डूंगरपुर. प्रदेश में तमाम कोशिशों के बावजूद भी बाल अपराध (Child crime) की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. जहां राजस्थान राज्य बाल संरक्षण आयोग (Rajasthan State Child Protection Commission) की अध्यक्षा संगीता बेनीवाल (Sangeeta Beniwal) ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए बाल सुरक्षा को लेकर प्रदेश में किए जा रहे इंतजाम के बारे में भी ईटीवी भारत से खुलकर चर्चा की.
राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने ईटीवी से बातचीत में कहा कि डूंगरपुर, बांसवाडा जिला आदिवासी क्षेत्र (tribal area) है और आज भी यहां पिछड़ापन है और शिक्षा का अभाव है, जिस कारण बाल अपराधों की संख्या अधिक है. वहीं डूंगरपुर जिला गुजरात राज्य से सटा होने के कारण अधिकतर बच्चे गुजरात में बाल श्रम को लेकर पलायन करने की समस्या रहती है. वहीं बाल तस्करी (child trafficking) की बात हो या फिर बलात्कार जैसी घटनाएं भी यहां ज्यादा देखने को मिलती है. सरकार और बाल आयोग हमेशा ही ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रयास कर रहे है और इसके लिए सरकार और प्रशासन की ओर से लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है.
उन्होंने कहा कि गुजरात में जाने वाले बालश्रम और बाल तस्करी को रोकने के लिए कई संगठन काम कर रहे है और उसमें कुछ सफलता भी मिली है, लेकिन अभी भी बच्चों के पलायन का सिलसिला चल रहा है. बच्चों का रेस्क्यू करने के बाद उनका पुनर्वास करवाया जा रहा है और उन्हें शिक्षा से जोड़ने का प्रयास भी हो रहा है, ताकि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले.
बालिकाओं के गुड टच और बैड टच के बारे में बताया जा रहा
बाल आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने कहा कि बालिकाओं की सुरक्षा के लिए भी सख्त कदम उठाए जा रहे है. बालिकाओं को गुड टच और बैड टच (good touch and bad touch) के बारे में समझाया जा रहा है, ताकि उनके साथ जो घटनाएं हो रही है, उसे वे समझ सके और विरोध भी कर सके. उन्होंने कहा कि देखा जाता है कि यहां की लड़कियां अधिकतर अपनी बात खुलकर बता नहीं पाती है. ऐसे में बच्चियों से भी काउंसलिंग के जरिए उनकी समस्याओं को जानने का प्रयास किया जाता है.
नाता प्रथा से कई बच्चे हुए बेसहारा, उनके लिए भी योजना
आदिवासी इलाकों में नाता प्रथा को लेकर संगीता बेनीवाल ने कहा कि नाता प्रथा के कारण बच्चे सबसे ज्यादा प्रताड़ित है. ऐसे में बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता है. बच्चों का न तो पिता के पास पालन पोषण हो पाता है और न ही मां के पास. ऐसे में आदिवासी क्षेत्र में बच्चे ठोकरे खाते है. ऐसे मामले उनके सामने भी आते रहते है. ऐसे मामलों में प्रशासन स्तर पर बातचीत करने के बाद ऐसे बच्चो को सरकारी योजनाओं का फायदा दिलाने के साथ ही आवासीय स्कूलों में शिक्षा के इंतजाम किए जाएंगे.
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यह है नाता प्रथा
आदिवासी क्षेत्रों में नाता प्रथा (kinship) बहुत ही प्रचलित है, जिसमें शादी के बाद एक पुरुष या महिला बिना किसी कानूनी प्रकिया के छोड़कर दूसरे पुरुष या महिला के साथ नाते चले जाती है. शादी के बाद बच्चे होने पर भी महिला अपने पति और बच्चों को छोड़कर दूसरे पुरुष के साथ अपना जीवन शुरू करती है. इसके बाद पुरुष भी दूसरी महिला को नाते ले आता है, जिस कारण पहली महिला से पैदा हुए बच्चे न तो पिता के पास रह पाते है और न मां के पास. ऐसे में वे अच्छी परवरिश के लिए भटकते रहते है.
नाता विवाह यहां के सांसद कनकमल कटारा समेत कई नेता भी कर चुके है, जिन्होंने चुनाव के समय भी इसका जिक्र किया है. वहीं नाता विवाह के चलते ही जिले के रामसागड़ा थाना क्षेत्र में पिछले दिनों एक सौतेली मां ने अपने 2 बच्चो को पानी के टब में डुबोकर मार दिया था.