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कौन अपना, कौन पराया? लावारिस बच्चों को अपनों ने ठुकराया, परायों ने दिया सहारा

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Published : Jul 25, 2021, 7:01 PM IST

Updated : Jul 25, 2021, 7:45 PM IST

डूंगरपुर में बीते कुछ सालों में जन्म देने के बाद बच्चों को लावारिस छोड़ने के मामले बढ़े हैं. लेकिन कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो गोद सूनी होने की वजह से इन बच्चों को बेहतर परवरिश दे रहे हैं. डूंगरपुर के राजकीय शिशु गृह से 8 साल में 36 लावारिस बच्चों को गोद मिली है. सभी बच्चे अच्छे परिवार में पल-बढ़ रहे हैं.

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8 साल में 36 लावारिस बच्चों को परायों ने अपनाया

डूंगरपुर: आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में साल 2013 में शुरू हुआ राजकीय शिशु गृह बच्चों को नया जीवन दे रहा है. यहां लावारिस मिलने वाले बच्चों की बेहतर देखभाल की जाती है. फिलहाल यहां 5 बच्चे हैं. इसमें एक नवजात कुछ दिनों पहले ही मिला है. केयर टेकर सभी बच्चों का ध्यान रखती है. बच्चों की समय-समय पर स्वास्थ्य जांच भी कराई जा रही है.

अनचाहा या फिर अवैध संबंधों के कारण बच्चा पैदा होने पर उसे छोड़ दिया जाता है. लेकिन जिन बच्चों को अपनों ने ठुकराया अब पराए उनकी बेहतर परवरिश कर रहे हैं. बाल अधिकारिता विभाग (Child Empowerment Department) के मुताबिक 8 साल में पालना गृह से 36 बच्चों को गोद दिया जा चुका है. डूंगरपुर शिशु गृह से गोद लिया एक बच्चा विदेश में पल रहा है. दूसरे बच्चों को भी देश में ही डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, प्रशासनिक अधिकारी या अच्छा बागबां मिला है. उन परिवारों में बच्चों को माता-पिता की तरह ही प्यार-दुलार मिल रहा है और अच्छी शिक्षा भी मिल रही है.

8 साल में 36 लावारिस बच्चों को परायों ने अपनाया

पढ़ें: सीकर: जनाना अस्पताल के पालना गृह में मिला नवजात शिशु, आईसीयू में भर्ती

जिले में पिछले कुछ सालों में बच्चों को जन्म देने के बाद उन्हें छोड़ने या फेंकने के मामले सामने आए हैं. किसी ने कम जुल्म ढाया तो सुरक्षित पालना गृह में छोड़ दिया गया तो कई इतने बेरहम निकले कि फूल से बच्चों को कांटों के बीच जंगल-झाड़ियों में छोड़ दिया. कोई मासूम खून से लथपथ मिला तो कोई जिंदगी की जंग हार गया.

8 साल में जिन 36 बच्चों को गोद दिया गया, उनमें 18 बेटे और 18 बेटियां शामिल हैं. यानी सिर्फ बेटियां ही नहीं बेटे भी लावारिस हालत में छोड़े गए. अब शिशु गृह इनके अभिभावक की भूमिका निभा रहा है ताकि कांटों भरी, पथरीली राह में मिली ये जिंदगियां फूलों की तरह ताउम्र मुस्कुराएं.

डूंगरपुर: आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में साल 2013 में शुरू हुआ राजकीय शिशु गृह बच्चों को नया जीवन दे रहा है. यहां लावारिस मिलने वाले बच्चों की बेहतर देखभाल की जाती है. फिलहाल यहां 5 बच्चे हैं. इसमें एक नवजात कुछ दिनों पहले ही मिला है. केयर टेकर सभी बच्चों का ध्यान रखती है. बच्चों की समय-समय पर स्वास्थ्य जांच भी कराई जा रही है.

अनचाहा या फिर अवैध संबंधों के कारण बच्चा पैदा होने पर उसे छोड़ दिया जाता है. लेकिन जिन बच्चों को अपनों ने ठुकराया अब पराए उनकी बेहतर परवरिश कर रहे हैं. बाल अधिकारिता विभाग (Child Empowerment Department) के मुताबिक 8 साल में पालना गृह से 36 बच्चों को गोद दिया जा चुका है. डूंगरपुर शिशु गृह से गोद लिया एक बच्चा विदेश में पल रहा है. दूसरे बच्चों को भी देश में ही डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, प्रशासनिक अधिकारी या अच्छा बागबां मिला है. उन परिवारों में बच्चों को माता-पिता की तरह ही प्यार-दुलार मिल रहा है और अच्छी शिक्षा भी मिल रही है.

8 साल में 36 लावारिस बच्चों को परायों ने अपनाया

पढ़ें: सीकर: जनाना अस्पताल के पालना गृह में मिला नवजात शिशु, आईसीयू में भर्ती

जिले में पिछले कुछ सालों में बच्चों को जन्म देने के बाद उन्हें छोड़ने या फेंकने के मामले सामने आए हैं. किसी ने कम जुल्म ढाया तो सुरक्षित पालना गृह में छोड़ दिया गया तो कई इतने बेरहम निकले कि फूल से बच्चों को कांटों के बीच जंगल-झाड़ियों में छोड़ दिया. कोई मासूम खून से लथपथ मिला तो कोई जिंदगी की जंग हार गया.

8 साल में जिन 36 बच्चों को गोद दिया गया, उनमें 18 बेटे और 18 बेटियां शामिल हैं. यानी सिर्फ बेटियां ही नहीं बेटे भी लावारिस हालत में छोड़े गए. अब शिशु गृह इनके अभिभावक की भूमिका निभा रहा है ताकि कांटों भरी, पथरीली राह में मिली ये जिंदगियां फूलों की तरह ताउम्र मुस्कुराएं.

Last Updated : Jul 25, 2021, 7:45 PM IST
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