्रति समाज की सोच को बदला है. बल्कि लोगों के सामने समय-समय पर प्रेरणादायी उदाहरण भी पेश किए हैं. राजनीति में पुरुषों के वर्चस्व के बीच ये दोनों जन प्रतिनिधि ऐसी हैं जिन्होंने 25 साल से चुनाव नहीं हारा है. देखिये यह खास रिपोर्ट...
किन्नरों की पहचान आमतौर पर घर-घर जाकर बधाई देने, गाने और ढोल बजाकर बधाई मांगने की होती है. लेकिन कुछ किन्नर ऐसे भी हैं, जिन्होंने समाज की इस विकृत सोच से जूझते हुए स्वयं को लीक से हटकर खड़ा करने में सफलता प्राप्त की है और समाज के लिए प्रेरणादायी बन गए. हनुमानगढ क्षेत्र की ऐसी ही दो ख्यातनाम हस्तियां हैं किन्नर नगीना बाई और रीना महंत.
रीना महंत 25 साल से राजनीति में
हाल ही में हुए संगरिया निकाय निकाय चुनाव में संगरिया पालिका की किन्नर रीना महंत ने वार्ड 2 से पार्षद का चुनाव लड़ा और जीता. पालिका में उप सभापति पद के लिए कांग्रेस ने रीना महंत का नाम आगे किया और रीना ने भाजपा के राजेश डोडा को भारी मतों से हराकर विजय हासिल की.
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रीना का उप सभापति बनना तब और भी अहम हो गया जब इनका मुकाबला क्षेत्र के धुरंधर और दिग्गज नेताओं से था. ऐसे में उपाध्यक्ष बनना ही इनकी योग्यता को दर्शाता है. रीना इससे पूर्व 4 बार पार्षद रह चुकी हैं. उनकी राजनीतिक पारी दो दशकों से ज्यादा चल चुकी है. वे कभी चुनाव नहीं हारीं
नगीना बाई का वर्चस्व 26 साल से
हनुमागढ़ के वार्ड 15 से पार्षद जीतकर आईं नगीना बाई की जन सेवा के जज्बे और सरल स्वभाव के मुरीद लोगों की फेहरिस्त काफी लंबी है. विरोधी भी उनकी ईमानदारी के कायल हैं. पिछली बार भाजपा का बोर्ड बनने से वे उप सभापति भी रहीं. वे छठी बार चुनकर आई हैं. स्थानीय लोग और वार्ड वासी ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी भी उनकी तारीफ कर चुके हैं.
पंजाब के खैरपुर से हनुमानगढ़ तक का सफर
नगीना बाई का जन्म पंजाब में अबोहर के खैरपुर गांव में बहुत गरीब परिवार में हुआ था. 6-7 वर्ष की उम्र में उन्हें किन्नर समुदाय को सौंप दिया गया. पंजाब से वे संगरिया आईं और संगरिया से हनुमानगढ़. जिस इलाके में रहती थीं, वहां लोग इनके कायल होने लगे. मधुर स्वभाव और जनसेवा की भावना शुरू से थी. लिहाजा स्थानीय लोगों ने ही उन्हें चुनाव लडने के लिए प्रेरित किया.
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एक पार्टी के लिए प्रतिबद्धता
देश भर में किन्नरों की संख्या लगभग 5 लाख है. हनुमानगढ़ में किन्नरों की संख्या बेहद कम है. ऐसे में धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा और तमाम सियासी मुद्दों को बौना साबित कर सिर्फ अपने काम के दम पर नगीना की जीत का सिलसिला शुरू हुआ. उन्होंने 1994 में पहला चुनाव निर्दलीय लड़ा था. जीतने पर उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया. तब से अब तक वे भाजपा के साथ हैं. उन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं हारा. वर्तमान में वार्ड 15 से पार्षद हैं
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इकलौती पार्षद जिनके नाम पर है 'नगीना मार्ग'
नगीना बाई अपने वार्ड के विकास को लेकर प्रतिबद्धता दिखाती हैं. वे इकलौती पार्षद हैं, जिनके नाम से नगीना मार्ग तक है. इतना ही नही नगीना बाई अब तक दर्जनों बच्चियों को गोद लेकर उनकी पढ़ाई-लिखाई, पालन-पोषण और विवाह तक अपने हाथों से करवा चुकी हैं. उनका मानना है कि कन्या दान से बड़ा दान कोई दूसरा दान नहीं. कन्या हत्या से बड़ा कोई पाप नहीं.
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तुलसीदास जी ने सुर किन्नर नर नाग मुनीसा के माध्यम से किन्नरों के उच्च स्तरीय अस्तित्व को रेखांकित किया है. नगीना बाई के कार्यों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्रभावित हुए. नगीना बाई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राखी भी बांधी.
किन्नरों को मुख्यधारा में लाने के प्रयास
2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने थर्ड जेंडर की पहचान को परिभाषित किया. वर्ष 2018 में धारा 377 के तहत आया सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय किन्नरों के लिए काफी राहतकारी रहा.
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सरकारों और कई सामाजिक संगठनों ने किन्नरों को मुख्य धारा में जोड़ने की कोशिशें भी की, कुछ प्रयास सफल भी हुए. लेकिन किन्नर समाज को अभी भी बाकी समाज से अलग देखा जाता है. इस समाज को जब जब अवसर मिला है, इन्होंने अपनी योग्यता और क्षमता को साबित किया है.