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डूंगरपुर: स्कूलों को छोड़ बाल श्रम में खप रहा बचपन, शिक्षा विभाग के दावे खोखले

डूंगरपुर में हाल ही में मुक्त करवाये गए बाल श्रमिकों ने शिक्षा विभाग द्वारा चलाये जा रहे अभियानों की पोल खोलकर रख दी है. जिले में आज भी बच्चे स्कूल जाने की बजाय बाल श्रम करने को मजबूर हैं.

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Published : Nov 19, 2019, 9:16 PM IST

डूंगरपुर. जिले में हाल ही में चाइल्ड लाइन और मानव तस्करी विरोधी यूनिट की ओर से संयुक्त कार्रवाई करते हुए 30 से ज्यादा बच्चों को बाल श्रम से मुक्त करवाया गया है. चाइल्ड लाइन में काउंसलिंग के दौरान बच्चों ने परिवार की परिस्थितियों की वजह से स्कूल छोड़ने की बात कही. इन बातों से जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के ऐसे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के दावों की पोल खुल गई है.

डूंगरपुर में बाल श्रम में खप रहा बचपन

इन बाल श्रमिकों में से 50 फीसदी बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने एक से दो माह पहले ही स्कूल से नाता तोड़कर मजबूरी में बाल श्रम का रास्ता अपनाया है. वहीं अन्य बाल श्रमिक पिछले 2 से 3 साल पहले ही स्कूल छोड़ चुके हैं. यह खुलासा इन्हीं बाल श्रमिकों ने चाइल्ड लाइन सदस्यों की पूछताछ में किया है. चाइल्ड लाइन और मानव तस्करी निरोधक सेल ने बाल श्रमिकों को जिला बाल कल्याण समिति के समक्ष जब पेश किया तो समिति ने बच्चो सें काउंसलिंग की.

जिसमें इन बाल श्रमिकों ने चौंकाने वाली बातें बताई. बाल श्रमिकों ने कहा कि परिवार की अलग-अलग परिस्थितियों के चलते स्कूल छुट गया है. ऐसे में प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले में बाल श्रम को रोकने और ऐसे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के प्रयास केवल कागजों में ही नजर आते हैं. धरातल पर कहानी कुछ और ही बयां कर रही है.

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बता दें कि आज भी जिले में कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां बच्चे कभी भी स्कूल से नहीं जुड़े हैं. जो बच्चे कभी स्कूल गए भी तो वे आज बालश्रम में अपना बचपन खो रहे हैं. सरकार की बालकों को स्कूलों से जोड़ने के दावों की भी पोल खुल गई है. शिक्षा विभाग नामांकन अभियान और नया अभियान के माध्यम से ड्रॅाप आउट बच्चों को स्कूल से जोड़ने के दावे करता रहा है. लेकिन चाइल्ड लाइन और मानव तस्करी निरोधक सेल द्वारा हाल ही में मुक्त करवाये गए बाल श्रमिकों ने जिले में सभी अभियानों की पोल खोलकर रख दी है.

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आश्चर्य की बात यह है कि नामांकन अभियान की सफलता का गुणगान कर रहे शिक्षा विभाग का एक भी नुमाइंदा इन्हें स्कूल से जोड़ने के लिए कभी नहीं आया. वहीं जिन बच्चों का स्कूल में नामांकन है, लेकिन वे लंबे समय से स्कूल नहीं आ रहे हैं. उनका कारण जानने भी विभाग ने कोई जहमत नहीं उठाई. इधर, जिला बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष भरत भट्ट ने अब इन बाल श्रमिकों के परिजनों से काउंसलिंग कर इन्हें पुनः शिक्षा से जोड़ने की बात कही है.

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यह सभी बातें बताती है कि जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग द्वारा बाल श्रम उन्मूलन और ड्रॅाप आउट बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए किये जा रहे प्रयास विफल हो रहे हैं, लेकिन आवश्यकता है कि सरकार की मंशानुरूप जिला का प्रशासनिक महकमा इस पूरे मामले को गंभीरता से ले. जिससे देश का भविष्य कहे जाने वाले ये बच्चे मजबूरी में अपना बचपन न खोकर विद्या के मंदिरों में शिक्षा अर्जित कर सके.

डूंगरपुर. जिले में हाल ही में चाइल्ड लाइन और मानव तस्करी विरोधी यूनिट की ओर से संयुक्त कार्रवाई करते हुए 30 से ज्यादा बच्चों को बाल श्रम से मुक्त करवाया गया है. चाइल्ड लाइन में काउंसलिंग के दौरान बच्चों ने परिवार की परिस्थितियों की वजह से स्कूल छोड़ने की बात कही. इन बातों से जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के ऐसे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के दावों की पोल खुल गई है.

डूंगरपुर में बाल श्रम में खप रहा बचपन

इन बाल श्रमिकों में से 50 फीसदी बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने एक से दो माह पहले ही स्कूल से नाता तोड़कर मजबूरी में बाल श्रम का रास्ता अपनाया है. वहीं अन्य बाल श्रमिक पिछले 2 से 3 साल पहले ही स्कूल छोड़ चुके हैं. यह खुलासा इन्हीं बाल श्रमिकों ने चाइल्ड लाइन सदस्यों की पूछताछ में किया है. चाइल्ड लाइन और मानव तस्करी निरोधक सेल ने बाल श्रमिकों को जिला बाल कल्याण समिति के समक्ष जब पेश किया तो समिति ने बच्चो सें काउंसलिंग की.

जिसमें इन बाल श्रमिकों ने चौंकाने वाली बातें बताई. बाल श्रमिकों ने कहा कि परिवार की अलग-अलग परिस्थितियों के चलते स्कूल छुट गया है. ऐसे में प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले में बाल श्रम को रोकने और ऐसे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के प्रयास केवल कागजों में ही नजर आते हैं. धरातल पर कहानी कुछ और ही बयां कर रही है.

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बता दें कि आज भी जिले में कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां बच्चे कभी भी स्कूल से नहीं जुड़े हैं. जो बच्चे कभी स्कूल गए भी तो वे आज बालश्रम में अपना बचपन खो रहे हैं. सरकार की बालकों को स्कूलों से जोड़ने के दावों की भी पोल खुल गई है. शिक्षा विभाग नामांकन अभियान और नया अभियान के माध्यम से ड्रॅाप आउट बच्चों को स्कूल से जोड़ने के दावे करता रहा है. लेकिन चाइल्ड लाइन और मानव तस्करी निरोधक सेल द्वारा हाल ही में मुक्त करवाये गए बाल श्रमिकों ने जिले में सभी अभियानों की पोल खोलकर रख दी है.

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आश्चर्य की बात यह है कि नामांकन अभियान की सफलता का गुणगान कर रहे शिक्षा विभाग का एक भी नुमाइंदा इन्हें स्कूल से जोड़ने के लिए कभी नहीं आया. वहीं जिन बच्चों का स्कूल में नामांकन है, लेकिन वे लंबे समय से स्कूल नहीं आ रहे हैं. उनका कारण जानने भी विभाग ने कोई जहमत नहीं उठाई. इधर, जिला बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष भरत भट्ट ने अब इन बाल श्रमिकों के परिजनों से काउंसलिंग कर इन्हें पुनः शिक्षा से जोड़ने की बात कही है.

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यह सभी बातें बताती है कि जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग द्वारा बाल श्रम उन्मूलन और ड्रॅाप आउट बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए किये जा रहे प्रयास विफल हो रहे हैं, लेकिन आवश्यकता है कि सरकार की मंशानुरूप जिला का प्रशासनिक महकमा इस पूरे मामले को गंभीरता से ले. जिससे देश का भविष्य कहे जाने वाले ये बच्चे मजबूरी में अपना बचपन न खोकर विद्या के मंदिरों में शिक्षा अर्जित कर सके.

Intro:डूंगरपुर। प्रदेश के आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले से बालश्रम को रोकने तथा ऐसे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के प्रयास केवल कागजों में ही नजर आते है। धरातल की बात करें तो आज भी जिले में कई ऐसे क्षेत्र है जहां बच्चे कभी भी स्कूल से नहीं जुड़े है और जो कभी जुड़े हुए थे वे आज बालश्रम में अपना बचपन खो रहे है। दूसरी और बालको को स्कूलों से जोड़ने के दावों की भी पोल खुल गई है।Body:डूंगरपुर जिले में शिक्षा विभाग नामांकन अभियान व नया अभियान के माध्यम से ड्राप आउट बच्चो को स्कूल से जोड़ने के दावे करता हो लेकिन चाइल्ड लाइन व मानव तस्करी निरोधक सेल द्वारा हाल ही में मुक्त करवाये गए बालश्रमिको ने जिले में बालश्रम उन्मूलन व बच्चो को शिक्षा से जोड़ने वाले सभी अभियानों की पोल खोलकर रख दी है। जिले में हाल ही में चाइल्ड लाइन, मानव तस्करी विरोधी यूनिट की ओर से संयुक्त कार्रवाई करते हुए 30 से ज्यादा बच्चो को बालश्रम से मुक्त करवाया गया है। इन बालश्रमिकों में से 50 फीसदी ऐसे है जिन्होंने एक से दो माह पहले ही स्कूल से नाता तोड़कर मज़बूरी में बालश्रम का रास्ता अपनाया है। वही अन्य बाल श्रमिक पिछले 2 से 3 साल पहले ही स्कूल छोड़ चुके है। यह खुलासा इन्ही बालश्रमिकों ने चाइल्ड लाइन सदस्यों को पूछताछ में किया है।
चाइल्ड लाइन व मानव तस्करी निरोधक सेल द्वारा बालश्रमिको को जिला बाल कल्याण समिति के समक्ष जब पेश किया गया तो समिति ने बच्चो से काउंसलिंग की, जिसमें इन बाल श्रमिकों ने चौकाने वाली बात कही कि परिवार की अलग-अलग परिस्थितियों के चलते इनका स्कूल छुट गया है। आश्चर्य की बात यह है की नामांकन अभियान की सफलता का गुणगान कर रहे शिक्षा विभाग का एक भी नुमाइंदा इन्हे स्कूल से जोड़ने के लिए कभी नहीं आया। वही जिन बच्चो का स्कूल में नामांकन है लेकिन लम्बे समय से आ नहीं रहे है उनका कारण जानने भी विभाग ने कोई जहमत नहीं उठाई। इधर, जिला बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष भरत भट्ट ने अब इन बालश्रमिको के परिजनों से काउंसलिंग कर इन्हें पुनः शिक्षा से जोड़ने की बात कही है।
बहराल यह सभी सुनकर और देखकर आप समझ ही गए होंगे कि जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग द्वारा बालश्रम उन्मूलन व ड्राप आउट बच्चो को स्कूल से जोड़ने के लिए किये जा रहे प्रयास कितने सार्थक है। लेकिन आवश्यकता है कि सरकार की मंशानुरूप जिला का प्रशासनिक महकमा इस पूरे मामले को गंभीरता से ले ताकि देश का भविष्य कहीं जाने वाले ये बच्चे मजदूरी में अपना बचपन न खोकर विद्या के मंदिरों में शिक्षा अर्जित कर सके।

बाईट-1, भरत भट्ट अध्यक्ष जिला बाल कल्याण समिति डूंगरपुर।Conclusion:
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