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यहां होली के दिन धधकते अंगारों पर नंगे पैर चलने की है परंपरा...

रंगों का त्योहार होली इसे लेकर वागड़ में कई परंपराएं और मान्यताएं प्रचलित है. बरसो से चली आ रही इन परंपराओं को आज भी गांवो के लोग जीवित रखे हुए है और इन्हीं परंपराओं में से एक है होली के धधकते अंगारों पर चलने की प्रथा और वह भी नंगे पैर. मान्यता है, कि होली के धधकते अंगारो पर चलने से सालभर में गांव-परिवार पर कोई विपदा नहीं आती है और होलिका माता के आशीर्वाद से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.

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धधकते अंगारों पर नंगे पैर चलने की है परंपरा...
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Published : Mar 9, 2020, 10:27 AM IST

Updated : Mar 9, 2020, 11:31 AM IST

डूंगरपुर. होली पर जंहा देश अलग-अलग रंगों से सरोबार रहता है. वहीं, वागड़ में सदियों पुरानी परंपराएं होली को खास बनाती है. जिले के कोकापुर गांव के लोग होलिका दहन के दूसरे दिन धधकते अंगारो पर चलकर पूजा करते है, यह परंपरा गांव में दशकों से चली आ रही है और इसी का निर्वहन गांव के लोग करते है.

धधकते अंगारों पर नंगे पैर चलने की है परंपरा...

गांव के बुजुर्ग बताते है, कि होली के दिन गांव के होली चौक पर परंपरागत होलिका दहन होता है. दूसरे दिन अलसुबह गांव के सभी लोग ढोल की थाप पर गैर खेलते हुए एकत्रित होते है. गांव के हनुमान मंदिर और शिव मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है. इसके बाद शुरू होता है जलते अंगारो पर चलने की परंपरा का आयोजन, लेकिन इससे पहले गांव के लोग श्रीफल देकर शुभकामनाएं देते है.

पढ़ेंः होलिका दहन आज, मंगलवार को खेलेंगे रंग, जानें क्या हैं शुभ मुहुर्त

होलिका माता की प्रदक्षिणा कर श्रीफल समर्पित करने के बाद दाहिना पैर आगे करते हुए दहकते अंगारो से नंगे पैर ही गुजर जाते है. इस दौरान गांव के लोग होलिका माता के जयकारें लगाते है. धधकते अंगारो पर चलने के दौरान लोगों के न तो पैर जलते है और न ही कोई परेशानी होती है. वहीं, गांव के लोग इसे होली माता का आशीर्वाद मानते है.

गांव के लोग बताते है, कि सदियों से इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है. इसके पीछे मान्यता है कि दहकते अंगारों पर तीन पग भरने से वर्ष पर्यंत निरोगी रहा जाता है. साथ ही इसके जरिए लोग होली माता के प्रति अपनी श्रद्धा भी प्रकट करते हैं.

डूंगरपुर. होली पर जंहा देश अलग-अलग रंगों से सरोबार रहता है. वहीं, वागड़ में सदियों पुरानी परंपराएं होली को खास बनाती है. जिले के कोकापुर गांव के लोग होलिका दहन के दूसरे दिन धधकते अंगारो पर चलकर पूजा करते है, यह परंपरा गांव में दशकों से चली आ रही है और इसी का निर्वहन गांव के लोग करते है.

धधकते अंगारों पर नंगे पैर चलने की है परंपरा...

गांव के बुजुर्ग बताते है, कि होली के दिन गांव के होली चौक पर परंपरागत होलिका दहन होता है. दूसरे दिन अलसुबह गांव के सभी लोग ढोल की थाप पर गैर खेलते हुए एकत्रित होते है. गांव के हनुमान मंदिर और शिव मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है. इसके बाद शुरू होता है जलते अंगारो पर चलने की परंपरा का आयोजन, लेकिन इससे पहले गांव के लोग श्रीफल देकर शुभकामनाएं देते है.

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होलिका माता की प्रदक्षिणा कर श्रीफल समर्पित करने के बाद दाहिना पैर आगे करते हुए दहकते अंगारो से नंगे पैर ही गुजर जाते है. इस दौरान गांव के लोग होलिका माता के जयकारें लगाते है. धधकते अंगारो पर चलने के दौरान लोगों के न तो पैर जलते है और न ही कोई परेशानी होती है. वहीं, गांव के लोग इसे होली माता का आशीर्वाद मानते है.

गांव के लोग बताते है, कि सदियों से इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है. इसके पीछे मान्यता है कि दहकते अंगारों पर तीन पग भरने से वर्ष पर्यंत निरोगी रहा जाता है. साथ ही इसके जरिए लोग होली माता के प्रति अपनी श्रद्धा भी प्रकट करते हैं.

Last Updated : Mar 9, 2020, 11:31 AM IST
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