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पर्यावरण दिवस  : डूंगरपुर का ये दंपती बना मिसाल...घर ऐसा कि प्रकृति भी मुस्कुरा उठे

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Published : Jun 5, 2020, 5:52 PM IST

सिविल इंजीनियरिंग पति और उनकी पत्नी ने घर बनाने का जो उदाहरण पेश किया है, वह सबसे अनूठा है. डूंगरपुर शहर के उदयपुरा वार्ड में आशिष पंडा और उनकी पत्नी मधुलिका ने अपने घर को प्रकृति से जोड़कर तैयार किया है.

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पर्यावरण दिवस विशेष

डूंगरपुर. 5 जून, यानि विश्व पर्यावरण दिवस. आधुनिकता के इस युग में हर कोई अपने घर को हाईटेक और अच्छा दिखाने की कोशिश में आसपास के पेड़-पौधों को काटकर पर्यावरण को नुकसान पंहुचा देता है. इसी बीच एक सिविल इंजीनियरिंग पति और उनकी पत्नी का पर्यावरण के प्रति अनूठा प्रेम दिखाई दे रहा है.

घर ऐसा कि प्रकृति भी मुस्कुरा उठे

इस दंपती ने पेड़-पौधों के साथ ही बारिश के पानी को सहेजने और यहां तक कि हर वेस्ट चीज का भी पर्यावरण को बचाने के लिए सदुपयोग कर अपने घर को हरा-भरा बनाया है. पर्यावरण दिवस पर जानते हैं कैसे इस दंपती ने सभी के लिए एक उदाहरण पेश किया है. पर्यावरण को बचाने के लिए वैसे तो सरकार से लेकर प्रशासन, वन विभाग और कई संस्थाएं काम करती हैं, लेकिन सिविल इंजीनियरिंग पति और उनकी पत्नी ने जो उदाहरण पेश किया है, वह सबसे अनूठा है. डूंगरपुर शहर के उदयपुरा वार्ड में आशिष पंडा और उनकी पत्नी मधुलिका ने अपने घर को प्रकृति से जोड़कर तैयार किया है.

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दंपती का घर

आशिष जहां सिविल इंजीनियर है और कंस्ट्रक्शन कार्य से जुड़े हैं तो वहीं मधुलिका समाजसेविका हैं. आशीष बताते हैं कि उनके घर के प्लॉट की पूरी साइज 5300 स्क्वायर फीट है. जिसमें 2300 पर घर बना हुआ है तो वहीं तीन हजार स्क्वायर फीट का खुला एरिया है. आशीष कहते हैं कि घर के बाहर से लेकर अंदर तक पर्यावरण की सुरक्षा का विशेष ख्याल रखा. खुले भाग को उन्होंने पक्का नहीं बनवाकर उसमें मिट्टी ही रहने दी. इसके बाद उसमें छोटे-बड़े करीब 500 से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए हैं, जिसमें कई औषधीय पौधों के साथ ही साग-सब्जियां भी उगाई गई है.

पढें- 5 जून : पर्यावरण संरक्षण के प्रति राजस्थान के इस नगर परिषद ने पेश की मिसाल, 4 साल में लगाए 25 हजार पौधे

वहीं, घर के इंटीरियर की बात करें तो वहां भी खाली प्लास्टिक की बोतलों में मिट्टी भरकर पौधे लगाए गए हैं. इससे उनके घर में पूरी तरह हरियाली नजर आती है. उनके घर में ना तो कूलर है और न ही एयर कंडीशनर. वे बताते हैं कि गर्मियों में भी उनके घर में गर्मी का अहसास नहीं होता. ऐसे में उन्हें घर के आसपास पेड़-पौधे होने से ताजी प्राणवायु भी मिलती है.

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गार्डन में लगे पौधे

बगीचे से ही मिलती है 80 प्रतिशत ताजी सब्जियां और फल...

आशीष बताते हैं कि उनकी बनाई छोटी सी बगिया में कई सब्जियां और फलों के पेड़ भी हैं, जिससे उन्हें सालभर सब्जियों और फलों के लिए बाजार में नहीं जाना पड़ता. केवल कुछ विशेष जरूरत होने पर ही वे बाजार का सामान उपयोग करते हैं. बाकी 80 प्रतिशत सब्जियों व फल उनके बगीचे से ही मिल जाते हैं.

पढें- पर्यावरण दिवस विशेष: भीलवाड़ा में कपड़ा कारखानों से निकलने वाले केमिकल और जहरीली गैसों से हवा में घुल रहा जहर

वे बताते हैं कि मौसम के अनुसार सब्जियां उगाई जाती हैं. अभी लौकी, गिल्की, तुरई, करेला के साथ ही मिर्ची व अन्य सब्जियां उगाई हुई हैं. वहीं बारिश व सर्दियों में मौसम की जरूरत के अनुसार सब्जियां उगाते हैं. इसके अलावा फलों में केला, जामफल, अनार, सीताफल, चीकू के पेड़ भी लगे हुए हैं जो सालभर में मौसम के अनुसार फल देते हैं.

औषधीय पौधों से घर में ही हो जाता है इलाज...

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खाद बनाता दंपती

आशीष अपने परिवार की सेहत को लेकर भी खासा ख्याल रखते हैं. इसी कारण उन्होंने कई औषधीय पौधे भी लगाएं हैं, जो कई छोटी-मोटी बीमारियों में दवा के रूप में इस्तेमाल होते हैं. इसमें खास है, अडूसा जो खांसी, पत्थर चट्टा जो पथरी, कट करंज जो पीलिया व बुखार में काम आता है. वहीं गिलोय, रीटा, अजवाइन पत्ता, तुलसी, लेमन ग्रास, अम्बाडी, खस के औषधीय पौधे लगाए हैं जो मेडिसिन में काम आते हैं.

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घर की बगिया

बारिश का पानी सहेजकर करते हैं इस्तेमाल...

आशीष न केवल पेड़-पौधों को बचाने में जुटे हैं बल्कि वे पानी को भी उसी महत्ता से सहेज रहे हैं. आशीष ने अपने घर पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया है. इससे न केवल जमीन का जल स्तर बढ़ता है बल्कि बारिश से इकठ्ठा होने वाले पानी को ही सालभर में पीने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. आशीष ने बताया कि उन्होंने घरेलू इस्तेमाल के 45 हजार लीटर पानी का टैंक तैयार करवाया है. यही पानी सालभर पीने में इस्तेमाल होता है. इसके अलावा 90 हजार लीटर पानी का टैंक अलग से है जो भूजल स्तर को रिचार्ज करता है. वहीं 90 हजार लीटर का एक ओर टैंक है जो घर के वेस्ट पानी (जो किचन के बर्तन धोने व कपडे धोने से निकलने वाला पानी)को इक्कट्ठा करता है. यह पानी पेड़-पौधों की सिंचाई में काम आ जाता है.

पेड़-पौधों की पत्तियों और बचे खाने से बनाते हैं खाद...

मधुलिका के अनुसार किस पेड़ से क्या क्या फायदे हैं, यह सब जानकर ही पेड़ लगाए हैं. वहीं, बगीचे में ज्यादातर पेड़ ऐसे हैं जो मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाते रहे. अक्सर देखा जाता है कि लोग पेड़-पौधों की सूखी पत्तियों या कचरे को इकठ्ठा करने के बाद जला देते हैं, लेकिन दंपती ने उसे जलाने के बजाय एक ड्रम में इकट्ठा किया. वहीं, इन्हीं ड्रम में रोजाना के बचे हुए खाने को भी वेस्ट के रूप में इकट्ठा कर देशी खाद और जैविक खाद तैयार कर अपने बगीचे में इस्तेमाल करते हैं. जिससे बगिया की जमीन हमेशा उपजाऊ रहती है.

डूंगरपुर. 5 जून, यानि विश्व पर्यावरण दिवस. आधुनिकता के इस युग में हर कोई अपने घर को हाईटेक और अच्छा दिखाने की कोशिश में आसपास के पेड़-पौधों को काटकर पर्यावरण को नुकसान पंहुचा देता है. इसी बीच एक सिविल इंजीनियरिंग पति और उनकी पत्नी का पर्यावरण के प्रति अनूठा प्रेम दिखाई दे रहा है.

घर ऐसा कि प्रकृति भी मुस्कुरा उठे

इस दंपती ने पेड़-पौधों के साथ ही बारिश के पानी को सहेजने और यहां तक कि हर वेस्ट चीज का भी पर्यावरण को बचाने के लिए सदुपयोग कर अपने घर को हरा-भरा बनाया है. पर्यावरण दिवस पर जानते हैं कैसे इस दंपती ने सभी के लिए एक उदाहरण पेश किया है. पर्यावरण को बचाने के लिए वैसे तो सरकार से लेकर प्रशासन, वन विभाग और कई संस्थाएं काम करती हैं, लेकिन सिविल इंजीनियरिंग पति और उनकी पत्नी ने जो उदाहरण पेश किया है, वह सबसे अनूठा है. डूंगरपुर शहर के उदयपुरा वार्ड में आशिष पंडा और उनकी पत्नी मधुलिका ने अपने घर को प्रकृति से जोड़कर तैयार किया है.

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दंपती का घर

आशिष जहां सिविल इंजीनियर है और कंस्ट्रक्शन कार्य से जुड़े हैं तो वहीं मधुलिका समाजसेविका हैं. आशीष बताते हैं कि उनके घर के प्लॉट की पूरी साइज 5300 स्क्वायर फीट है. जिसमें 2300 पर घर बना हुआ है तो वहीं तीन हजार स्क्वायर फीट का खुला एरिया है. आशीष कहते हैं कि घर के बाहर से लेकर अंदर तक पर्यावरण की सुरक्षा का विशेष ख्याल रखा. खुले भाग को उन्होंने पक्का नहीं बनवाकर उसमें मिट्टी ही रहने दी. इसके बाद उसमें छोटे-बड़े करीब 500 से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए हैं, जिसमें कई औषधीय पौधों के साथ ही साग-सब्जियां भी उगाई गई है.

पढें- 5 जून : पर्यावरण संरक्षण के प्रति राजस्थान के इस नगर परिषद ने पेश की मिसाल, 4 साल में लगाए 25 हजार पौधे

वहीं, घर के इंटीरियर की बात करें तो वहां भी खाली प्लास्टिक की बोतलों में मिट्टी भरकर पौधे लगाए गए हैं. इससे उनके घर में पूरी तरह हरियाली नजर आती है. उनके घर में ना तो कूलर है और न ही एयर कंडीशनर. वे बताते हैं कि गर्मियों में भी उनके घर में गर्मी का अहसास नहीं होता. ऐसे में उन्हें घर के आसपास पेड़-पौधे होने से ताजी प्राणवायु भी मिलती है.

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गार्डन में लगे पौधे

बगीचे से ही मिलती है 80 प्रतिशत ताजी सब्जियां और फल...

आशीष बताते हैं कि उनकी बनाई छोटी सी बगिया में कई सब्जियां और फलों के पेड़ भी हैं, जिससे उन्हें सालभर सब्जियों और फलों के लिए बाजार में नहीं जाना पड़ता. केवल कुछ विशेष जरूरत होने पर ही वे बाजार का सामान उपयोग करते हैं. बाकी 80 प्रतिशत सब्जियों व फल उनके बगीचे से ही मिल जाते हैं.

पढें- पर्यावरण दिवस विशेष: भीलवाड़ा में कपड़ा कारखानों से निकलने वाले केमिकल और जहरीली गैसों से हवा में घुल रहा जहर

वे बताते हैं कि मौसम के अनुसार सब्जियां उगाई जाती हैं. अभी लौकी, गिल्की, तुरई, करेला के साथ ही मिर्ची व अन्य सब्जियां उगाई हुई हैं. वहीं बारिश व सर्दियों में मौसम की जरूरत के अनुसार सब्जियां उगाते हैं. इसके अलावा फलों में केला, जामफल, अनार, सीताफल, चीकू के पेड़ भी लगे हुए हैं जो सालभर में मौसम के अनुसार फल देते हैं.

औषधीय पौधों से घर में ही हो जाता है इलाज...

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खाद बनाता दंपती

आशीष अपने परिवार की सेहत को लेकर भी खासा ख्याल रखते हैं. इसी कारण उन्होंने कई औषधीय पौधे भी लगाएं हैं, जो कई छोटी-मोटी बीमारियों में दवा के रूप में इस्तेमाल होते हैं. इसमें खास है, अडूसा जो खांसी, पत्थर चट्टा जो पथरी, कट करंज जो पीलिया व बुखार में काम आता है. वहीं गिलोय, रीटा, अजवाइन पत्ता, तुलसी, लेमन ग्रास, अम्बाडी, खस के औषधीय पौधे लगाए हैं जो मेडिसिन में काम आते हैं.

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घर की बगिया

बारिश का पानी सहेजकर करते हैं इस्तेमाल...

आशीष न केवल पेड़-पौधों को बचाने में जुटे हैं बल्कि वे पानी को भी उसी महत्ता से सहेज रहे हैं. आशीष ने अपने घर पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया है. इससे न केवल जमीन का जल स्तर बढ़ता है बल्कि बारिश से इकठ्ठा होने वाले पानी को ही सालभर में पीने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. आशीष ने बताया कि उन्होंने घरेलू इस्तेमाल के 45 हजार लीटर पानी का टैंक तैयार करवाया है. यही पानी सालभर पीने में इस्तेमाल होता है. इसके अलावा 90 हजार लीटर पानी का टैंक अलग से है जो भूजल स्तर को रिचार्ज करता है. वहीं 90 हजार लीटर का एक ओर टैंक है जो घर के वेस्ट पानी (जो किचन के बर्तन धोने व कपडे धोने से निकलने वाला पानी)को इक्कट्ठा करता है. यह पानी पेड़-पौधों की सिंचाई में काम आ जाता है.

पेड़-पौधों की पत्तियों और बचे खाने से बनाते हैं खाद...

मधुलिका के अनुसार किस पेड़ से क्या क्या फायदे हैं, यह सब जानकर ही पेड़ लगाए हैं. वहीं, बगीचे में ज्यादातर पेड़ ऐसे हैं जो मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाते रहे. अक्सर देखा जाता है कि लोग पेड़-पौधों की सूखी पत्तियों या कचरे को इकठ्ठा करने के बाद जला देते हैं, लेकिन दंपती ने उसे जलाने के बजाय एक ड्रम में इकट्ठा किया. वहीं, इन्हीं ड्रम में रोजाना के बचे हुए खाने को भी वेस्ट के रूप में इकट्ठा कर देशी खाद और जैविक खाद तैयार कर अपने बगीचे में इस्तेमाल करते हैं. जिससे बगिया की जमीन हमेशा उपजाऊ रहती है.

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