हनुमानगढ़. कोरोना काल, लॉकडाउन, चुनाव ड्यूटी या फिर ट्रैफिक ड्यूटी. होमगार्ड जवानों ने हर वक्त पुलिसकर्मियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी ड्यूटी निभाई है. लेकिन, जब काम निकल गया तो सरकार ने इन नगर सैनिकों को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल दिया. लंबे समय से होमगार्ड के जवान सरकारों से मानदेय बढ़ाने, स्थायी करने और रोटेशन से ड्यूटी लगाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी आवाज, उनका दर्द आज तक किसी भी सरकार ने नहीं समझा. यही वजह है कि आज इन होमगार्ड जवानों को बदहाली की जिंदगी काटनी पड़ रही है. देखें ये खास रिपोर्ट
हनुमानगढ़ जिले के रहने वाले कई होमगार्ड जवान स्थानी होने की उम्मीद में रिटायर के पड़ाव तक भी पहुंच गए, लेकिन उनकी आस पूरी नहीं हो सकी. होमगार्ड जवान सुनील शर्मा सहित अन्य जवान बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर है.
खाने को भी मोहताज...
सुनील इच्छापूर्ण हनुमानगढ़ मंदिर के सामने प्रसाद का ठेला लगाकर, तो गुरनाम सिंह पशुओं के चारे की रेहड़ी लगाकर कैसे जैसे गुजर बसर कर रहे हैं. इसी तरह सुखवंत सिंह ऑटो चलाकर, तो सुखवंत सिंह के पिता रिक्शा और पत्नी लोगों के घरों में साफ-सफाई कर परिवार का पेट भर रहे हैं. वहीं, होमगार्ड में स्थाई होने की उम्मीद के साथ रिटायर हुए ख्याली राम तो अंडों की रेहड़ी लगाकर जैसे-तैसे अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. लेकिन, महंगाई बढ़ी और कोरोना के चलते अब इन पर दोहरी मार पड़ी है. धंधा चौपट होने से अब इनका परिवार खाने को भी मोहताज है.
काम निकला, फिर भूले...
बता दें कि लॉकडाउन में होमगार्ड के जवानों की गश्त और कानून व्यवस्था में सेवाएं ली जा रही थी. लेकिन, इसके बाद सरकार ने इनकी ड्यूटी बंद करवा दी. अब हालात ये है कि आमजन की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाने वालों पर दो जून रोटी की समस्या आन खड़ी हुई है. परिवार का कहना है कि देश सेवा व बच्चों के अच्छे पालन-पोषण की सोच के साथ अपनों ने होमगार्ड में जॉइन किया था. लेकिन, वैसा कुछ भी नहीं हुआ. स्थाई और सुचारू ड्यूटी नहीं लगने से सब उम्मीदें धूमिल हो गई. नेताओं के आश्वासन, सिर्फ कागजी आश्वासन बनकर रह गए. अब साल में 1-2 बार ड्यूटी लगती है, तो उन्हें अपना काम छोडकर या नौकरी से छुट्टी लेकर जाना पड़ता है, जिससे इधर भी नुकसान हो जाता है. इन्हीं सब समस्याओं के चलते बहुत से जवान होमगार्ड की नौकरी छोड़ दूसरे काम करने लग गए, क्योंकि देश सेवा तभी होगी, जब खुद का और परिवार का पेट भरा होगा.
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वादों का क्या...
तत्कालीन भाजपा सरकार में होमगार्ड के जवानों ने अपनी मांगों को लेकर राज्यस्तरीय आंदोलन चलाया था. उस समय राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने जवानों को ये कहते हुए आश्वासन दिया था कि कांग्रेस की सरकार आने दीजिये, स्थाई करने का काम 2 मिनट का है. अब जब सरकार आई और सचिन उप मुख्यमंत्री भी बने, लेकिन इनके स्थायीकरण की मांग, मांग बनकर रह गई. वर्तमान सरकार के गृह रक्षा राज्य मंत्री भजन लाल जाटव ने 2019 में जोरो शोरों से घोषणा की थी कि होमगार्ड के एक बच्चे को छात्रवृत्ति देने की व्यवस्था है, इसे बढ़ा कर अब दो बच्चों को छात्रवृत्ति मिलेगी. 7 हजार रुपये वर्दी भत्ता भी दिया जाएगा, लेकिन ये वादा और घोषणा भी अभी अधरझूल में है. यही वजह है की कुछ ने नौकरी छोड़ निजी छोटे-मोटे धंधे शुरू कर दिये.
प्रदेश में जवानों की संख्या
हनुमानगढ़ जिले में होमगार्ड के बेडे में 501 थे. 26 पद तोड़ दिए गए, तो 475 पद होमगार्ड के पद स्वीकृति है, जिसमें 35 महिलाएं शामिल हैं और वर्तमान में 457 होमगार्ड के जवान कार्यरत्त हैं. 18 पद रिक्त है. जिसमें 100 रावतसर उप केंद्र होमगार्ड कार्यालय में तैनात है और ड्यूटी पर मात्र 65 जवान ही है. वहीं, राजस्थान में होमगार्ड की कुल संख्या 30,714 हैं, जिसमें से 21,770 शहरी होमगार्ड, 6,280 ग्रामीण होमगार्ड और 2,664 बॉर्डर होमगार्ड हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश
बता दें कि होमगार्ड को 693 रुपये प्रतिदिन मानदेय भत्ता मिलता है, वह भी अगर ड्यूटी लगती है तो ही मिलेगा. हालांकि, वर्दी विभाग की तरफ से मिलती है और अगर ड्यूटी स्वीकृत होती है, तो वाशिंग अलाउंस मात्र 75 रुपये ही प्रतिमाह मिलता है. हाल ही में राज्य सरकार ने रोडवेज की बसों में सफर करने वाले होमगार्ड के जवानों को 50 प्रतिशत की छूट दी है. यदि मेहनताना बढ़ता है, तो निसंदेह होमगार्ड जवानाें का हौसला भी बढ़ेगा और वे ज्यादा उत्साह से काम करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने भी 2015 में एक मामले में आदेश दिया था, जिसमें कहा गया था कि होमगार्ड जवान का मेहनताना कम से कम एक पुलिस कांस्टेबल के एंट्री लेवल (बेसिक पे+डीए) के वेतन के समान होना चाहिए.