डूंगरपुर. शहर में करीब 7 घंटे तक गणपति की सवारी निकाली गई. जिसमें छोटी-बड़ी करीब 100 मूर्तिया शामिल रही. शहर में दोपहर करीब 12 बजे से गणपति प्रतिमाओं की शोभायात्रा शुरू हुई. जैसे जैसे शोभायात्रा आगे बढ़ते गयी वैसे वैसे भगवान गणेश की प्रतिमाएं, झाकियां और भक्तों की भीड़ भी बढ़ती गई. गणपति विसर्जन को लेकर भक्तों का उत्साह देखते ही बन रहा था.
भक्त ढोल-नगाड़ों, बैंड-बाजों के साथ ‘गणपति बप्पा मोरिया, अगले बरस तू जल्दी आ...देवा हो देवा गणपति देवा जैसे गगनभेदी जय-जयकारों से पूरा शहर गूंज उठा. विसर्जन के भक्तगण गुलाल और अबीर उड़ाते हुए नाचते हुए चल रहे थे. पूरे मार्ग में गणेश भक्त खूब थिरके. गणेश प्रतिमा शोभायात्रा का एक सिरा गेपसागर की पाल पर था तो आखरी सिर माणक चोक पर ही था. गेपसागर झील में पहले से तैयार लकड़ियों, रबर ट्यूब की विशेष नौका पर सवार कर जल विसर्जन के लिए झील में प्रवाहित कर दिया गया. प्रतिमाओं का विसर्जन गजानंद की अंतिम विदाई को देखने गेपसागर की पाल पर भारी भीड़ उमड़ पड़ी.
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अनंत चतुर्दशी पर गणेश मंडलों, मंदिरों व घरों में स्थापित की गई गणपति गजानंद की मूर्तियों को शोभायात्रा के रूप में जलाशयों तक ले जाया गया और विधि-विधान से पूजा के बाद प्रतिमाओं को विसर्जित कर दिया गया.
ईको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा का ही विसर्जन
शहर की गेपसागर झील को प्रदूषण मुक्त रखने और पीओपी की मूर्तियों का विसर्जन नहीं करने के चलते इस बार पूरी तरह से इको फ़्रेंडली गणेशोत्सव मनाया गया. श्री गणेश घांटी नवयुवक मंडल की ओर से लगातार 10 सालों से बनाई जा रही इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा का विजर्सन किया गया. इसी तरह शहर के सभी गणेश मंडलो की ओर से इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमाएं स्थापित की गई थी.
गेपसागर झील को साफ और सुंदर बनाएं रखने के लिए शहर के कई गणेश मंडलों ने पहल की जिसके तहत पीओपी यानी कि प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी गणेश प्रतिमाओं को झील में विसर्जित नहीं किया. वे मुर्तियों को उदयपुर रोड पर दो नदी एनिकट ले गए, जहां विधि विधान के साथ विसर्जन किया गया. वहीं पूजन सामग्री को गेपसागर की पाल पर रखे ड्रमों में रखा गया, ताकि झील गंदी नहीं हो.